Ranchi-देश के इतिहास की शायद यह पहली घटना है, या फिर झामुमो के शब्दों को उधार लें, तो सियासी रंजिश में बदले की यह वह पहली कार्रवाई है, जिसमें एक मुख्यमंत्री को ईडी या किसी भी केन्द्रीय एजेंसियों के द्वारा कालकोठरी में कैद किया गया हो, और गिरफ्तारी भी उस राजभवन से हुई हो, जिस राजभवन पर संवैधानिक व्यवस्था को बनाये रखने की महत्तर जिम्मवारी है और यह लम्हा कितना दर्द भरा और यादागार है, इसकी एक बानगी पूर्व सीएम हेमंत की जीवन संगनी कल्पना सोरेन के उन अल्फाजों में समझा जा सकता है, जिसका इजहार वह हेमंत सोरेन के उसी ट्वीटर हैंडल से कर रही हैं, जहां वह लिखती हैं कि “जब तक झारखण्डी योद्धा हेमन्त सोरेन जी केंद्र सरकार और बीजेपी के षड्यंत्र को परास्त कर हम सब के बीच नहीं आ जाते, तब तक उनका यह एकाउंट, मेरे, यानी उनकी जीवन साथी कल्पना मुर्मू सोरेन द्वारा चलाया जाएगा. हमारे वीर पुरुखों ने अन्याय और दमन के खिलाफ हूल और उलगुलान किया था, अब फिर वह वक्त आ गया है. आप सभी का स्नेह और आशीर्वाद पूर्व की भांति बना रहे. लड़े हैं, लड़ेंगे! जीते हैं, जीतेंगे! जय जोहार!जय झारखण्ड!”
एक वीर झारखण्डी योद्धा की जीवन साथी हूं, संघर्ष की शक्ति बनूंगी
अपने दूसरे ट्वीट में वह लिखती है कि “झारखण्ड के अस्तित्व और अस्मिता की रक्षा के लिए हेमन्त जी ने झुकना स्वीकार नहीं किया. उन्होंने षड्यंत्र से लड़ना और उसे हराने के लिए अपने आप को समर्पित करना बेहतर समझा. आज हमारी शादी की 18वीं सालगिरह है, पर हेमन्त जी परिवार के बीच नहीं हैं. बच्चों के साथ नहीं हैं. विश्वास है वो इस षड्यंत्र को हरा विजेता बनकर हम सभी के साथ शीघ्र होंगे. मैं एक वीर झारखण्डी योद्धा की जीवन साथी हूं. आज के दिन मैं भावुक नहीं होऊंगी. हेमन्त जी की तरह ही विषम परिस्थितियों में भी मुस्कुराते हुए, उनके साहस और संघर्ष की शक्ति बनूंगी.”
हार और हताशा के समंदर में गोता लगाने के बजाय बगवात का बिगुल
कल्पना के इन अल्फाजों पर गौर कीजिये, झारखण्डी योद्धा की जीवन साथी हूं, संघर्ष की शक्ति बनूंगी” साफ है कि कल्पना सोरेन हेमंत की गिरफ्तारी के बाद कल्पना हार और हताशा के संमदर में गोत लगाने के बजाय इस बात का आह्वान करती नजर आ रही है कि हमारे पूर्वजों ने संघर्ष की एक लम्बी गाथा लिखी है, उलगुलान उनके जीवन हिस्सा और बगावत लहू में दौड़ता है, यहां एक चीज गौर करने वाली है कि कल्पना अपनी पीड़ा को बृहतर आयाम देने की कोशिश करती नजर आ रही हैं. अपनी व्यक्तिगत व्यथा, दर्द और गम को वह आदिवासी-मूलवासी समाज के सपनों का कत्ल के रुप में परोस रही हैं, वह उलगुलान और हूल की उस विरासत को याद दिलाती है, जिस राह पर चलते हुए कभी दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने महाजनों और जमींदारों के खिलाफ जनयुद्ध का आगाज किया था, कल्पना उस आग को भी आगे बढ़ाती नजर आती है जो बिरसा मुंडा से लेकर सिद्धू-कान्हू की विरासत का हिस्सा है.
