रांची(Ranchi)झारखंड से कांग्रेस के एकमात्र सांसद गीता कोड़ा का एक बार फिर से कमल की सवारी करने की चर्चा तेज हो चुकी है. और यह खबर इस बार दिल्ली से निकल कर सामने आयी है, दावा किया जा रहा है कि झारखंड प्रदेश कार्यकारणी सदस्य प्रदीप वर्मा के घर पर गीता कोड़ा और इचागढ़ से पूर्व विधायक मलखान सिंह के साथ भाजपा नेताओं की लम्बी चर्चा हुई है, और गीता कोड़ा ने 2024 का लोकसभा चुनाव कमल छाप पर लड़ने का फैसला किया है. हालांकि इस खबर में कितनी सच्चाई और कितना अफवाह है, अभी इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती है, लेकिन गीता कोड़ा लेकर पहले भी कयासों का बाजार गर्म रहा है. और बार बार गीता कोड़ा को सामने आकर अपनी सफाई देनी पड़ी है, यहां ध्यान रहे कि गीता कोड़ा पूर्व सीएम मधु कोड़ा की पत्नी है, और आज भी भाजपा मधु कोड़ा को भ्रष्टाचार का पर्याय मानती है. लेकिन भ्रष्टाचार का पर्याय मानना और चुनावी जीत का समीकरण बैठाना दो अलग अलग चीजे हैं, और आज की भाजपा का इस खेल में महारत हासिल है. एक बार जैसे ही गीता कोड़ा की भाजपा में इंट्री हो जाती है, उनके दामन पर लगे सभी दाग गंगा जल में धूल जायेंगे, और वह राष्ट्रवाद के नारे के साथ जंगे मैदान में उतर जायेगी.
जनवरी अंत तक भाजपा कर सकती है अपने प्रत्याशी का एलान
खबर यह है कि छत्तीसगढ़ के नक्शेकदम पर चलते हुए भाजपा राजमहल और चाईबासा की हारी सीटों पर वक्त के पहले ही अपने प्रत्याशी का एलान करने जा रही है. और पार्टी के आंतरिक सर्वे में चाईबासा सीट से भाजपा की सबसे मजबूत उम्मीदवार पार्टी का कोई चेहरा नहीं बल्कि कांग्रेसी सांसद गीता साबित हो सकती है. और यही कारण है कि भाजपा आलाकमान की नजर गीता कोड़ा पर लगी हुई है. हालांकि पार्टी ने इसके साथ ही बड़कुंवर गगराई, जेबी तुबिद और मालती गिलुआ के लिए भी दरवाजे खुले रखे हैं, ताकि गीता कोड़ा से नाउम्मीदी मिलने पर इन चेहरों पर दांव लगाया जा सकें.
दरअसल जबसे पार्टी की कमान बाबूलाल के हाथ में गयी है, उनकी नजर झामुमो का सबसे मजबूत किला संताल और कोल्हान पर टिकी हुई है. वह किसी भी कीमत पर इस किले को ध्वस्त करना चाहते हैं. हालिया दिनों में झारखंड की सियासत में कुर्मी जाति का महत्वपूर्ण चेहरा माने जाते रहे पूर्व सांसद शैलेन्द्र महतो को भाजपा में शामिल करवाना भी इसी रणनीति का हिस्सा था. शैलेन्द्र महतो के बाद अब पार्टी की नजर गीता कोड़ा पर टिकी हुई है.
कोल्हान की छह विधान सभा में से पांच पर झामुमो का कब्जा
यहां ध्यान रहे कि पश्चिमी सिंहभूम की कुल छह विधान सभा क्षेत्रों में से अभी झामुमो का पांच पर कब्जा है, जबकि छठी सीट जगन्नाथपुर से कांग्रेस के सोना राम सिंकु विधायक हैं. इस प्रकार सरायकेला से चंपई सोरन, चाईबासा से दीपक बिरुआ, मझगांव से निरल पूर्ति, मनोहरपुर से जोबा मांझी और चक्रधरपुर से सुखराम उरांव झामुमो का झंडा बुलंद किये हुए हैं. लेकिन यहां यह भी याद रहे कि जगन्नाथपुर जहां से कांग्रेस के पास कोल्हान का एकलौता विधायक है, उस जगन्नाथपुर विधान सभा में मधु कोड़ा का मजबूत जनाधार है.
