Ranchi-अपने सोशल मीडिया ट्वीट के सहारे जेएमएम और महागठबंधन के अंदर की टूट, फूट और लूट की खबरें परोसते रहे गोड्डा सांसद निशिकांत खबरों की दुनिया के बेताज बादशाह हैं. बेक्रिंग न्यूज की तलाश में माथे पर शिकन लिए भटक रहे खबरनवीसों को निशिकांत के हर ट्वीट के साथ एक राहत की सांस नजर आती है. मानो निशिकांत का ट्वीट नहीं हो, उनके हाथ एक अनमोल रत्न हाथ लग गया हो. जिसके सहारे वह जब चाहे दुनिया को मुठ्ठी में बंद कर सकते हैं उन्हे सूत्रों के हवाले से कहानियां परोसने के बजाय निशिकांत के दावे के रुप में एक मजबूत विकल्प मिल जाता है.
अब उसी निशिकांत से भाजपा में पसर रही है बेचैनी
लेकिन अब वही निशिकांत जेएमएम में टूट, फूट और लूट की पड़ताल करते-करते ‘कमल’ में ही आग लगा बैठे और यह आग ऐसी भड़की है कि सारठ विधान सभा के भाजपा विधायक रणधीर सिंह ने पूरा मोर्चा ही खोल दिया है. और मोर्चा भी इस बात पर खोला है कि इस तरह की भ्रामक और तथ्यहीन दावों और ट्वीट से झारखंड भाजपा की साख पर बट्टा लग रहा है, खबरनवीसों को तो छोड़िये, अब तो आम लोग भी हमारी हंसी उड़ा रहे हैं. निशिकांत के हर ट्वीट के साथ खुद भाजपा फंसती नजर आ रही है. और हालत यदि यही रही तो हमारे गंभीर सवालों को भी लोग मजाक की दृष्टि से देखेंगे.
निशिकांत को दिल्ली की सियासत में समय देने की सलाह
जब रणधीर कुमार सिंह से निशिकांत के उस दावे पर सवाल दागा गया कि जिसमें यह दावा किया गया था कि झामुमो के 18 विधायक चंपई को नेता मानने को तैयार नहीं है, चंपई के कारण झामुमो में बिखराव की स्थिति है, तो झल्लाये रणधीर ने कहा कि यह सवाल आप निशिकांत से ही क्यों नहीं पूछते, वह हैं क्या, ना तो वह विरोधी दल के नेता है, और ना ही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष, उन्हे तो दिल्ली की राजनीति में अपना वक्त लगाना चाहिए था, झारखंड की राजनीति तो हम विधायकों को करनी है, लेकिन वह तो अपनी टांग यहां भी लगा रहे हैं, और लगे हाथ रणधीर ने यह भी कह दिया कि निशिकांत के ट्वीट के कारण हम विधायकों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, मुश्किल हालात में खड़ा होना पड़ रहा है.
क्या रणधीर निशिकांत के खिलाफ कोई मोर्चा खोलने जा रहे हैं
अब सवाल यह है कि कई यह वाकई यह बगावत निशिकांत के ट्वीट से पैदा होती रही असहज परिस्थितियों से हैं या इसके पीछे कहानी कुछ और है. तो इसके लिए हमें सारठ विधान सभा के सामाजिक गणित को समझना होगा. दरअसल सारठ विधान सभा में मुस्लिम आबादी करीबन 25 फीसदी की है. जबकि आदिवासियों की आबादी करीबन 20 फीसदी की है, इसके साथ ही करीबन महतो और यादवों की एक अच्छी खासी आबादी है. और यह सामाजिक समीकरण ही रणधीर सिंह को परेशान किये हुए हैं. जिस तल्खी और तेवर के साथ निशिकांत उग्र हिन्दुत्व का कार्ड खेलते हैं, उनके हर दावे के साथ रणधीर सिंह को अपना सामाजिक समीकरण विखरता नजर आता है.
