Ranchi-पहले चरण के मतदान के बाद किसके हिस्से कितनी सीट आयी, इसके आकलनों का दौर जारी है. अलग-अलग इलाकों से आने वाली खबरों के आधार पर एक व्यापक तस्वीर बनाने की कोशिश की जा रही है. जीत और हार के समीकरण तलाशे जा रहे हैं. ठीक यही स्थिति लोहरदगा संसदीय सीट की है. दावा किया जा रहा है कि इस त्रिकोणीय मुकाबले में मुख्य संघर्ष भाजपा और कांग्रेस के बीच है. और इसकी वजह है चमरा लिंडा का अपेक्षित सफलता मिलना, यदि चमरा लिंडा को अपेक्षित सफलता मिली होती तो भाजपा का रास्ता कुछ और आसान हो सकता था. चूंकि चमरा लिंडा उस स्तर पर सेंधमारी में सफल नहीं रहें, इसलिए अभी भी कांग्रेस की संभावना बनी हुई है.
कांग्रेस के अंदर भीतरघात का खेल
कांग्रेस की जीत पर संशय के पीछे एक और वजह भीतरघात का खेल बताया जा रहा है. सवाल खड़ा किया जा रहा है कि विशुनपुर में चमरा की सेंधमारी तो समझ में आती है, लेकिन लोहरदगा और मांडर में क्या खेल हुआ? और यह खेल किसके इशारों पर खेला गया. बंधु तिर्की के बैंटिंग के बावजूद यदि चमरा लिंडा मांडर में सेंधमारी में सफल रहते हैं तो कांग्रेस के रणनीतिकारों को एक बार फिर से अपनी पूरी रणनीति पर विचार करना होगा, क्योंकि यही परिस्थितियां दूसरे लोकसभा क्षेत्र में भी देखने को मिल सकती है. यदि बात हम लोहरदगा की करें तो इस इलाके में धीरज साहू का व्यापक असर माना जाता है, लेकिन पूरे चुनाव प्रचार-प्रसार में धीरज साहू कभी कहीं नहीं दिखें, दूसरी ओर सुखदेव भगत ने भी धीरज साहू से दूरी बनाये रखा और अब जो खबर आ रही है, उसके अनुसार लोहरदगा में चमरा लिंडा ने सेंधमारी कर कांग्रेस की जीत पर ग्रहण लगा दिया. हालांकि कुल मुलाकर चमरा लिंडा कोई बड़ी सेंधमारी कर पाने में नाकाम रहे, जिसका लाभ कांग्रेस को मिल सकता है.
क्या है लोहरदगा का समीकरण
यहां ध्यान रहे कि लोहरदगा संसदीय क्षेत्र में करीबन 4.5 लाख उरांव, 3.5 लाख ईसाई आदिवासी,1.25 लाख मुस्लिम और करीबन पांच लाख के आसपास सामान्य जाति के मतदाता है. दावा किया जा रहा है कि आदिवासी समाज का करीबन 60 फीसदी हिस्सा सुखदेव भगत के पक्ष में गया है, जिस ईशाई आदिवासियों पर चमरा की विशेष नजर थी, उसका भी बड़ा हिस्सा सुखदेव भगत को मिला, जबकि सामान्य जातियों का बड़ा हिस्सा समीर उरांव के पक्ष में गया, इस हालत में जीत हार इस बात पर निर्भर करता है कि सामान्य जातियों में कांग्रेस की सेंधमारी कितनी हुई. और क्या यह सेंधमारी कांग्रेस के हिस्से जीत दिलवाने की ताकत रखता है, वहीं भाजपा की उम्मीद इस बात पर टिकी है कि सामान्य जातियों का कितना बड़ा हिस्सा उसके साथ खड़ा हुआ? कुल मिलाकर यदि लोहरदगा में कांग्रेस के हिस्से हार आती है, तो यह आश्चर्य की बात नहीं होगी. और इसका कारण चमरा लिंडा का बगावत के साथ ही भीतरघात का खेल भी है. सियासी जानकारों का दावा है कि लोहरदगा संसदीय सीट पर कई कांग्रेसी दिग्गजों की नजर है. जिनके सामने सुखदेव भगत की जीत में अपनी भविष्य की संभावनाओं पर विराम लगने का खतरा था, और इस भीतरघात की वजह भी यही है. हालांकि नतीजा क्या आयेगा, इसके लिए चार जून तक इंतजार करना होगा, जब सब कुछ शीशे की तरफ साफ होगा, मांडर में कितनी सेंधमारी हुई और लोहरदगा में क्या खेल हुआ, सब कुछ सामने होगा.
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