Patna-नीतीश कुमार एक बार फिर से मीडिया की सुर्खियों में है. पूरे देश की निगाहें सांस रोक कर उनके आगामी चाल का इंतजार कर रही है. दावे प्रतिदावों की बाढ़ लगी हुई है. इस हाड़ कांपती ठंड में चाय की चुस्कियों के साथ हर किसी का अपना आकलन जारी है. मीडिया की सुर्खियां और सियासी विश्लेषकों की भविष्यवाणियां घात-प्रतिघात की कहानियां बयां कर रही है. दावा इस बात का है कि नीतीश कुमार अपनी तीसरी पलटी से सूबे बिहार की सियासत ही नहीं, देश की मौजूदा राजनीति को एक नयी धार देने जा रहे हैं. 2024 के शुरुआत में विपक्षी एकता का रथ तैयार करते वक्त जो स्लोगन दिया था, “2019 में जो आये हैं, 2024 में वह जाने वाले हैं” पिछले एक वर्षों की लम्बी खींचतान के बाद अब थक-हार कर 2019 के उन्हीं ध्वज वाहकों के साथ वह 2024 के सफर के निकलने वाले हैं.
नीतीश का यह स्वाभाविक फैसला या कांग्रेस लालू के छल का नतीजा
लेकिन खबर यह नहीं है कि नीतीश कुमार अपने पुराने सियासी अंदाज में एक और पलटी मारने वाले हैं, सवाल यह है कि यह नीतीश का यह फैसला उनकी राजनीति का स्वाभाविक परिणाम है या कांग्रेस-लालू के सियासी छल से खिन्न नीतीश का सियासी विवशता. आखिर विपक्षी एकता के इस पैरोकार को अपने ही सपनों से मुंह मोड़ना क्यों पड़ रहा है? जिस कुनबे को खड़ा करने के लिए नीतीश कुमार ने पूरे देश का भ्रमण किया. तमाम विपक्षी नेताओं को एक प्लेटफार्म पर खड़ा करने के दुसाध्य कार्य को अंजाम दिया, कभी एक दूसरे के चेहरे को भी देखने से परहेज करने वाले कांग्रेस और अरविंद केजरीवाल को एक टेबल पर बैठा कर देश की सियासत को एक बड़ा संदेश दिया और आज जब तमाम खट्टी मिठ्ठी यादों के साथ वह कुनबा सामने खड़ा है, नीतीश उसकी रथ की सवारी से भागते क्यों दिख रहे हैं?
क्या नीतीश की पलटी से कांग्रेस और लालू की सियासी हसरतें पूरी हो जायेगी?
और बड़ा सवाल यह भी है कि यदि नीतीश वाकई पलटी मार जाते हैं तो क्या लालू कांग्रेस की हसरतें पूरी हो जायेगी. क्या माइनस नीतीश इंडिया गठबंधन अपने उस सियासी मुकाम की ओर बढ़ता भी नजर आयेगा, जिसका सपना राहुल गांधी अपनी भारत यात्रा में बुनते दिख रहे हैं. क्या नीतीश की विदाई के साथ ही राहुल गांधी के मोहब्बत की दुकान से एक सदाबहार मिठाई गुम नहीं होने वाली है. और यदि राहुल गांधी को इस बात की खबर है, तो राहुल गांधी इस दुकान में लूट की योजना को विफल करने का कोई मास्टर प्लान तैयार कर रहे हैं, या राहुल गांधी को आज भी यह आत्मविश्वास है कि वह माइनस नीतीश इंडिया गठबंधन को उसके सियासी मुकाम तक पहुंचाने का कुब्बत रखते हैं. इन सवालों का जवाब तो राहुल गांधी के पास ही होगा, वैसे भी उनकी भारत यात्रा बिहार से होकर भी गुजरने वाली है, लेकिन यहां एक बार फिर से वही सवाल नीतीश ने यह पलटी क्यों मारी?
