Ranchi-लोकसभा चुनाव के ठीक पहले सीता सोरेन को कमल की सवारी करवा कर भाजपा प्रदेश बाबूलाल मरांडी ने संताल की सियासत में भूचाल खड़ा कर दिया है. भाजपा दिल्ली मुख्यालय में कुछ ही देर में सीता सोरेन के साथ ही उनकी दोनों बेटियां जयश्री सोरेन और राजश्री सोरेन के द्वारा भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने की खबर है. इस बीच खबर है कि जयश्री सोरेन को भाजपा राजमहल या दुमका संसदीय सीट से मोर्चे पर उतराने की तैयारी में है. और यदि ऐसा होता है तो दुमका से भाजपा उम्मीदवार और निर्वतमान सांसद और राजमहल से कमल पर ताल ठोकने उतरे ताला मरांडी की सियासत को झटका लग सकता है, खबर है कि पार्टी इसमें किसी एक को मैदान से वापस लेने की तैयारी में है, वैसे खबर यह भी है कि सुनील सोरेन अखाड़े में मौजूद रहेंगे, पार्टी ताला मरांडी को मैदान से बाहर करने का फैसला कर सकती है, और ताला मरांडी के स्थान पर जयश्री सोरेन को मैदान में उतार सकती है.
यहां बता दें कि लम्बे अर्से से सीता सोरेन का पार्टी से नाराजगी की खबर सामने आ रही थी. चंपाई मंत्रिमंडल विस्तार के वक्त भी सीता की नजर मंत्रिमंडल पर बनी हुई थी. लेकिन एन वक्त पर यह बाजी बसंत सोरेन के हाथ लगी और इसके बाद भी सीता सोरेन खामोशी की चादर ओढ़े हुई थी. और उनके द्वारा पार्टी के सभी पदों के साथ ही अपनी विधायकी से भी इस्तीफे देने की घोषणा की गयी है. अपने सुसर और झारखंड मुक्ति मोर्चा सुप्रीमो शिबू सोरेन को लिखे पत्र में अपने परिवार के खिलाफ साजिश का आरोप लगाया है. साथ ही बुझे मन से अपने इस्तीफे की घोषणा की है.
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सियासी गलियारों में गर्म था कयासों का बाजार
ध्यान रहे कि जब पश्चिमी सिंहभूम से सांसद गीता कोड़ा ने कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा की सवारी की थी, उस वक्त भी सियासी गलियारों में इस बात के दावे किये जा रहे थें कि गीता कोड़ा के साथ ही बाबूलाल का यह अभियान समाप्त नहीं होने जा रहा, हालांकि जिस तरीके इन खबरों के बीच भी गोड्डा सांसद निशिकांत सीता सोरेन पर आरोपों की बौछार कर रहे थें, इस बात का ताल ठोक रहे थें कि सीता सोरेन के साथ ही पूरा सोरेन परिवार भ्रष्टाचार में संलिप्त है. निशिकांत हाउस ट्रेडिंग का पुराना मामला भी उठा रहे थें और इस बात का दावा ठोक रहे थें कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सीता के खिलाफ जांच का रास्ता साफ हो गया है, आज नहीं तो कल उनका जेल जाना तय है. अब देखना होगा कि पलटी के बाद भी क्या निशिकांत सीता के खिलाफ जांच की मांग कायम रहते हैं या फिर कमल की इस सवारी के साथ ही सारे मामले दफन हो जाते हैं.
इस पलटी के बाद क्या आसान होने जा रहा है संताल में भाजपा की राह
यहां ध्यान रहे कि संताल में विधान सभा की कुल 18 सीटें आती हैं, जिसमें से 9 पर झामुमो, 5 पर कांग्रेस और 4 पर भाजपा का कब्जा है. जबकि झाविमो के द्वारा जीती गयी दो सीटें भी भाजपा के साथ ही है. इस प्रकार संताल के कुल 18 विधान सभा में आज भाजपा के पास 4, जबकि 14 पर महागठबंधन का कब्जा है. हालांकि झामुमो कोटा से एक विधायक लोबिन हेम्ब्रम भी लगातार सरकार को निशाने पर लेते रहे हैं, और अब सीता भी भाजपा के साथ होने वाली है. इस नजरिये से देखे तो सीता के इस बगावत के बाद संताल में भाजपा एक ताकत से साथ सामने आती दिखती है। लेकिन यदि हम सामाजिक समीकरणोँ की बात करें, तो स्थिति बदली नजर आती है, और खासकर तब संताल की सियासत में सीता का कद इतना बड़ा नजर नहीं आता कि वह अपने दम पर कोई कमाल कर सकें, संताल की सियासत पर नजर रखने वालों का मानना है कि सीता की इस पलटी से झामुमो का जो सामाजिक आधार है. उसमें कोई सेंधमारी नहीं होने वाली, क्योंकि संताल की सियासत में सीता का यह सियासी सफर झामुमो के जनाधार के बल पर ही बढ़ता रहा है. इस हालत में भले ही सीता पलटी मार चुकी हों, लेकिन भाजपा के लिए अभी भी संताल का किले भेदना एक मुश्किल चुनौती है.
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