TNPDESK-दो सासंदों वाली भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने का श्रेय यदि किसी एक मात्र नेता के सिर सजता है, तो वह निश्चित रुप से कभी भाजपा के अंदर लौह पुरुष से रुप में सम्मानित किये जाते रहे लालकृष्ण आडवाणी हैं, वही आडवाणी जिन्होंने वीपी सिंह के मंडल पॉलिटिक्स को मात देने के लिए भाजपा के अंदर औपचारिक रुप से ‘राम पॉलिटिक्स’ को अंगीकार किया था. यह वह दौर था, जब मंडल की आग में दहकते दलित पिछड़ी जातियों के युवाओं को अपने नायक वीपी सिंह में अपना सुनहरा भविष्य दिखलायी पड़ रहा था, इन जातियों के सारे युवा एक स्वर के साथ तब वीपी सिंह के साथ खड़े नजर आ रहे थें, और दूसरी ओर ‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है’ के कसीदे पढ़ने वाली भाजपा मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करते ही उसी वीपी सिंह को देश का कलंक बता रही थी, ‘तू राजा नहीं रंक है देश का कलंक है” के सूर-ताल पर शहरों में वीपी सिंह की एक खलनायक वाली तस्वीर गढ़ी जा रही थी, और इसी मंडल की काट में तब आडवाणी ने पूरे देश में राम रथ यात्रा की शुरुआत की थी, भले ही इस यात्रा के बावजूद भाजपा को सत्ता नहीं मिली हो, लेकिन कभृ दो सांसदों से अपना सियासी सफर शुरु करने वाली भाजपा देश की मुख्य विपक्ष के रुप में स्थापित हो चुकी थी. और यही कारण है कि भाजपा के अंदर से आडवाणी को देश के असली लौह पुरुष के रुप में स्थापित करने की कोशिश भी की गयी, हालांकि इस लौह पुरुष की छवि के बावजूद आडवाणी अपने नेतृत्व में भाजपा को सत्ता दिलवाने में नाकामयाब रहें, और कभी राम रथ यात्रा में उनके सारथी रहे पीएम मोदी के उदय के बाद उनके सियासी बियावान का सफर शुरु हो गया, सबसे पहले तो मार्गदर्शक मंडल में भेज कर सियासी परिदृष्य के दूर करने की रणनीति अपनाई गयी, हालांकि यह वैसा मार्गदर्शक मंडल हैं, जिसकी कभी कोई बैठक नहीं होती, और जब बैठक ही नहीं होती तो कैसा मार्ग दर्शन और कैसा मंडल.
नहीं आने की शर्त पर मिला आमंत्रण
खबर है कि 96 वर्षीय आडवाणी को रामलला के प्राण प्रतिष्ठा पर इस शर्त पर आंमत्रित किया गया था कि वह इस समारोह का हिस्सा नहीं बनेंगे. अब भला आप इसे सम्मान कहेंगे या असम्मान यह आपके विवेक पर हैं. दरअसल रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने के न्योता देने के बाद राम मंदिर ट्रस्ट से जुड़े और भाजपा नेता चंपत राय ने कहा था कि आडवाणी सहित मुरली मनोहर जोशी को इस गरिमामयी क्षण पर आने का आमंत्रण तो जरुर दिया गया है, लेकिन इसके साथ ही उनके उम्र का ध्यान रखते हुए उनसे इस कार्यक्रम से दूरी बनाने का भी अनुरोध किया गया है, अब भला इस आमंत्रण पर कौन कहां जा सकता है, और यही से इस बात की पुष्टि होती है कि शायद भाजपा नेताओं के किसी कोने में यह डर बैठा था कि यदि इस अवसर पर आडवाणी की उपस्थिति होती है, मीडिया कैमरा का फोकस उन जोर पकड़ सकता है, और वर्तमान भाजपा नेतृत्व को यही कबूल नहीं है, उसके लिए तो एक ही चेहरा सब कुछ है. सवाल यह भी कि यदि आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को महज उनके उम्र के कारण या इस ठंड के कारण इस कार्यक्रम से दूर रहने की सलाह दी गयी तो यह बात दूसरे अतिथियों पर लागू क्यों नहीं होता.
भगवान राम को तंबू से मंदिर प्रवेश में आडवाणी की भूमिका को कोई नकार नहीं सकता
कारण जो भी हो, लेकिन इतना तय है कि यदि राम अपने तंबू से मंदिर में प्रवेश कर रहे हैं तो इसका सबसे बड़ा श्रेय आडवाणी को ही जाता है, आज भले ही नयी पीढ़ी को आडवाणी का क्रेज याद नहीं हो, लेकिन एक दौर भी भाजपा का मतलब ही वाजपेय, आडवाणी और जोशी की तिकड़ी मानी जाती थी, ठीक वैसे ही जैसे आज पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी को माना जाता है, लेकिन तब भाजपा के सेकेंड लाइन नेतृत्व में रहे आडवाणी को कभी भी शीर्ष तक पहुंचने का सौभाग्य नहीं मिला, अब देखना होगा कि आज के सेकेंड लाइन नेतृत्व को यह सौभाग्य मिल पाता है या नहीं, वैसे राजनीति में सफलता और असफलता के बीच कई दीवार होती है, और जरुरी नहीं है कि हर बार उस दीवार का तोड़ ही दिया जाय, लेकिन सफलता असफलता की बात अपनी जगह, लेकिन उस लौह पुरुष का यह हस्श्र दुखदायक जरुर है. खास कर तब जब हम अपनी संस्कृति में बुजुर्गों के सम्मान का दावा करते हैं, यह पीड़ा और भी कष्टकारी है.
अंधभक्त अपने अंदर के रावण को बाहर निकालें! भाजपा के राम भक्ति के दावे पर तेजप्रताप यादव का तंज