Ranchi-झारखंड में पहले चरण के मतदान में चार लोकसभा में प्रत्याशियों की किस्मत मतपेटियों में कैद हो चुकी है. राजनीतिक दलों के बीच अपनी-अपनी जीत के दावे भी तेज हैं. राजद हो या भाजपा सभी को अपनी जीत नजर आ रही है, इन दावों में कितना दम है, और आने वाले चुनावों के लिए अपने कार्यकर्ताओं में आत्मविश्वास बनाये रखने की रणनीति है, इसका अंतिम फैसला तो 4 जून को होगा. लेकिन मतदान के दौरान जो तस्वीर उभरती दिखी, उसके बाद पलामू में कांटे का संघर्ष दिख रहा है. हालांकि इस कांटे के संघर्ष में अंतिम बाजी किसके हाथ लगेगी, फिलहाल कुछ भी भविष्यवाणी खतरे से खाली नहीं है, लेकिन इतना तय है कि हार-जीत का मार्जिन बेहद कम रहने वाला है. और इस कड़े संघर्ष में 2006 के बाद एक बार फिर से लालटेन जलने की संभावना बलबती होती दिख रही है.
दलित-पिछड़ी जातियों में लालटेन के प्रति रुझान
इसकी मुख्य वजह शहरी मतदाताओं के साथ ही अगड़ी जाति के मतदाताओं के बीच एक प्रकार की फैली उदासीनता है. अगड़ी जातियों के बीच पीएम मोदी के चेहरे को लेकर वह उत्साह नहीं देखा गया, उनकी रुचि किसी प्रकार सिर्फ अपने हिस्से का मतदान करने तक ही सीमित रही, जबकि 2019 और 2014 में यही अगड़ी जाति के मतदाता जीत के लिए अपना पूरा जोर लगाते दिख रहे थें. इसकी वजह बीडी राम के प्रति नाराजगी है. यदि भाजपा ने अपना चेहरा बदला होता, तो जीत की राह आसान हो सकती थी. दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्रों और दलित-पिछड़ी जातियों में लालटेन के प्रति रुझान देखा गया. तेजस्वी यादव की रैली के बाद हवा का रुख बदलता नजर आया. हालांकि तेजस्वी यादव की रैली के बाद भी दलित-पिछड़ी जाति के मतदाताओं में एक प्रकार की चुप्पी देखी जा रही थी, लेकिन जब मतदान की कतार लगी, तो सब कुछ बदला नजर आया. और यहीं से राजद की ममता भुइंया रेस में बनती नजर आयी.
क्या है सामाजिक समीकरण
यहां याद रहे कि पलामू लोकसभा में करीबन 22 लाख मतदाता है, इस 22 लाख में मुस्लिम-3 लाख, भुइंया-3 लाख, दास- 2 लाख, यादव- 2.5 लाख, पासवान-1.5 लाख, कोयरी कुशवाहा-1.5 लाख के करीब है. जबकि सामान्य जाति के मतदाताओं की संख्या भी करीबन6-लाख के आस-पास है.
पलामू में अगड़ा पिछड़ा का खेल
इस चुनावी संघर्ष पर स्थानीय पत्रकारों का दावा है कि इस बार पलामू में भी अगड़ा-पिछड़ा का खेल होता नजर आया. पिछड़ी-दलित जातियों की गोलबंदी लालटेन के पक्ष में देखने को मिली. कई स्थानों से बीडी राम के विरोध की खबर भी आयी. इस बीच मुस्लिम, यादव, भुइंया और दास जाति के मतदाताओं का मत थोक भाव में लालटेन के खाते में जाता दिखा. साथ ही कोयरी-कुशवाहा और पासवान जाति में भी सेंधमारी देखने को मिली. राजद की संभावना यहीं से खुलती नजर आती है. जबकि दूसरी ओर सामान्य जातियों का वोट भाजपा के पक्ष में जाता तो दिखा, लेकिन इस बार 2014 और 2019 की तरह उत्साह नहीं दिखा. वे जीत-हार के लिए जोर लगाते नहीं दिखें, सामान्य जातियों का एक हिस्सा भी लालटेन के साथ जाता दिखा. इस हालत में पलामू का मुकाबला बेहद कांटे का होते हुए भी राजद की ओर झुका नजर आ रहा है, लेकिन जीत और हार का मार्जिन बेहद कम रहने वाला है.
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