नीतीश के एक करवट से हिलने लगता है देश का सियासी मिजाज
दरअसल इसकी वजह बिल्कूल शीशे की तरह साफ नजर आता है, इस बात को स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं है कि विपक्षी एकता का यह राग नीतीश कुमार का सपना था, यह मोदी अमित शाह के उस राजनीति के दौर में जब सारे क्षेत्रीय क्षत्रप अपने-अपने खांचे में सिमटते नजर आ रहे थें, नीतीश ने इस सपने को देखने का सियासी जोखिम लिया, और इसकी शुरुआत उन्होंने बिहार से लालू कैंप में वापस जाकर किया, उनकी इस पलटी के साथ ही देश की सियासत में एक विकल्प दिखने लगा. लोगों को इस बात का विश्वास हुआ कि हर बार की तरह इस बार भी देश को एक नयी राह दिखलाने बिहार से एक काफिला निकलने वाला है. और इसके साथ ही विपक्ष में पड़े लालू तेजस्वी को सत्ता में वापसी का अवसर मिल गया.
क्या तेजस्वी को सीएम बनाने की बेचैनी में हैं लालू यादव
लेकिन दावा किया जाता है कि पिछले महीनों से लालू यादव के द्वारा सीएम नीतीश पर तेजस्वी को सीएम की कुर्सी सौंपने का दवाब बढ़ता जा रहा था. हालांकि खुद नीतीश भी तेजस्वी को सीएम की कुर्सी सौंपने के इच्छुक थें, लेकिन वह इसके लिए किसी जल्दबाजी में नहीं थे. दूसरी तरफ जिस कुनबे को नीतीश कुमार ने अपनी मेहनत से तैयार किया था, विपक्षी एकता तो जो पंडाल लगाया था, इंडिया गठबंधन की दूसरी बैठक से अधोषित रुप से कांग्रेस इस पंडाल पर अपना मालिकाना हक दिखलाने की सियासी भूल करने लगा. कांग्रेस के एक खेमे को इस बात का गुमान था कि सीएम नीतीश के लिए अब भाजपा के दरवाजे बंद हो चुके हैं.और इस विकल्पहीन नीतीश को किनारे लगाना कांग्रेस के लिए बेहद आसान काम है, और इसी रणनीति के तहत पीएम चेहरे को रुप में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जून खड़गे के नाम को उछाला गया. और यही इंडिया गठबंधन के लिए टर्निंग प्वाईट बन गया. लेकिन कांग्रेस के सियासतदान भूल गयें कि सामने नीतीश कुमार है, और वे नीतीश कुमार हैं, जो शायद अब सियासत की अपनी अंतिम पारी खेल रहे हैं. उनके लिए अब कुछ भी खोना नहीं है.
कांग्रेस की सुस्त रफ्तार के साथ चलने को तैयार नहीं नीतीश
दरअसल नीतीश कुमार जिस तरीके से इंडिया गठबंधन को धार देना चाहते थें, कांग्रेस उस रफ्तार के साथ चलने को तैयार नहीं थी, उसे आज भी नीतीश के सियासी चाल की तुलना में राहुल गांधी की पद यात्रा में कुछ ज्यादा रोशनी दिखलायी पड़ रही है, और इधर नीतीश कुमार को यह विश्वास होता गया कि कांग्रेस की सुस्ती और मंद चाल के कारण हर बीतते दिन के साथ इंडिया गठबंधन की पकड़ कमजोर हो रही है. और इसके बाद और यहीं से नीतीश ने एक बार फिर से इंडिया गठबंधन से दूरी बनाने का मन: स्थिति बना लिया, हालांकि नीतीश कुमार ने इसका संकेत पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव के दौरान भी दिया था.
खेल अभी बाकी है, अभी फाइनल सीन का इंतजार करना होगा
हालांकि यह सब कुछ महज आकलन है, और यह आकलन उन परिस्थियों के आधार पर लिया गया है, जिसकी पुष्ट-अपुष्ट खबरें मीडिया में चलायी जा रही है, अभी भी इसकी कई परतें खुलने बाकी हैं. क्योंकि इस बात को स्वीकार करने का कोई कारण नहीं है कि सिर्फ एनडीए का संयोजक बनने के लिए नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन को बॉय बॉय करने का फैसला करने वाले हैं, और वह इतने सरल रुप से अपनी कुर्सी को सुशील मोदी को सौंप कर बिहार की सियासत से दूर जाने का मन बना चुकें हैं. खेल अभी बाकी है, अभी भी दिल थाम कर इस खेल के अंतिम सीन का इंतजार करना होगा.
नीतीश कुमार की अंतिम पलटी! मीडिया की सुर्खियां और जदयू के दावे