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LS POLL 2024 : हजारीबाग फतह भाजपा के लिए नाक का सवाल, कांग्रेस को सामाजिक समीकरण पर जीत का भरोसा

LS POLL 2024 : हजारीबाग फतह भाजपा के लिए नाक का सवाल, कांग्रेस को सामाजिक समीकरण पर जीत का भरोसा

Ranchi-चौथे चरण के मतदान के साथ ही झारखंड में पांचवें चरण का संघर्ष तेज हो चुका है, 20 मई को हजारीबाग, चतरा और कोडरमा का जनादेश मतपेटियों में कैद हो जायेगा. स्टार प्रचारकों का ताबड़तोड़ बैटिंग जारी है, लेकिन हजारीबाग की सीट इस बार भाजपा के लिए नाक के बाल का सवाल बन कर खड़ा है. इसका कारण है 1998 के बाद पहली बार हजारीबाग के सियासी अखाड़े से सिन्हा परिवार का बाहर होना. यह वह मुकाबला है, जब सिन्हा परिवार का कोई सदस्य अखाड़े में मौजूद नहीं है. बल्कि यों कहें की सिन्हा परिवार का आशीर्वाद भाजपा के कमल के बजाय कांग्रेस के पंजे का साथ ख़ड़ा दिख रहा है. इस प्रकार भाजपा के सामने इस बार फतह हासिल कर इस बात को साबित करने की चुनौती है कि 1998 से कमल का जो कारवां आगे बढ़ता रहा, उसके पीछे सिन्हा परिवार का राजनीतिक वजूद और सामाजिक पकड़ से ज्यादा उसकी अपनी उर्वर जमीन की ताकत थी. सिन्हा परिवार तो बस उस उर्वर जमीन पर बैटिंग करते हुए अपने आप को अजेय मानने का भ्रम पाल रहा था.

हजारीबाग यानि सिन्हा परिवार

यहां याद रहे कि हजारीबाग से यशवंत सिन्हा 1998, 1999 और 2009 में सांसद रहें, जबकि 2014 और 2019 में जयंत सिन्हा ने कमल का परचम लहाराया. इस बीच सिर्फ 2004 में सीपीआई के भुनेश्वर मेहता ने सिन्हा परिवार को सियासी पटकनी देने में सफलता हासिल किया. लेकिन इस बार उसी सिन्हा परिवार को सियासी अखाड़े से आउट करते हुए भाजपा ने हजारीबाग सदर से विधायक रहे मनीष जायसवाल पर दांव लागने का फैसला किया.

सामाजिक समीकरण साधने की दिशा में कांग्रेस का मजबूत प्रयोग

वहीं दूसरी ओर देखे तो कांग्रेस ने भी इस बार हजारीबाग में एक बड़ा प्रयोग किया है, दरअसल इस पिछड़ा बहुल सीट से कांग्रेस लगातार अगड़ी जातियों को उम्मीदवार बनाकर सियासी शिकस्त का रसास्वादन करती रही. चाहे 2009 और 2014 में सौरव प्रसाद सिंह हों या 2019 में गोपाल प्रसाद साहू, अगड़ी जाति और वैश्य चेहरों पर दांव लगा कर हार दर हार का सामना करते कांग्रेसी रणनीतिकारों ने बड़ा प्रयोग किया और उसने किसी अगड़ी जाति पर दांव लगाने के बजाय कुर्मी-पॉलिटिक्स को साधने का फैसला किया. यहां ध्यान रहे कि हजारीबाग में कुर्मी जाति की करीबन 15 फीसदी के आसपास है, इसके साथ ही कुशवाहा जाति का भी करीबन पांच फीसदी आबादी है. यानि कुर्मी-कुशवाहा के साथ 20 फीसदी की मजबूत सियासी जमीन है. कांग्रेसी रणनीतिकारों की रणनीति इस 20 फीसदी कुर्मी-कुशवाहा के साथ 15 फीसदी मुस्लिम और 13 फीसदी आदिवासी को खड़ा करने की है और यदि यह दांव लग गया तो इंडिया गठबंधन की शुरुआत ही 48 फीसदी के साथ होती है, हार और जीत अपनी जगह लेकिन यह एक मजबूत सियासी प्रयोग तो जरुर है.

जारी है सियासी बैटिंग

और यही कारण है कि एक तरफ प्रधानमंत्री चतरा और बिरनी से हजारीबाग में हवा बनाने का दमखम दिखला रहे हैं, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भीजोर लगा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर तेजस्वी यादव को सामने रख कर इंडिया गठबंधन की कोशिश यादव सहित दूसरे पिछड़ों जातियों की  व्यापक गोलबंदी तैयार करने की है. यानि मोर्चाबंदी दोनों ओर से जारी है, हालांकि अंतिम सफलता किसके हाथ लगेगी यह देखने वाली बात होगी. जहां तक बात रही मुद्दों और नारों की इस सियासी शोर में हजारीबाग में कोयला उद्योग की समस्या गायब है, मजदूरों की समस्याओं पर कोई भी सियासी दल अपनी उर्जा खर्च करते नहीं दिख रहा. कोयला उद्योग के बावजूद युवाओं का पलायन कोई मुद्दा नहीं है. इस कोयला उद्योग के कारण विस्थापन का दंश भी सियासी शोर से बाहर है. यदि हम बात शहरी इलाकों की करें तो मोदी की गांरटी की चर्चा है, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी, विस्थापन और पलायन का सवाल अपनी जगह खड़ा है.

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Published at:16 May 2024 02:30 PM (IST)
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