Ranchi-धर्मांतरित आदिवासियों को डिलिस्टिंग की मांग के बीच झारखंड प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और झारखंड जनाधिकार मंच के सुप्रीमो बंधु तिर्की ने 4 फरवरी को रांची की सड़कों पर आदिवासी एकता महारैली के जरिये शक्ति प्रर्दशन का एलान किया है. यहां ध्यान रहे कि संघ परिवार के द्वारा छेड़ी गयी डिलिस्टिंग कि इस मुहिम को लेकर झारखंड से लेकर पूर्वोत्तर के तमाम राज्यों में आदिवासी समुदाय के बीच आग सुलगती दिखलायी पड़ रही है. डिलिस्टिंग की मांग को वृहतर आदिवासी समाज की एकता को विभाजित करने की संघी साजिश करार दिया जा रहा है.
बंधु की मुखरता का सियासी संदेश
लेकिन इस विवाद को सामने आने के बाद जिस प्रकार बंधु तिर्की अपनी मुखरता दिखलाते दिख रहे हैं, उसके बाद उनकी इस मुहिम को एक अलग सियासी चस्में से भी देखने की कोशिश की जा रही है. और दावा किया जा रहा है कि दरअसल डिलिस्टिंग का विवाद तो एक बहाना है, दरअसल इस विवाद की आड़ में बंधु तिर्की एक अलग सियासी चाल को अंजाम दे रहे हैं. यह शक्ति प्रदर्शन जितना डिलिस्टिंग का राग अलापते संघ परिवार के विरोध में है, उतना ही कांग्रेस के अंदर अपनी जमीनी ताकत का प्रर्दशन भी.
शक्ति प्रदर्शन की टाइमिंग को लेकर सवाल
दरअसल इस दावे के पीछे मुख्य वजह इसकी टाइमिंग और झारखंड कांग्रेस के अंदर की अपनी गुटबाजियां है. बंधु तिर्की ने इस शक्ति प्रर्दशन का एलान उस वक्त किया है, जबकि प्रदेश प्रभारी के रुप में अविनाश पांडेय की विदाई हो चुकी है, और प्रदेश प्रभारी की कमान जम्मू-कश्मीर से आने वाले गुलाम नबी मीर के हाथों में सौंप दी गयी है. हालांकि अभी तक गुलाम नबी मीर ने औपचारिक रुप से संगठन की कमान को अपने हाथों में नहीं लिया है, लेकिन इतना संदेश जरुर दे दिया है कि वह झारखंड कांग्रेस में एक बड़ा ऑपेरशन करने की तैयारी में है. पार्टी में वैसे चेहरों को सामने लाने की मुहिम चलाई जायेगी, जिनका अपना सामाजिक आधार है, जो खुद अपने बूते भी पार्टी को कुछ योगदान दे सकते हैं, जिनके सहारे पार्टी जमीनी स्तर तक उतर कर संघर्ष करने का मादा रख सकती है.
मीर का ऑपरेशन का पहला शिकार राजेश ठाकुर
माना जा रहा है कि उनक ऑपरेशन का पहला शिकार झारखंड कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर हो सकते हैं. क्योंकि आज के दिन झारखंड कांग्रेस में यह चर्चा आम है कि राजेश ठाकुर अपने बूते कांग्रेस को एक विधान सभा की सीट पर मुकाबले में खड़ा करने की हैसियत में नहीं है, बावजूद इसके वह प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी संभाल रहे हैं, हालांकि अविनाश पांडेय ने जब प्रदेश प्रभारी की कुर्सी संभाली तब भी राजेश ठाकुर का पर कतरने के दावे किये गये थें, लेकिन बाद में दोनों के बीच बेहतर संवाद स्थापित हो गया. और जाते-जाते अविनाश पांडेय ने यह भी कह डाला कि राजेश ठाकुर में सभी धड़ों को एक साथ लेकर चलने की कुब्बत है. जब उनसे यह सवाल पूछा गया कि झारखंड जैसे आदिवासी-मूलवासी बहुल राज्य में राजेश ठाकुर के चेहरे को आगे कर कांग्रेस कितना संघर्ष कर पायेगी? तो उनका जवाब था कि झारखंड का समाज बाकी राज्यों से थोड़ा अलग है, यहां जातिवाद उस उबाल तक नहीं पहुंचा है कि हर चेहरे को उसकी जाति के चस्मे से देखने की कोशिश की जाय.
