Ranchi-लोकसभा चुनाव के पहले झारखंड की सियासत एक अजीब मोड़ पर खड़ी नजर आने लगी है. सियासत की यह जंग चुनावी अखाड़े से आगे बढ़कर अब परिवार के अंदर भी टूट-फूट और दीवार पैदा करती दिखलायी दे रही है और इसी की बानगी है, झारखंड का सबसे बड़ा सियासी परिवार दिशोम गुरु की बड़ी बहु सीता सोरेन का कमल की सवारी करने का फैसला. निश्चित रुप से सीता सोरेन के लिए भी यह फैसला इतना आसान नहीं रहा होगा. उनके अंदर भी कई सवाल उमड़-घुमड़ रहे होंगे. एक ही झटके में पति दुर्गा सोरेन के खून-पसीने, त्याग-संघर्ष और बलिदान के साथ सींची गयी झामुमो से नाता तोड़ना, एक मुश्किल भरा पल रहा होगा, उसकी टिस भी रही होगी और सामने देवर हेमंत का चेहरा भी रहा होगा. हेमंत की दहाड़ भी होगी कि “झुकेगा नहीं झारखंड”. हालांकि इस दहाड़ को लगाते वक्त पूर्व सीएम हेमंत ने यह परिकल्पना भी नहीं की होगी कि इसकी शुरुआत तो खुद उनके अपने घर से ही होनी वाली है. उनकी ही मां समान भाभी और उस दुर्गा दा की पत्नी, जिनकी गोद में उनका बचपन गुजरा. आज जब वह कोलकोठरी में कैद होंगे. उनके ही शब्दों में जल जंगल और जमीन पर भाजपा की कुदृष्टि के खिलाफ संघर्ष कर रहे होंगे. दुर्गा दा के सपनों का झारखंड बनाने में अपनी शहादत दे रहे होंगे, सीता सोरेन उस भाजपा के साथ खड़ी हो जायेगी, जिसे कभी दुर्गा दा ने पूंजिपतियों और सामन्तवादियों की पार्टी करार दिया था.
हेमंत की कालकोठरी की पीड़ा और तड़प का सार्वजनिक अभिव्यक्ति
और शायद कालकोठरी में कैद हेमंत की इसी पीड़ा को सार्वजनिक अभिव्यक्ति प्रदान करने सीता सोरेन की भाभी कल्पना सोरेन ने लिखा कि “हेमन्त जी के लिए स्वर्गीय दुर्गा दा, सिर्फ बड़े भाई नहीं बल्कि पिता तुल्य अभिभावक के रूप में रहे। 2006 में ब्याह के उपरांत इस बलिदानी परिवार का हिस्सा बनने के बाद मैंने हेमन्त जी का अपने बड़े भाई के प्रति आदर तथा समर्पण और स्वर्गीय दुर्गा दा का हेमन्त जी के प्रति प्यार देखा। हेमन्त जी राजनीति में नहीं आना चाहते थे परंतु दुर्गा दादा की असामयिक मृत्यु और आदरणीय बाबा के स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें राजनीति के क्षेत्र में आना पड़ा। हेमन्त जी ने राजनीति को नहीं बल्कि राजनीति ने हेमन्त जी को चुन लिया। जिन्होंने आर्किटेक्ट बनने की ठानी थी उनके ऊपर - अब झामुमो, आदरणीय बाबा और स्व दुर्गा दा की विरासत तथा संघर्ष को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी थी। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का जन्म समाजवाद और वामपंथी विचारधारा के समन्वय से हुआ था। झामुमो आज झारखण्ड में आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों एवं अल्पसंख्यकों समेत सभी गरीबों, वंचितों और शोषितों की विश्वसनीय आवाज बन कर आगे बढ़ रही है। आदरणीय बाबा एवं स्व दुर्गा दा के संघर्षों और जो लड़ाई उन्होंने पूंजीपतियों-सामंतवादियों के खिलाफ लड़ी थी उन्हीं ताकतों से लड़ते हुए आज हेमन्त जी जेल चले गये। वे झुके नहीं। उन्होंने एक झारखण्डी की तरह लड़ने का रास्ता चुना। वैसे भी हमारे आदिवासी समाज ने कभी पीठ दिखाकर, समझौता कर, आगे बढ़ना सीखा ही नहीं है। झारखण्डी के DNA में ही नहीं है झुक जाना। सच हम नहीं, सच तुम नहीं, सच है सतत संघर्ष ही”
समाजवाद और वामपंथी विचारधारा के सहारे सीता को घेरने की कवायद
यदि इस बयान के समझने की कोशिश करें तो साफ है कि कल्पना कहीं से भी सीता सोरेन का नाम नहीं ले रही है. लेकिन पूंजीपतियों-सामंतवादियों के खिलाफ संघर्ष और समाजवाद और वामपंथी विचारधारा को झामुमो का विचारधारा घोषित यह संकेत भी दे दिया कि सियासत की जिस राह पर उनकी बड़ी दीदी यानि सीता सोरेन निकल पड़ी हैं, वह कहीं से भी दुर्गा सोरेन के सपनों की राह नहीं है, यह उनके संघर्ष का रास्ता नहीं है. जल जंगल और जमीन की राह नहीं है, आदिवासी मूलवासियों की विरासत और संघर्ष को संरक्षित-सुरक्षित करने की सियासत नहीं है. साफ है कि झामुमो को अलविदा कहने के साथ ही कल्पना सोरेन और सीता सोरेन के बीच दुर्गा सोरेन की सियासी विरासत पर कब्जे की जंग छिड़ती दिख रही है. अब देखना होगा कि इस संघर्ष में सीता सोरेन को झामुमो के उन कार्यकर्ता कितना साथ मिलता है, जिसकी जमीन दुर्गा सोरेन ने तैयार की थी. हालांकि झारखंड की सियासत में कमल के सहारे सीता की सियासी राह इतनी आसान नजर नहीं आती. निश्चित रुप से विधायक और सांसद की लड़ाई तो लड़ी जा सकती है, लेकिन किसी बड़ी सियासी महत्वकांक्षा सपना पालना मुश्किल नजर आता है. लेकिन सियासत तो इसी संभावनाओं का खेल है. शायद सीता को इस फैसले में कोई संभावना दिखी हो. अपना और अपनी बेटियों का कोई भविष्य दिखा हो.
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