Patna-2023 की विदाई और 2024 के स्वागत में खड़ा बिहार और बिहारीबासी अपनी सांस रोक कर नीतीश कुमार की एक और उलटबांसी पर नजर जमाये हुए हैं. जितनी मुंह उतनी बातें, किसी का दावा है कि अंदरखाने सब कुछ तय हो चुका है, भाजपा आलाकमान ने बिहार के बड़बोले नेताओं को नीतीश पर किसी भी प्रकार का अमर्यादित टिप्पणी करने पर रोक लगा दी है, तो किसी का दावा है कि नीतीश की अंतिम जिद्द सुशील कुमार को मोदी बनाने की मांग को स्वीकार कर लिया गया है, 29 दिसम्बर को जैसे ही जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक खत्म होती है, सब कुछ शीशे की तरह साफ हो जायेगा.
नीतीश की नाराजगी की खबरें मीडिया प्रायोजित?
तो किसी का दावा है कि 29 दिसम्बर को ललन सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष के रुप में अपने इस्तीफे का एलान करने वाले हैं, उधर ललन सिंह कह रहे हैं कि वह कौन है जो हमारे इस्तीफे की खबर चला रहा है. जब उन्हे यह याद दिलाया जाता है कि यह दावा तो सुशील कुमार मोदी का है तो बेहद तंज भरे लहजे में उनका जवाब आता है कि सुशील मोदी नीतीश कुमार के बेहद करीब है? उन्हे तो हर बात की खबर रहती है, जिस व्यक्ति को भाजपा ही गंभीरता से नहीं लेती, उसे आप मीडिया कर्मी इतना भाव क्यों दे रहे हैं? जदयू में सब कुछ सामान्य है, और आज भी हम इंडिया गठबंधन के साथ मजबूती के साथ खड़े हैं, नीतीश की नाराजगी की तमाम खबरें मीडिया प्रायोजित है.
पटना के एक होटल में जदयू को तोड़ने के लिए साजिशकर्ताओं की बैठक
दूसरा दावा यह भी है कि करीबन 15 दिन पहले बिहार के एक होटल में जदयू के कुछ वरीय नेताओं की गुप्त बैठक हुई थी, इस बैठक में जदयू को तोड़ने की रणनीति बनायी गयी थी, दावा किया जाता है कि इस बैठक में खुद ललन सिंह भी शामिल थें, और इसके साथ ही नीतीश के बेहद खास रहे विजेन्द्र प्रसाद यादव की भी मौजदूगी थी, और विजेन्द्र प्रसाद यादव ने किसी भी कीमत पर अपनी वफादारी को बदलने से इंकार कर दिया, और इसके साथ ही जदयू को तोड़ने की साजिश का हवा निकल गयी, लेकिन यह खबर किसी प्रकार सीएम नीतीश के कानों तक पहुंच गयी, जिसके बाद ही ललन सिंह को हटाने की खबरें चलने लगी.
यह सब कुछ महज उपेन्द्र कुशवाहा की वापसी की बैटिंग है?
तीसरा दावा यह भी है कि चुंकि नीतीश की दिलचस्पी एक बार फिर से उपेन्द्र कुशवाहा में बढ़ी है और वह 2024 के पहले अपने छोटे भाई की एक बार फिर से जदयू में वापसी करवाने का मूड बना रहे हैं, और नीतीश की यही मंशा ललन सिंह को खटक रही है, क्योंकि दावा यह है कि उपेन्द्र कुशवाहा के द्वारा जदयू में वापसी के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष की शर्त लगायी गयी है. इस प्रकार नव वर्ष के पहले बिहार के चाय की दुकानों से लेकर दिल्ली तक बिहार में एक बड़े उठापटक की चर्चा तेज है. लेकिन इन खबरों से अलग जदयू नेताओं का दावा आज भी इंडिया गठबंधन के साथ मजबूती के साथ बने रहने का है, और दावा यह भी है कि ललन सिंह के इस्तीफे की खबरों को कोई आधार नहीं है.
हर पलटी के पहले चुप्पी साध जाते हैं नीतीश?
बावजूद इसके सीएम नीतीश का अतीत इन सारे कयासों को बल प्रदान कर रहा है, क्योंकि जब भी वह पलटी मारने की मुद्रा में आते हैं, तो बेहद मौन हो जाते हैं, और इसके साथ ही पार्टी नेताओं और अधिकारियों के साथ उनकी मुलाकात का सिलसिला तेज हो जाता है, लेकिन अंतिम अंतिम समय तक वह अपना मुंह नहीं खोलते और जब खोलते हैं तो बिहार की सियासत बदल चुकी होती है. इस हालत में बिहार में कल क्या होने वाला है, आज के दिन इसकी भविष्यवाणी करने की स्थिति में कोई नहीं है.
अपनी कुर्सी छोड़ भाजपा को सौंपने को तैयार हैं नीतीश?
लेकिन जिस प्रकार से दावे किये जा रहे हैं कि नीतीश कुमार अपनी कुर्सी छोड़ने को तैयार है, वह लोकसभा के साथ ही विधान सभा को भी भंग कर चुनाव करवाने के इच्छुक है, और सबसे बड़ा दावा कि वह अब इंडिया गठबंधन का संयोजक बनने के बजाय एनडीए का संयोजक बनने को तैयार हैं, कुछ हजम नहीं हो रहा है, आखिर नीतीश कुमार को एनडीए का संयोजक बनने में इतनी रुची क्यों होगी, और यदि वह पाला बदल भी लेते हैं तो क्या यह उनकी जिंदगी का अंतिम पाला बदल नहीं होगा. फिलहाल बिहार में कयासबाजियों का बाजार गर्म है, और इन कयासबाजियों ने हाड़ कंपकपाती ठंढ को भी मात दे दिया है, लेकिन इतना तय है कि कल की राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक से इसके कुछ संकेत मिलने लगेंगे.