पिछले 23 वर्षों से जगन्नाथपुर विधान सभा पर कायम रहा है मधु कोड़ा का जलबा
वर्ष 2000 में इसी सीट से जीत हासिल करने के बाद मधु कोड़ा ने झारखंड की सियासत में अपना परचम गाड़ा था, और उसके बाद यह सीट मधु कोड़ा परिवार के हाथ में ही रही, दो दो बार खुद मधु कोड़ा और दो बार उनकी पत्नी गीता कोड़ा जगन्नाथपुर विधान सभा से विधान सभा तक पहुंचने में कामयाब रही, जब गीता कोड़ा को कांग्रेस के टिकट पर सांसद बना कर दिल्ली भेज दिया गया तो कांग्रेस ने इस सीट से सोनाराम सिंकु पर अपना दांव लगाया और सोनाराम कांग्रेस का पंजा लहराने में कामयाब रहें. माना जा है कि सोनाराम सिंकू की इस जीत के पीछे भी उस इलाके में मधु कोड़ा की अपार लोकप्रियता थी. कुल मिलाकर पिछले 23 वर्षों से इस सीट पर मधु कोड़ा का राजनीतिक वर्चस्व कायम है. और बाबूलाल का मधुकोड़ा पर दांव लगाने की वजह भी यही है.
लेकिन जगन्नाथपुर से बाहर नहीं दिखता मधु कोड़ा का जलबा
लेकिन यहां जो बात गौर करने वाली है कि वह यह है कि कोल्हान की एक सीट जगन्नाथपुर को छोड़ कर उसके बाहर मधु कोड़ा कोई बड़ा करिश्मा नहीं है. लेकिन दूसरी बात जो गौर करने वाली है कि यहां भाजपा कुड़मी महतो का एक बड़ा चेहरा और पूर्व सांसद शैलेन्द्र महतो का पार्टी में इंट्री हो चुकी है. शैलेन्द्र महतो मूल रुप से चक्रधऱपुर से ही आते है. यहीं से शैलेन्द्र महतो ने अपने बीड़ी आन्दोन को धार दिया था. जिसके बाद पूरे झारखंड में उनकी पहचान कायम हुई थी.
भाजपा का सियासी गणित
बाबूलाल की सियासी गणित इसी पर टिका हुआ है, उनका मानना है कि यदि चक्रधर में शैलेन्द्र महतो और जगन्नाथपुर विधान सभा से मधु कोड़ा की जोड़ी को खड़ा कर दिया जाय तो यहां भाजपा को मुकाबले में लाया जा सकता है, बची खुची कसर उनके खुद के आदिवासी चेहरे से पूरी की जा सकती है. लेकिन यह उनका आकलन है. और जरुरी नहीं है कि उनका आकलन उसी दिशा में जाय जिस दिशा में वह ले जाना चाहते हैं. क्योंकि पूर्व सीएम मधु कोड़ा को यही भाजपा और बाबूलाल बरसों से लूट का चेहरा बताते रहे हैं. रही बात शैलेन्द्र महतो की तो पिछले एक दशक में उनकी सियासी सक्रियता काफी सिमट चुकी है, कहा जा सकता है कि आज की तारीख में वह एक बुझा हुए तीर से ज्यादा कुछ नहीं है. इस हालत में यह जोड़ी कौन सा कमाल खिला पायेगा इस पर बड़ा सवाल है.