सीलन भरे कमरे में कैद हेमंत
और अब जब यह खबर सामने आयी कि दिशोम गुरु के संघर्ष के उस वारिस को आज एक बेहद सीलन भरे कमरे में कैद रखा गया है, जिस कमरे में ना कोई रोशनदान है या ना कोई खिड़की और सामने सिर्फ अंधेरी सुंरग है, तो क्या यह संदेश आदिवासी मूलवासी समाज के बीच नहीं जा रहा कि जुल्म का जो कहर सिद्धू-कान्हू, चांद-भैरव से लेकर बिरसा मुंडा के साथ अंजाम दिया गया था, अब वही कहानी हेमंत के साथ दुहरायी जा रही है. और इसके बाद खुद कल्पना लिखती है कि “एक वीर झारखण्डी योद्धा की जीवन साथी हूं. आज के दिन मैं भावुक नहीं होऊंगी. हेमन्त जी की तरह ही विषम परिस्थितियों में भी मुस्कुराते हुए, उनके साहस और संघर्ष की शक्ति बनूंगी.” लेकिन यहां सवाल कल्पना सोरेन का उदास या हताशा में जाने का नहीं है, सवाल तो कल्पना सोरेन के उस संदेश का है, जो उनके ट्वीटर हैंडल से निकल कर अब आदिवासी समाज तक पहुंच रहा है, उनके युवाओं में यह आग फैल रही है.
गिरफ्तारी के बाद अचानक से सोशल मीडिया पर बढ़ा युवाओं का क्रेज
यहां ध्यान रहे कि गिरफ्तारी के बाद सोशल मीडिया पर हेमंत की लोकप्रियता सातवें आसमान पर है, उनके फॉलोअर्स की संख्या में अचानक से लाखों की वृद्धि हुई है, अब सवाल यह है कि ये युवा कौन हैं? किस सामाजिक समूह का हिस्सा है? और भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों के बावजूद इस दीवानगी का कारण क्या है. इसके पहले की हम इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश करें, यहां यह भी याद रखने की जरुरत है कि अब झामुमो यह दावा कर रहा है कि आने वाले दिनों में हर घर से हेमंत और हर चौराहे पर दिशोम गुरु खड़ा मिलेगा. तो क्या यह आग अब राजधानी रांची से निकर कर झारखंड की गलियों और खेत-खलिहानों तक पहुंचने वाली है. और इसका एक बड़ा संदेश यह होगा कि देखो कैसे एक आदिवासी-मूलवासी का चार्टेड हवाई जहाज से उड़ना, महंगी-मंहगी चमकदार गाड़ियों से घूमना, अब तक हम पर अपने शासन का डंटा हांकते रहे सामाजिक समूहों को हजम नहीं हो रहा था. और पहले से ही यह दावा किया जा रहा था कि एक आदिवासी मुख्यमंत्री को आलिशान जिंदगी की लत लग चुकी थी. कैसे सुधीर चौधरी जैसा एंकर यह दावा कर रहा था कि यदि जांच की गति इसी रफ्तार से आगे बढ़ती रही तो हेमंत सोरेन को अपने पूर्वजों के समान जंगल-झाड़ में अपनी जिंदगी को जीने को मजबूर होना पड़ेगा. और देखो आज सुधीर की वह भविष्यवाणी सच साबित हो रही है. हमारे दिशोम गुरु के बेटे को, एक आदिवासी सीएम को एक दुर्दांत अपराधियों के समान सीलन भरे कमरे में रखा जा रहा है, जहां कोई रोशनदान नहीं है, एक खिड़की नहीं है, और उसका कसूर क्या है, तो कसूर यह है कि वह एक आदिवासी मुख्यमंत्री होकर भी चार्टेड विमान से उड़ रहा था. चमकदार महंगी गाड़ियों का सफर कर रहा था. यही उसकी जुर्रत और यही उसका जुर्म था.
ट्वीटर के बाहर निकल यदि खेत खलिहानों तक पहुंची कल्पना तो फिर क्या होगा?
और यदि वाकई में सब कुछ इसी तरह जमीन तक उतरता चला गया तो क्या कल्पना सोरेन आज जिस उलगुलान का आह्वान कर रही है, 2024 का लोकसभा का चुनाव और उसके बाद का विधान सभा का चुनाव में उसका नजारा सामने होगा. युवाओं के बीच हेमंत की बढ़ती लोकप्रियता और दीवानगी तो इसी ओर इशारा कर रही है, लेकिन यहां यह भी देखना होगा कि इस आग को कैसे बचाये रखा जाता है, कल्पना सोरेन किस सीमा तक इस आग का विस्तार देती है, क्योंकि अभी तो यह आग सोशल मीडिया से निकल कर खेत खलिहानों तक पहुंच रही है, कल यदि खुद कल्पना उन खेत खलिहानों और पगडंडियों तक पहुंच गयी तो उसकी कल्पना की जा सकती है.
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