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हेमंत के हाथ एक और हथियार! लोकसभा चुनाव से पहले अब 77 फीसदी आरक्षण पर भाजपा को घेरने की तैयारी

हेमंत के हाथ एक और हथियार! लोकसभा चुनाव से पहले अब 77 फीसदी आरक्षण पर भाजपा को घेरने की तैयारी

रांची (TNP Desk): आदिवासी-मूलवासी सियासत की नयी पटकथा लिखते रहे पूर्व सीएम हेमंत का एक सियासी हथियार लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा के गले की हड्डी बनती दिख रही है और वह हथियार है पूर्व सीएम हेमंत की परिकल्पना पिछड़ों का आरक्षण विस्तार. याद रहे कि वर्ष झारखंड गठन के बाद राज्य की बागडोर संभालते ही पूर्व सीएम बाबूलाल ने पिछडों के आरक्षण पर कैंची चलाते हुए 27 फीसदी के बदले 14 फीसदी करने का फरमान सुनाया था. बाबूलाल के इस फैसले के बाद पिछड़ी जातियों के बीच असंतोष और नाराजगी पनपती रही. आन्दोलन होते रहे. तमाम पिछड़ी जातियों के संगठन इस मुद्दे पर सरकार के समक्ष अपना विरोध दर्ज करवाते रहें. लेकिन आवाज नहीं सुनी गयी, आखिरकार हेमंत सोरेन ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में पिछड़ी जातियों की इस पुरानी मांग को पूरा करने बिड़ा उठाया, और विधान सभा से पिछड़ी जातियों के लिए 27 फीसदी और एससी को 12 फीसदी के साथ ही सामान्य जातियों के लिए भी 10 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव पास पारित कर राजभवन भेज दिया. इसके साथ ही हेमंत सोरेन ने भाजपा से इस आरक्षण बिल को संविधान की नौंवी अनुसूचि में शामिल करने की मांग भी की थी, ताकि इस फैसले को न्यायिक परिधि से बाहर रखा जा सके, लेकिन संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करना तो दूर अब राज्यभवन के द्वारा इस बिल को असंवैधानिक बताते हुए विधान सभा को वापस कर दिया गया है. और जैसा कि होना था, महागठबंधन के द्वारा इस मामले में भजापा को कटघरे में घेरने की कवायद शुरु हो गयी.

केन्द्र की भाजपा सरकार ने पिछड़ों के आरक्षण पर लगाया अड़ंगा

सत्ता पक्ष की ओर से मोर्चा खोलते हुए कांग्रेस विधायक प्रदीप यादव ने इसे केन्द्र सरकार की सोची समझी मंशा घोषित कर इस बात का संकेत दे दिया है कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर कैसा गदर मचने वाला है. कांग्रेस झामुमो की रणनीति विधान सभा में हंगामा मचाने के बजाय इस मुद्दे को चुनाव के दौरान सियासी हथियार बनाने की है, पिछड़ी जातियो को यह समझाने की है कि राज्य की हेमंत सरकार ने तो अपने काम को बखुबी अंजाम दिया था, यह तो केन्द्र की भाजपा सरकार है, जो पिछड़ी जातियों का आरक्षण विस्तार में रोड़ा अटका रही है.

कई दूसरे राज्यों में भी है 50 फीसदी से ज्यादा का आरक्षण

ध्यान  रहे कि राज्य में पिछड़ी जातियों की आबादी करीबन 55 फीसदी मानी जाती है, इस हालत में यदि यह चुनावी मुद्दा बनता है, कांग्रेस और झामुमो अपने कोर  वोटरों के बीच इस मुद्दे को ले जाने में सफल होता है, तो यह भाजपा की गले की हड्डी बन सकती है. और ऐसा भी नहीं है कि 77 फीसदी आरक्षम देने वाला झारखंड पहला राज्य है, बिहार में आज के दिन भी 75 फीसदी का आरक्षण लागू है, जबकि तमिलनाडू में यह 69 फीसदी है, और यह 69 फीसदी में सामान्य जातियों को कोई आरक्षण नहीं है, देश में तमिलनाडू पहला राज्य है, जहां मोदी सरकार के द्वारा आर्थिक आधार पर सामान्य जातियों को दिये जाने वाले 10 फीसदी आरक्षण को लागू नहीं किया गया, जबकि पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में भी 76 फीसदी का आरक्षण है, इस हालत में झामुमो की कोशिश इस सवाल को खड़ा करने की होगी कि आखिर झारखंड के पिछड़ों ने क्या गुनाह किया है, जिसका दंड भाजपा के द्वारा देने की कोशिश की जा रही है. भाजपा की सबसे बड़ी मुसीबत तो नीतीश सरकार के द्वारा लागू 75 फीसदी का आरक्षण है, जहां आज वह खुद ही सत्ता में हैं. यदि बिहार में 75 फीसदी आरक्षण संवैधानिक है, तो झारखंड में 77 फीसदी का आरक्षण अंसैवधानिक कैसे हो गया, और यदि यह संविधान की  मूल भावना के प्रतिकूल है तो भाजपा नीतीश कुमार के इस पुराने फैसले को निरस्त क्यों नहीं करती.

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Published at:28 Feb 2024 05:23 PM (IST)
Tags:Another weapon in Hemant's hands 77 percent reservationa big political issue to woo the indigenous votersBackward reservation can become a bone of contention for BJP in JharkhandGovernor called Hemant government's expansion of backward reservation unconstitutionalBJP in the dock in Jharkhand on backward reservationOBC reservation can become a big political issue in Lok Sabha elections in Jharkhandjharkhand politicsjharkhand political crisisjharkhandjharkhand political newsjharkhand news todayhemant soren jharkhandpolitical crisis jharkhandjharkhand politics latest newsOBC reservationin JharkhandBJP in Hemant's ChakravyuhBJP's opposition to OBC reservation can sink its political boat in Hemant's Chakravyuh
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