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Jharkhand politics- कौन होगा इंडिया गठबंधन का उम्मीदवार! रांची से लेकर धनबाद तक कयासों का बाजार, हर सीट पर संशय बरकरार

Jharkhand politics- कौन होगा इंडिया गठबंधन का उम्मीदवार! रांची से लेकर धनबाद तक कयासों का बाजार, हर सीट पर संशय बरकरार

Ranchi-एक तरफ झारखंड की कुल 14 लोकसभा सीटों में से 11 पर अपने सियासी पहलवानों का एलान कर भाजपा कभी गीता तो कभी सीता को पाले में खड़ा करते हुए 2024 के महासमर में कमल खिलाने का ताल ठोक रही है. वहीं इंडिया गठबंधन के अंदर हर सीट पर संशय के बादल तैरते नजर आ रहे हैं. क्या रांची और क्या धनबाद तकरीबन हर सीट की कमोवेश यही स्थिति है. कहीं से भी कोई साफ तस्वीर निकलती नजर नहीं आ रही. कांग्रेस से लेकर झामुमो तक सभी इसी संशय के बादल में फंसे नजर आ रहे हैं, दूसरी तरफ जंगे-मैदान में भाजपा के सियासी पहलवानों की इंट्री हो चुकी है. जनसम्पर्क अभियान को गति दिया जा रहा है. मतदाताओं के पास पहुंचने की कवायद शुरु हो चुकी है. इस हालत में इस सियासी जंग की औपचारिक शुरुआत के पहले ही इंडिया गठबंधन सियासी उधेड़बुन में फंसा नजर आने लगा है.

रांची लोकसभा सीट

इसकी की झलक राजधानी रांची का लोकसभा सीट पर भी देखने को मिल रही है. वर्ष 2019 में इस सीट पर वर्तमान सांसद संजय सेठ और सुबोधकांत के बीच सियासी भिंड़त हुई थी और तब सुबोधकांत को करीबन तीन लाख मतों से शिकस्त खानी पड़ी थी. कहा जा सकता है कि यह संजय सेठ की एकतरफा जीत थी. इस मुकाबले में सुबोधकांत कहीं भी मुकाबले में खड़ा नजर नहीं आयें. इसके पहले 2014 में सुबोघकांत की भिंड़त रामटहल चौधरी के साथ हुई थी,  तब भी सुबोधकांत को दो लाख मतों से शिकस्त का सामना करना पड़ा था. बावजूद इसके एक बार फिर से सुबोधकांत की वापसी की खबर सामने आ रही है. इस हालत में सुबोधकांत किस दम खम के साथ संजय सेठ को पटकनी देंगे. एक बड़ा सवाल हैं यदि रांची में कांग्रेस के पास सुबोधकांत के सिवा कोई दूसरा चेहरा नहीं है, तो कम से सुबोधकांत की उम्मीदवारी को ही सामने कर मतदाताओं के बीच जाने का अवसर देना चाहिए. ताकि वह भी संजय सेठ की तरह मैदान-ए-जंग में उतर अपने हथियारों को धार देते. लेकिन ना तो किसी नये चेहरे की चर्चा है और ना ही सुबोधकांत की दावेदारी पर मुहर, उधर संजय सेठ अपनी लडाई की शुरुआत कर चुके हैं.

कोयला नगरी धनबाद में चेहरा कौन?

कोयला नगरी धनबाद में तो इंडिया गठबंधन के साथ ही भाजपा भी अपना तुरुप का पत्ता खोलने को तैयार नहीं है. भाजपा के अंदर पीएन सिंह नहीं तो कौन का सवाल खड़ा है? तो इंडिया गठबंधन के अंदर भी सन्नाटा पसरा है. कांग्रेस प्रदेश प्रभारी गुलाम अहमद मीर ने इतना तो साफ कर दिया कि इस बार इस कोयला नगरी से किसी स्थानीय चेहरे को मौका मिलेगा, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि वह चेहरा कौन होगा?  प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर की उपस्थिति में मीर की  इस घोषणा के बावजूद धनबाद से सियासी गलियारों में राजेश ठाकुर का नाम उछल रहा है. जबकि राजेश ठाकुर का धनबाद और धनबाद की सियासत से दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं है. सियासी गलियारों में तैरता एक नाम कांग्रेसी विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह भी है, लेकिन इसके साथ ही, दूसरी खबरें भी सियासी गलियारों में तैर रही है. स्थानीय चेहरे में एक और नाम अशोक सिंह का है. दावा किया जाता है कि राहुल गांधी की भारत जोड़े न्याय यात्रा के साथ अशोक सिंह का कांग्रेस के साथ जुड़ाव और भी मजबूत हुआ है. उधर प्रदेश प्रभारी की घोषणा के बावजूद भी ददन दुबे धनबाद की सियासत से अपनी विदाई को तैयार नहीं है. दावा किया जाता है चन्द्रशेखर दूबे की कोशिश दिल्ली में प्रदेश अध्यक्ष के फैसले को बदले की है. इस प्रकार कोयलानगरी धनबाद की कहानी भी उलझी नजर आती है.

