Ranchi-चाईबासा संसदीय सीट से कांग्रेस के इकलौते सांसद और पूर्व सीएम मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा के द्वारा भाजपा ज्वाइन करने पर पूर्व मंत्री और झारखंड में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर आवाज रहे सरयू राय ने तंज कसते हुए कहा कि कोड़ा परिवार पर लगे सारा आरोप अब इतिहास के कुड़ेदान का हिस्सा बन चुका है. भाजपा की वाशिंग मशीन में धूला कर कोड़ा फैमली अब बाहर निकल चुकी है. भाजपा को विश्वास है कि गीता कोड़ा के चेहरे के सहारे वह चाईबासा संसदीय सीट से इस बार कमल खिलाने का अपना सपना पूरा कर सकती है. हालांकि सरयू ने यह भी कहा कि अब वह भाजपा का हिस्सा नहीं है, इस हालत में वह गीता कोड़ा की इंट्री को लेकर ज्यादा कुछ कहने की स्थिति में नहीं है.
सितंबर 2006 से अगस्त 2008 झारखंड के सीएम रहे थें मधु कोड़ा
यहां ध्यान रहे कि सितंबर 2006 से अगस्त 2008 तक झारखंड के मुख्यमंत्री मधु कोड़ा पर सरयू ने “मधु कोड़ा लूट राज नाम की एक पुस्तक लिखी थी. इस पुस्तक के बाद ही मधु कोड़ा झारखंड की सियासत में भ्रष्टाचार के प्रतीक पुरुष के रुप में सामने आये थें. सरयू राय ने हवाला के जरिए अवैध धन को विदेश ले जाने और स्वीडिश होल्डिंग कंपनी में डालने के साथ ही नास्डाक में सूचीबद्ध करने का एक-एक ब्यारा पेश किया था. हालांकि उस समय की राज्य और केन्द्र सरकार के द्वारा सरयू राय के द्वारा प्रस्तूत तथ्यों को अनदेखी करने की कोशिश की गयी थी, मधु कोड़ा के खिलाफ किसी भी जांच का आदेश जारी नहीं हुआ, लेकिन बाद में उच्च न्यायालय के निर्देश पर इस मामले में आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय की इंट्री हुई और कई आरोप सही पाये गयें.
आज भी कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुई है गीता कोड़ा
यहां ध्यान रहे कि लम्बे अर्से से झारखंड के सियासी गलियारों में चल रही तमाम अटकलबाजियों मुहर लगाते हुए चाईबासा सांसद और पूर्व सीएम मधुकोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा ने आज भाजपा में शामिल होने का औपचारिक एलान कर दिया.पंजे को दरकिनार कर कमल थामते ही गीता कोड़ा को पीएम मोदी के चेहरे में विकास का अक्स नजर आने लगा. कभी जिस भाजपा पर देश में विभाजनकारी शक्तियों को प्रश्रय देने का आरोप लगाती थी, आज उसी भाजपा की नीतियों में देश का खुशहाल-सुनहरा भविष्य नजर आने लगा. गीता कोड़ा ने कांग्रेस के उपर वंशवाद की सियासत और तुष्टीकरण की राजनीति कर देश का बेड़ा गर्क करने का गंभीर आरोप लगाया है. उन्होंने दावा किया है कि कांग्रेस की नीतियों से समाज के किसी भी हिस्से को कोई लाभ नहीं होना वाला. कांग्रेस की इस तुष्टीकरण की सियासत के कारण है देश की अस्मिता पर संकट गहराता जा रहा है.
क्या बदलने जा रहा है मधु कोड़ा के भ्रष्टाचार पर भाजपा का स्टैंड
अपनी पलटी के बाद भले ही गीता कोड़ा के पास आज कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करने का पूरा मैदान खाली हो, लेकिन अब सवाल तो भाजपा से भी पूछा जायेगा, क्योंकि गीता कोड़ा उसी मधु कोड़ा की पत्नी है. जिसका नाम ले लेकर पीएम मोदी अपनी रैलियों में भ्रष्टाचार के खिलाफ लडाई की हुंकार भरते थें. गीता कोड़ा उसी मधु कोड़ा की पत्नी है, बाबूलाल जिसे बड़े ही शान से झारखंड में भ्रष्टाचार का प्रतीक पुरुष बताकर झामुमो और कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करते थें. अब उसी भ्रष्टाचार के प्रतीक पुरुष मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा कमल पर सवार होकर झारखंड में सुशासन की बहार बहायेंगी. लेकिन मुख्य सवाल यह है कि मधु को कोड़ा को झारखंड में भ्रष्टाचार का प्रतीक पुरुष बताने वाले भाजपा को आज गीता कोड़ा की जरुरत ही क्यों पड़ी. क्यों एक कथित भ्रष्टाचारी के चेहरे के आगे बाबूलाल से लेकर पूरी भाजपा शरणागत होना पड़ा. और गीता कोड़ा को ऐसी क्या सियासी मजबूरी आ पड़ी कि उसे मधु कोड़ा की खिल्ली उड़ाते रहे पीएम मोदी के चेहरे में विकास का अक्स नजर आने लगा.
