Ranchi-लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजते ही झारखंड की सियासत में हर दिन एक नया रंग देखने को मिल रहा है. अपने अपने सामाजिक समीकरण और सियासी महत्वकांक्षाओं के हिसाब से पाला बदल का खेल भी जारी है, कल ही पूर्व सीएम हेमंत की भाभी और जामा विधायक सीता सोरेन ने झामुमो को झटका देते हुए कमल की सवारी करने का एलान किया था और उसके बाद पूरी झारखंड भाजपा जश्न में डूबी नजर आ रही थी. यह दावा किया जाने लगा था कि सीता के चेहरे के सहारे अब झामुमो के आदिवासी मूलवासियों में सेंधमारी का मार्ग प्रशस्त हो चुका है. लेकिन आज जैसे ही सुबह की पहली किरण फैली, सियासी गलियारों में झारखंड की सियासत में विनोद बिहारी महतो और निर्मल महतो के बाद सबसे बड़ा कुर्मी चेहरा माने जाने वाले टेकलाल महतो के पुत्र और झामुमो की नेता मथुरा महतो के दामाद मांडू विधायक जेपी पेटल का भाजपा छोड़ने की खबर तैरनी लगी. और कुछ ही देर बाद इसकी पुष्टि भी हो गयी. लोकसभा चुनाव के पहले जेपी पटेल के इस पालाबदल के कई गंभीर संकेत हैं. जिसका झारखंड की सियासत पर दूरगामी असर पड़ सकता है और खास कर लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इसके व्यापक असर देखने को मिल सकता है.
भाजपा में जेपी पेटल की सियासत पर कैंची
यहां याद रहे कि जेपी पेटल की सियासी इंट्री झामुमो के बनैर तले ही हुई थी और झामुमो के झंडा तले ही 2014 विधान सभा में इंट्री ली थी. हालांकि उसके बाद वह कमल की सवारी कर बैठे और 2019 में भाजपा के चुनाव चिह्न पर विधान सभा पहुंचे. दावा किया जाता है कि कमल की सवारी करने के पीछे जेपी पटेल की मंशा अपने सियासी कद में विस्तार करने की थी. झारखंड में जमीनी विस्तार में जुटे भाजपा के कुछ नेताओं ने पटेल पार्टी के अंदर और झारखंड की सियासत में कुर्मी चेहरा के रुप में स्थापित करने आश्वासन दिया था. लेकिन जेपी पटेल को निराशा तब हाथ लगी, जब वह नेता प्रतिपक्ष बनाये जाने से चूक गयें.. पार्टी के अंदर ही विरोध के स्वर गूंजने लगे. पार्टी में स्थापित नेताओं को जेपी पटेल को नेता प्रतिपक्ष बनाये जाने के बाद अपनी सियासत डूबती नजर आने लगी, इन नेताओं को जेपी पटेल का कुर्मी जाति से आने खटकने लगा, उन्हे इस बात की बेचैनी सताने लगी कि जिस प्रकार झारखंड में कुर्मी जाति की करीबन 20-25 फीसदी की आबादी है, उस हालत में नेता प्रतिपक्ष के रुप में ताजपोशी के बाद जेपी पटेल अगले सीएम रुप में मजबूत चेहरे के रुप में स्थापित हो जायेंगे, और यहीं से जेपी पटेल की सियासत पर कैंची चलाने की शुरुआत हो गयी.
पूरी नहीं होती दिख रही थी जेपी पटेल की सियासी चाहत
और उसके बाद सियासी गलियारे में जेपी पटले को लेकर कई तरह की खबरें तैरने लगी.जेपी पटेल के सामने भाजपा की इस अन्दरुनी सियासत में अपना सियासी भविष्य दांव पर दिखने लगा, जिस सियासी विस्तार की चाहत के साथ वह टेकलाल महतो की सियासत को तिलाजंलि देकर भाजपा का दामन थामा था, उनकी वह महत्वकांक्षा अब भाजपा में दम तोड़ती नजर आयी और लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजते ही जेपी पटेल को अचानक से अपने पिता टेकलाल महतो का आदिवासी मूलवासियों का संघर्ष, झारखंडी अस्मिता और जल जंगल और जमीन की याद सताने लगी. आज जेपी पटेल को राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में खुशहाल भारत की तस्वीर बनती दिख रही है.
भाजपा के लिए कितना बड़ा झटका है जेपी पटेल का पाला बदल
यहां याद रहे कि झारखंड में आदिवासियों के बाद कुर्मी महतो की सबसे बड़ी आबादी है, हालांकि कुर्मी नेताओं के द्वारा 30 फीसदी कुर्मी आबादी होने का दावा किया जाता है, लेकिन कई जानकारों का मानना है कि यह निश्चित रुप से 20 से 25 फीसदी के आसपास है. यहां यह भी याद रहे कि कुर्मी जाति के द्वारा कई बरसों से लगातार अनुसूचित जन जाति में शामिल करने की मांग हो रही है, कुर्मी जाति के विभिन्न सामाजिक संगठनों के द्वारा इस मांग को लेकर कई बार रेल रोको अभियान भी चलाया गया है, जो काफी हद तक सफल रहा है. इस बंद का असर झारखंड के साथ ही ओडिशा से लेकर बंगाल तक देखने को मिला है. लेकिन कई भाजपा कभी भी कुर्मी जाति की इस मांग के साथ खडी होती नजर नहीं आयी, और इस आग को और भी हवा तब मिली. जब खूंटी सांसद और केन्द्रीय जनजातीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने सार्वजनिक रुप से इस मांग को खारिज कर दिया. और दावा किया जाता है कि इसके बाद ही झारखंड में कुर्मी पॉलिटिक्स की दिशा और दशा बदलने लगी. कुर्मी जाति का एक बड़ा हिस्सा भाजपा से नाराज दिखने लगा. अर्जुन मुंडा के साथ ही भाजपा को चुनावी समर में सबक सिखाने के दावे किये जाने लगे.
किस-किस लोकसभा में पड़ सकता है इसका असर
दावा किया जाता है कि जेपी पटेल के इस पाला बदल के पीछे एक कारण यह भी है. कुर्मी मतदाताओं के बीच पसरती इस नाराजगी की भनक जेपी पटेल को भी है, और इस हालत में जेपी पेटल ने अपने सियासी भविष्य को संवारने के लिए भाजपा को बॉय बॉय करने का फैसला किया. अब सवाल है कि जेपी पेटल के इस पालाबदल का भाजपा के सियासी भविष्य पर कितना असर पड़ेगा, तो उसके समझने के लिए यह जरुरी है कि उतरी छोटानागपुर से पूरे कोल्हान में कुर्मी मतदाताओं की उपस्थिति को समझा जाय. हजारीबाग, कोडरमा, गिरीडिह के साथ ही पूरे कोल्हान में कुर्मी जाति की आबादी करीबन तीस फीसदी की है. इस हालत में यदि कुर्मी मतदाता में पसरती यह नाराजगी परवान चढ़ता है, और समय रहते भाजपा इसका समाधान नहीं खोजती है, तो इसका व्यापक असर गिरिडीह, हजारीबाग, कोडरमा, रांची, जमशेदपुर और पूरे कोल्हान में देखने को मिल सकता है और इसके साथ ही विद्य़ूत वरण महतो के साथ ही अर्जुन मुंडा को भी खूंटी में जीत का वरमाला पहनने के लिए जद्दोजहद करना पड़ सकता है
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