Ranchi-झामुमो की सियासत में हेमंत की इंट्री के पहले दिशोम गुरु शिबू सोरेन के बाद यदि किसी एक शख्स का जलबा चलता था तो वह चेहरा था दुर्गा सोरेन का. यह वह दौर था. जब दुर्गा सोरेन की गिनती पार्टी के संघर्षशील और युवा चेहरों में की जाती थी. एक तरफ दुर्गा संगठन को धारदार बनाने के लिए जमीन पर संघर्ष कर रहे थें. पार्टी कार्यकर्ताओं में हौसले का संचार भी कर रहे थें और साथ ही जमीन से कार्यकर्ताओं की नयी पौध तैयार कर रहे थें, तो दूसरी ओर चुनावी अखाड़े में ताल ठोक झामुमो के लिए सियासी सरजमीन भी तैयार कर रहे थें. जिस जामा विधान सभा से सीता सोरेन 2009, 2014 और 2019 में लगातार झामुमो का परचम फहरा रही है, उस दौर में उस जामा की पहचान दुर्गा सोरेन के साथ जुड़ी होती थी, दुर्गा सोरेन इसी जामा से 1995 और वर्ष 2000 में विधान सभा पहुंचे थें. हालांकि बीच में दुर्गा का यह काफिला तब रुका, जब 2005 में भाजपा के सुनील सोरेन के हाथों सियासी शिकस्त खाना पड़ा. इस बीच दुर्गा सोरेन ने गोड्डा से निशिकांत के विरुद्ध भी किस्मत आजमाने की कोशिश की, लेकिन किस्मत देगा दे गयी. उन्हे निशिकांत के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा. यह कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है कि जिस जामा पर कभी दुर्गा और तो कभी सीता का जलबा कायम हुआ. उसकी जमीन वर्ष 1985 में खुद दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने तैयार की थी. तब गुरु जी इसी जामा से बिहार विधान सभा पहुंचे थें. इस प्रकार 1985 से जामा में हुआ झामुमो यह सियासी सफर आज भी जारी है, आज भी जामा को झामुमो का अभेद किला माना जाता है. भाजपा आज भी जामा में कमल खिलाने का ख्वाब बुन रही है. इस ख्वाब को जमीन पर उतारने का एक से बढ़ कर एक सियासी प्रयोग कर रही है. सीता का यह प्रयोग भी भाजपा की सियासी प्रयोगशाला से निकला एक बड़ा मास्ट्रर स्ट्रोक है, लेकिन संताल की इस जमीनी पर यह दांव कितना सफल होता है, उसके लिए अभी इंतजार करना होगा. लेकिन इतना साफ है कि इस बार भाजपा ने अपना अंतिम दांव खेला है, पिछले तीन बार से जामा में झामुमो का परचम फहराती रही दुर्गा सोरेन की पत्नी और दिशोम गुरु की बड़ी बहुरानी को अपने पाले में ला खड़ा कर दिया है.
21 मई 2009 को दुर्गा सोरेन की मौत और उसी वर्ष जामा से सीता की सियासी इंट्री
यहां याद रहे कि सीता की इस सियासी सफर के पीछे दुर्गा का खून-पसीना और दिशोम गुरु का संघर्ष है. और यदि 21 मई 2009 को महज 40 वर्ष की आयु में दुर्गा सोरेन की मौत नहीं होती, तो यह मानने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि आज भी जामा में दुर्गा सोरेन का डंका बज रहा होता. और तब पत्ता नहीं, सीता सोरेन की सियासी भूमिका क्या होती? लेकिन वर्ष 2009 ना सिर्फ सीता के लिए दुखों का पहाड़ लेकर आया, बल्कि दुर्गा के रुप में झामुमो ने अपना सबसे मजबूत और धमाकेदार सियासी चेहरा भी खो दिया. जिस दुर्गा के एक इशारे पर कार्यकर्ताओं की फौज मैदान में हुंकार लगाता था. जल जंगल और जमीन की लड़ाई का सिंहनाद करता था. सोरेन परिवार के साथ, उन कार्यकर्ताओं के चेहरे पर उदासी की चादर पसरी थी? इस बीच सीता सोरेन के सामने अपनी तीन बेटियों जयश्री सोरेन, राजश्री सोरेन और विजयश्री सोरेन के भविष्य का सवाल भी खड़ा था. और शिबू सोरेन जो दुर्गा की मौत के बाद लगभग टूट चुके थें, सीता सोरेन को उसी जामा से सियासी अखाड़े में उतराने का एलान किया, जिसकी रहनुमायी कभी दुर्गा सोरेन करते थें.
दुर्गा के जामा में सीता का “कमल”
आज दुर्गा सोरेन की मौत के करीबन 15 वर्षों के बाद सीता सोरेन जामा की उसी जमीन पर कमल खिलाने निकल पड़ी थी, सीता की इस पलटी के पीछे की सियासत को सियासी गलियारों में समझने की कोशिश जारी है. इस बीच कुछ जानकारों का दावा है कि सीता सोरेन हाउस ट्रेंडिग मामला और आय से अधिक संपति के मामले में भाजपा के निशाने पर थी, किसी भी वक्त उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटक सकती थी. भाजपा सांसद निशिकांत इस बात का दावा ठोक रहे थें कि आज नहीं कल सीता का जेल जाना तो तय है, निशिकांत के इस हुंकार के बाद सीता की डगर मुश्किल होती नजर आ रही थी और शायद यही वह टर्निंग प्वाइंट था जब इन आरोपों से मुक्ति से लिए सीता ने दुर्गा के जामा में कमल खिलाने का फैसला कर लिया.
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