Patna-जिस भाजपा के उपर पूरे देश में विपक्षी दलों की भली-चंगी सरकारों को ऑपरेशन लोटस के सहारे जमींदोज करने का आरोप लगता रहा है. बिहार की सरजमीन पर अब उसी भाजपा को ऑपेरशन लालटेन के सामने पसीने छुटते दिख रहे हैं, प्रधानमंत्री मोदी की ताजपोशी के बाद, शायद यह पहली ऐसी घटना है, जब भाजपा को अपने विधायकों को बचाने के लिए भागम-भाग करना पड़ रहा है. विपक्षी विधायकों को तोड़ने के हर कामयाबी के बाद जो भाजपा बड़े शातीर अंदाज में यह सवाल दागा करती थी कि आखिर उनके विधायक टूटते ही क्यों है? वह बिकते क्यों है? और यह सवाल बड़ा माकूल था, कोई भी खरीदता तब ही है, जब सामने वाला बिकने को तैयार हो, लेकिन अब वही भाजपा बिहार के सियासी चक्रव्यूह में फंस कर अपने विधायकों को लेकर भागम-भाग करती नजर आ रही है, और यह स्थिति तब है, जब राजद के पास ना तो ईडी है और सीबीआई. सारी एजेंसियां भाजपा के पास, सरकार उसकी मुठ्ठी में और खेल राजद का, कल्पना कीजिये यदि आज वही सारी एजेंसियां राजद के पास होती, सरकार राजद का होता तो परिदृश्य क्या होता? और भाजपा की हालत क्या होती.
तेजस्वी ने कहा था कि खेल अभी बाकी है
लेकिन भाजपा को अपने विधायकों को लेकर यह भागम भाग क्यों करनी पड़ रही है, इसे समझने के लिए 28 जनवरी के उस दिन के याद कीजिये, जब पर मीडिया हाउस में एक ही खबर थी कि बिहार में खेला हो गया, और उसके जवाब में सामने आते हुए तेजस्वी ने कहा था कि चाचा की पलटी तो ठीक है, लेकिन खेल अभी बाकी है. तो क्या तेजस्वी ने अपने खेल की शुरुआत कर दी है, भाजपा का अपने विधायकों के साथ इस तरह भागम भाग करना तो इसी ओर इशारा कर रहा है, और यह हालत भी तब है राज्य में उसी की सरकार है. लेकिन दूसरी सच्चाई तो यह भी है कि सीएम नीतीश के सामने भाजपा के विधायकों को अभयदान देने से भी बड़ी चुनौती तो खुद अपने विधायकों को बचाये रखने की है. आज के दिन भाजपा से ज्यादा संकट ग्रस्त तो खुद जदयू नजर आ रही है, एक दर्जन से अधिक विधायकों का मोबाईल स्वीच ऑफ बताया जा रहा है, एक विधायक को नेपाल से पकड़ कर मंगाया गया है, इस हालत में सीएम नीतीश अपने विधायकों को एकजुट करें या भाजपा के विधायकों की पहरेदारी.
नीतीश की किस्ती मांझी के भरोसे
यहां याद रहे कि बिहार में 12 जनवरी को विधान सभा में सरकार को अपना बहुमत साबित करना है, यदि आंकडों की बात करें तो कागज पर सरकार के पास पर्याप्त संख्या बल मौजूद है, दूसरी ओर महागठबंधन के पास 115 विधायकों की ताकत है, जो सरकार बनाने से महज सात कम है, इस हालत में यदि भाजपा जदयू के दस विधायक विधान सभा के फ्लोर से गायब होते हैं, तो कागज पर दिख रहा बहुमत जमीन पर टिक नहीं पायेंगा, और संकट यह है कि पूर्व सीएम जीतनराम मांझी हर दिन अपना एक नया बयान देकर बिहार की सियासत को उलझाते जा रहे हैं, मांझी ने एक पलटी मारी नहीं कि नीतीश की पांचवीं पलटी की हवा निकल जायेगी, ध्यान रहे कि यह वही नीतीश कुमार हैं, जिन्होंने विधान सभा के अंदर मांझी के साथ तू-तड़ाक की भाषा का उपयोग किया था और किस्मत का खेल भी देखिये, कि आज उसी मांझी के हाथ बिहार की सियासत का पतवार है. मांझी यदि चाहें तो बेहद आसानी से बगैर किसी तू-तड़ाक के साथ बिहार की सियासत से सुशासन बाबू का 17 वर्षों से चल रहा खेल को एक ही झटके में बंद कर सकते हैं, अब फैसला मांझी के हाथ है.