झामुमो के सबसे मजबूत किले कोल्हान पर लम्बे समय से थी बाबूलाल की नजर
जानकारों का मानना है कि झारखंड की कमान सौंपने वक्त ही बाबूलाल को झामुमो का सबसे मजबूत किला संताल कोल्हान को ध्वस्त करने की जिम्मेवारी सौंपी गयी थी, और इस टास्क को पूरा करने के लिए बाबूलाल कोल्हान के किसी बड़े सियासी चेहरे को भाजपा में शामिल करने को प्रयासरत थें, उनकी नजर गीता कोड़ा पर थी, अंदर खाने बातचीत की प्रक्रिया भी चल रही थी, क्योंकि झामुमो के द्वारा बार बार चाईबासा सीट पर अपनी दावेदारी करने से गीता कोड़ा को भी अपना सियासी भविष्य भंवर में फंसता दिख रहा था. दरअसल पश्चिमी सिंहभूम की कुल छह विधान सभा क्षेत्रों में से अभी पांच पर झामुमो का कब्जा है. सरायकेला से खुद सीएम चंपाई सोरेन, चाईबासा से दीपक बिरुआ, मझगांव से निरल पूर्ति, मनोहरपुर से जोबा मांझी और चक्रघरपुर से सुखराम उरांव के झामुमो के विधायक है, जबकि एकमात्र विधान सभा जगन्नाथपुर से कांग्रेस के सोना राम सिंकु विधायक हैं. इस हालत में झामुमो का दावा था कि चाईबासा की सीट पर को छोड़कर कांग्रेस अपने लिए जमशेदुर संसदीय ले लें. और यहीं से गीता कोड़ा की सियासत फंसती नजर आने लगी थी, गीता कोड़ा को इस बात का पूरा विश्वास हो गया था कि यदि उसने भाजपा का दामन नहीं थामा तो इस बार संसद पंहुचने की राह में कांटा बिछ सकता है, हालांकि संसद जाने की गीता की राह कितनी आसान हुई है, इस पाला बदल के बाद भी उस पर गंभीर सवाल है. क्योंकि एक मात्र जगन्नाथपुर की सीट वह सीट है, जहां मधु कोड़ा परिवारा का सियासी पकड़ा है, और यदि भाजपा की बात करें तो पूरे कोल्हान के उसका सुपड़ा साफ है. इस हालत में गीता कोड़ा इस पलटी बाद भी संसद की पहुंचने में सफल रहेंगी. इस पर कई सवाल है, हां, इतना जरुर है कि भाजपा को अब कोल्हान में एक चिराग जरुर हाथ लगा है, लेकिन यह चिराग झामुमो की ताकत को चुनौती दे पायेगी, ऐसा होता नजर नहीं आता.
पिछले 23 वर्षों से जगन्नाथपुर विधान सभा पर कायम रहा है मधु कोड़ा का जलबा
वर्ष 2000 में इसी सीट से जीत हासिल करने के बाद मधु कोड़ा ने झारखंड की सियासत में अपना परचम गाड़ा था, और उसके बाद यह सीट मधु कोड़ा परिवार के हाथ में ही रही, दो दो बार खुद मधु कोड़ा और दो बार उनकी पत्नी गीता कोड़ा जगन्नाथपुर विधान सभा से विधान सभा तक पहुंचने में कामयाब रही, जब गीता कोड़ा को कांग्रेस के टिकट पर सांसद बना कर दिल्ली भेज दिया गया तो कांग्रेस ने इस सीट से सोना राम सिंकु पर दांव लगाया और वह इस सीट पर कांग्रेस का पंजा लहराने में कामयाब रहें. माना जा है कि सोना राम सिंकू की इस जीत के पीछे भी उस इलाके में मधु कोड़ा की लोकप्रियता रही है. कुल मिलाकर पिछले 23 वर्षों से इस सीट पर मधु कोड़ा का राजनीतिक वर्चस्व कायम है. और बाबूलाल का मधुकोड़ा पर दांव लगाने की मुख्य वजह भी यही है.
बाबूलाल का सियासी गणित
यहां याद रहे कि अभी कुछ दिन पहले ही बाबूलाल ने कभी कोल्हान का बड़ा कुर्मी चेहरा माने वाले शैलन्द्र महतो का पार्टी में वापसी करवायी है. उनका आकलन है कि यदि शैलेन्द्र महतो को आगे कर कुड़मी मतदाताओं को पाले में लाया जाय, और गीता कोड़ा के सहारे आदिवासी मतों को लामबंद किया जाय तो भाजपा की गुंजाईश बन सकती है. बची खुची कसर खुद उनके आदिवासी चेहरे के बदौलत पूरी की जा सकती है. लेकिन मुसीबत यह है कि जैसे ही बाबूलाल गीता कोड़ा को सामने रख चाईबासा को साधने की दिशा में आगे बढ़ेंगे, उनके सामने मधु कोड़ा का चेहरा सामने होगा, यह वही मधु कोड़ा है, जिसे वह अब तक लूट का चेहरा बताते रहे हैं. रही बात शैलेन्द्र महतो की तो पिछले एक दशक में उनकी सियासी सक्रियता काफी सिमट चुकी है, कहा जा सकता है कि आज की तारीख में वह एक बुझा हुए तीर से ज्यादा कुछ नहीं है. इस हालत में यह जोड़ी कौन सा कमाल खिला पायेगी, इस पर बड़ा सवाल है.
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