रणधीर के इस बयान के पीछे क्या है सियासत
यहां ध्यान रहे कि रणधीर सिंह की सियासी शुरुआत 2014 में कंधी छाप यानी बाबूलाल की पार्टी जेवीएम के बनैर तले हुई थी, लेकिन बाद में तात्कालीन सीएम रघुवर दास ने आपेरशन लोट्स चलाते हुए विपक्ष के कई विधायकों को कमल की सवारी करवाया दिया, रणधीर सिंह भी उन्ही में से एक थें, अपने पाला बदल के बाद यह रघुवर सरकार में कृषि मंत्री भी बने और दावा किया जाता है कि कृषि मंत्री रहते हुए रणधीर सिंह ने मुस्लिम समुदाय के बीच काफी बेहतर काम किया, किसी धार्मिक विभेद के वह सरकार की तमाम योजनाओं को उन तक पहुंचाते रहें, और यही कारण है कि उनकी पाला बदल के बाद उनके मतदाताओं बीच कोई नाराजगी नहीं देखी गयी, लेकिन अब जो परिस्थितियां बन रही है, उसके कारण उन्हे अपना आधार वोट अल्पसंख्यक उनके दूर जाता दिख रहा है, रही सही कसर पूर्व सीएम हेमंत की गिरफ्तारी ने पूरी कर दी, हेमंत की गिरफ्तारी के बाद आदिवासी समूहों में जिस तेजी से ध्रुवीकरण होता दिख रहा है, उसके बाद तो रणधीर से अपना सियासी कैरियर ही दांव पर लगता दिख रहा है, और अपने मतदाताओं के बीच पसरती इस बेचैनी को ही रणधीर सामने ला रहे हैं. इस हालत में विधान सभा चुनाव के पहले पहले सारठ में कोई बड़ा सियासी बदलाव देखने को मिले तो अचरज की स्थिति नहीं होगी.
क्या रणधीर की हो सकती है भाजपा से छुट्टी
सवाल तो यह भी खड़ा हो रहा है कि जिस प्रकार वाले राजपलिवार से भिड़त के बाद निशिकांत ने मधुपुर से उनकी विदाई की पटकथा लिख दी थी, निशिकांत ने राजपलिवार को किनारा करते हुए गंगा नारायण सिंह को भाजपा का टिकट थमवा दिया, क्या सारठ में भी वही खेल होने वाला है. निश्चित रुप से रणधीर सिंह के सामने यह खतरा सामने हैं, लेकिन इसके साथ ही उनके पास झाममो का दामन थामने का विकल्प भी खुला है, जो उनके मतदाताओं की भावना के अनुरुप भी होगा.
निशिकांत के खिलाफ भाजपा के अंदर एक बड़ी जमात है
लेकिन यहां सवाल सिर्फ रणधीर सिंह का नहीं है, क्या रणधीर सिंह जिस दर्द से परेशान हैं, वह दूसरे भाजपा नेताओं के अंदर नहीं पसर रहा है, तो ऐसा नहीं है, कहीं ना कहीं निशिकांत की इस सक्रियता के खुद बाबूलाल भी हलकान है, लेकिन उनकी मुसिबत यह है कि अभी अभी भाजपा के अंदर उनकी इंट्री हुई है, अभी तो भाजपा का एक बड़ा हिस्सा ही उन्हे अपनाने को तैयार नहीं दिखता है, इस हालत में बाबूलाल अभी भाजपा को स्थापित करने बजाय भाजपा के अंदर खुद को स्थापित करने का संघर्ष कुछ ज्यादा ही करते दिख रहे हैं, एक बार वह इस लड़ाई को समाप्त कर लें, भाजपा के अंदर अपने आप को पूर्ण रुप से स्थापित कर लें, तो निश्चित रुप से एक मोर्चा वहां भी खुल सकता है, और दूसरे पटाखें जो आज खामोश हैं, कल वह भी अपनी आवाज को बुंलद करते नजर आयेंगे.
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