इंडिया गठबंधन में किस पार्टी के खाते में कोडरमा

झारखंड का प्रवेश द्वार माने जाने वाले कोडरमा सीट की कहानी तो और भी उलझी है. तमाम दावों और प्रतिदावों के बावजूद यह साफ नहीं है कि इस सीट से किस घटक दल का उम्मीदवार होगा. एक तरफ माले के राजकुमार यादव तोल ठोकने की तैयारी में हैं, तो दूसरी ओर राजद नेता सुभाष यादव के समर्थक भी मैदान छोडने को तैयार नहीं है. जबकि सामने अन्नपूर्णा इस बात की हुंकार लगा रही है कि इंडिया गठबंधन में कोई कोडरमा सीट के लिए कोई चेहरा ही नहीं है. इस हालत में कोडरमा में इंडिया गठबंधन का चेहरा कौन होगा, एक बड़ा सवाल है. हालांकि सूत्रों के हवाले से जयप्रकाश वर्मा तो कभी बगोदर विधायक विनोद कुमार की इंट्री के दावे भी किये जा रहे हैं.

पलामू के किले में कांग्रेस का चेहरा कौन?

पलामू की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है. एक तरफ पलामू पर अपना दावा ठोक कांग्रेस चेहरे की खोज में है. कभी सासाराम से मीरा कुमार की झारखंड लाने तो कभी बीस सूत्री उपाध्यक्ष विमला कुमारी को मैदान में उतारने की रणनीति अपनाई जा रही है. कांग्रेस की इस उहापोह के बीच राजद सुप्रीमो लालू यादव ने दूलाल भुइंया के छोटे भाई ममता भुइंया को पार्टी में इंट्री करवा कर पलामू की सियासत को और भी उलझा दिया है. यदि लोकसभा चुनाव के ठीक पहले ममता की इस इंट्री को समझने की कोशिश की जाय तो कांग्रेस की सियासत पर विराम लगता दिख रहा है, यानि अपने पुराने सामाजिक आधार के साथ राजद एक बार फिर से पलामू में लालटेन जलाने की तैयारी में हैं.

हजारीबाग में अम्बा की इंट्री पर सवाल

एन लोक सभा चुनाव के पहले बड़कागांव विधायक अम्बा प्रसाद के ठिकानों पर ईडी की छापेमारी के बाद हजारीबाग की सियासत भी उलझने लगी है. जिस अम्बा प्रसाद को हजारीबाग में इंडिया गठबंधन का बड़ा चेहरा माना जा रहा था. अब उनकी उम्मीदवारी पर सियासी गलियारों में सवाल खड़ा होने लगे है. यह दावा किया जाने लगा है कि इस छापेमारी के बाद अब अम्बा की इंट्री पर विराम लग चुका है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि अम्बा नहीं तो कौन? और इसी कौन के बीच पूर्व सांसद यशवंत सिन्हा का नाम उछल रहा है. सवाल यह भी है कि क्या भाजपा से विदाई के बाद यशवंत सिन्हा में इतनी सियासी कुब्बत शेष है कि वह मनीष जायसवाल की राह में कांटा खड़ा कर सकें और यदि यशवंत सिन्हा के पास इतनी सियासी कुब्बत बरकरार है तो फिर यह संशय क्यों पसरा है?

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Published at:19 Mar 2024 07:25 PM (IST)
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