आदिवासी-मूलवासी समाज में अभी सत्ता की भूख नहीं
अविनाश पांडेय के इस दावे को एक दूसरे रुप में भी देखा जा सकता है, इसका एक विश्लेषण यह भी किया जा सकता है कि झारखंड के आदिवासी-मूलवासी समाज में अभी सत्ता की वह भूख कायम नहीं हुई है, जो बिहार यूपी में पिछड़ी जातियों के बीच दिखलायी पड़ती है. लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि शायद अविनाश पांडेय आदिवासी-मूलवासी समाज की राजनीतिक भूख का आकलन करने में विफल रहें. और यही कांग्रेस का झारखंड में कमजोर होती जमीन का कारण है.
झारखंडी समाज की नब्ज को टटोलने की कोशिश कर रहे हैं गुलाब अहमद मीर
और शायद झारखंड की सियासत से दूर रहकर भी गुलाब अहमद मीर ने इस नब्ज को टटोल लिया कि यदि झारखंड में कांग्रेस को अपनी जमीन पर राजनीतिक बिसात बिछानी है तो उसे अपना चेहरा बदलना होगा, संगठन के लेकर पार्टी तक में आदिवासी मूलवासी समाज को भागीदारी देनी होगी, जिस रास्ते पर एक के बाद एक प्रयोग कर थक-हार चुकी भाजपा आज कर रही है. याद कीजिये, उन तमाम चेहरों को जो कभी प्रदेश भाजपा के चेहरा हुआ करते थें, लेकिन 2019 की हार के बाद भाजपा को रघुवर दास को आगे कर सियासी प्रयोग करन की भूल का एहहास हुआ. और उसने एक बारगी ही अपने सारे चेहरे बदल डाले.
भाजपा के रास्ते कांग्रेस
तो क्या गुलाम अहमद मीर अब उसी प्रयोग को झारखंड कांग्रेस में करने जा रहे हैं. और इस बात का अंदेशा बंधु तिर्की को लग चुका है, उन्हे इस बात का एहसास हो चुका है कि यही सही समय है कि गुलाम अहमद मीर के सामने अपनी सामाजिक और जमीनी ताकत का प्रर्दशन किया जाये. और सियासी चाल के तहत 4 फरवरी को रांची के मोरहाबादी मैदान में डिलिस्टिंग के बहाने आदिवासी एकता के नाम पर शक्ति प्रदर्शन की रणनीति तैयार की गयी है.
बंधु तिर्की की प्लानिंग और राजेश ठाकुर का मास्टर प्लान
याद कीजिये, बंधु तिर्की ने इसके लिए फरवरी का समय चुना है, अभी उनके पास करीबन एक माह का समय है, इस एक माह में गुलाम अहमद मीर झारखंड के जमीनी हालत को समझने की कोशिश करेंगे, और शायद उसके बाद ही संगठन के स्तर पर किसी प्रयोग की स्थिति में होंगे, और यह वही समय भी होगा, जब लोकसभा चुनाव की डुगडुगी बजने वाली होगी. और उस हालत में बंधु तिर्की का यह शक्ति प्रदर्शन उनकी दावेदारी को मजबूत करेगा. अब देखना होगा कि सब कुछ बंधु तिर्की की प्लानिंग के अनुरुप चलता है, या राजेश ठाकुर एक बार फिर से बंधु तिर्की को गचा देने में सफल रहते हैं.
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