कौन होगा इंडिया गठबंधन का चेहरा
लेकिन यहां अहम सवाल यह है कि यदि गीता कोड़ा पाला बदल कर भाजपा का दामन थाम लेती है, तो उस हालत में इंडिया गठबंधन के पास विकल्प क्या होगा? जानकारों का दावा है कि गीता कोड़ा के पाला बदलने के बाद कांग्रेस के पास वहां चेहरों का अभाव हो जायेगा. उस हालत में कांग्रेस के पास ले-देकर सिर्फ देवेन्द्रनाथ चांपिया का चेहरा ही बचता है.
देवेन्द्रनाथ चांपिया को मैदान में उतार सकती है कांग्रेस
बिहार सरकार में पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष देवेन्द्र नाथ चांपिया मंझगाव विधान सभा से विधायक भी रह चुके हैं. और आज के दिन कांग्रेस संगठन में उनकी सक्रियता बनी रहती है. लेकिन दावा किया जा रहा कि गीता कोड़ा को साथ छोड़ने की स्थिति में झामुमो की कोशिश इस सीट को अपने पाले में रखने की होगी. वैसे ही झामुमो का एक खेमा लगातार गीता कोड़ा के विरुद्ध अपनी शिकायत को दर्ज करवाता रहा है, उनका आरोप रहा है कि गीता कोड़ा झामुमो कार्यकर्ताओं को कभी भी भाव नहीं देती है, उनकी शिकायतों को सुना नहीं जाता है, जिसके कारण उन्हे अपने समर्थकों का छोटा-मोटा काम करवाने में भी पसीने छुट्ते हैं. जिसका सीधा असर उनके मतदाताओं के नाराजगी के रुप में सामने आती है.
झामुमो से दीपक बिरुआ हो जनजाति का बड़ा चेहरा
ध्यान रहे कि गीता कोड़ा की असली ताकत उनका हो जनजाति समुदाय से आना है. हो जनजाति की इस लोकसभा में काफी बड़ी आबादी है. झामुमो की बात करें तो चाईबासा से विधायक दीपक बिरुआ भी इसी समुदाय से आते हैं, इस हालत में दीपक बिरुआ झामुमो के लिए तुरुप का पत्ता साबित हो सकते हैं, लेकिन पार्टी का एक बड़ा खेमा का मानना है कि दीपक बिरुआ अपने आप को राज्य की राजनीति से बाहर करना नहीं चाहते, उनका पूरा फोकस अपने विधान सभा और राज्य की राजनीति पर है. इस हालत में जो दूसरा चेहरा सामने आता है, वह है चक्रधरपुर विधायाक सुखराम उरांव का.
सुखराम उरांव पर भी झामुमो लगा सकती दांव
खुद सुखराम उरांव भी काफी लम्बे अर्से से टिकट के दावेदार रहे हैं. और दावा यह भी किया जाता है कि गीता कोड़ा की नाराजगी की एक बड़ी वजह खुद सुखराम उरांव भी है, आरोप है कि सुखराम उरांव झामुमो के कार्यकर्ताओं को लगातार गीता कोड़ा के विरुद्ध उकसाते रहे हैं, और इसके साथ ही कार्यकर्ताओं की इस कथित नाराजगी को अपने झामुमो के आलाकमान तक पहुंचाते रहे हैं. इस हालत में जब गीता कोड़ा की विदाई होगी तो निश्चित रुप से सुखराम अपने आप को सबसे मजबूत उम्मीदवार मानेंगे.
चंपई सोरेन सीएम हेमंत का बेहद करीबी चेहरा
लेकिन यहां एक और नाम है जो खुद सीएम हेमंत का बेहद नजदीक है, वह है सरायकेला विधायक और हेमंत सरकार में परिवहन, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण चंपई सोरेन का. माना जाता है कि उपर के तमाम चेहरों में इनका चेहरा और कद सब पर भारी पड़ सकता है. लेकिन सवाल यह भी है कि क्या चंपई सोरेन खुद भी राज्य की राजनीति से अपने आप को अलग करना पसंद करेंगे.
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