Ranchi- झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य सहित सत्ता पक्ष के कई नेताओं ने मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी से मुलाकात कर गांडेय विधान सभा में चुनाव की प्रक्रिया शुरु करने का अनुरोध किया. और इसके साथ ही गांडेय विधान सभा चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज होती नजर आने लगी है. और इस सरगर्मी की एक खास वजह भी है.
बदलती संभवानाओं पर पैनी नजर
दरअसल सीएम हेमंत के इंकार के बावजूद इस बात का दावा जारी है कि इस बार गांडेय विधान सभा चुनाव से कल्पना सोरेन की सियासी इंट्री होने जा रही है. यह ठीक है कि सीएम हेमंत इस्तीफा नहीं देने जा रहे हैं, और जो परिस्थितियां बन रही है, उसके हिसाब से लोकसभा चुनाव के पहले तक ईडी सीएम हेमंत पर हाथ की भूल नहीं करने वाली, क्योंकि हेमंत की गिरफ्तारी झामुमो के लिए एक सियासी वरदान हो साबित हो सकता है, और भाजपा यह सियासी भूल नहीं करने वाली. लेकिन इसके साथ ही यदि लोकसभा चुनाव के बाद देश की सियासत में बदलाव नहीं आता है, भाजपा की सीटें एक सीमा से ज्यादा नहीं घटती है, और इस हद तक नहीं घटती है कि विपक्ष की सरकार बने या कम से कम भाजपा को पार्टी के अंदर किसी दूसरे चेहरे की तलाश करने को मजबूर होना पड़ें. क्योंकि यदि 100 सीटें भी कम जाती है तो पीएम मोदी के नाम पर दूसरे दलों से समर्थन की आशा करना भी बेमानी होगा. और आज भाजपा हिन्दी पट्टी की पार्टी बन कर रह गयी है, दूसरी तरफ यूपी बिहार झारखंड लेकर हर राज्य में विपक्ष अपनी घेराबंदी तेज कर चुका है, और एक सच्चाई यह भी है कि इस हिन्दी पट्टी में भाजपा अपने सर्वोच्च स्तर है, जहां से उसे अब आगे बढ़ने का कोई रास्ता नहीं है, सारी सीटें उसके पास ही, उसे तो अपनी सीटें बचाने की लड़ाई लड़नी है, जबकि कांग्रेस सहित इंडिया घटक के दूसरे दलों के सामने आसमान खुला है. बावजूद इसके एक बार से पीएम मोदी की विकल्प खुला है, और उस हालत में सीएम हेमंत पर खतरा मंडरा सकता है. और शायद इसी तैयारी में कल्पना सोरेन के लिए गाडेंय विधान सभा से सदन में इंट्री का रास्ता साफ किया जा रहा है.
तेज होती नजर आ रही है जयराम की सक्रियता
लेकिन दूसरी खबर यह है कि गांडेय विधान सभा को लेकर जयराम महतो की सक्रियता भी तेज हो चुकी है. हालांकि जयराम लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में भी है, दावा किया जाता है कि इस बार उनकी पार्टी लोकसभा की दो सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारेगी, लेकिन इसके साथ ही गांडेय विधान सभा को लेकर भी रणनीति बनायी जाने लगी है, और यदि झामुमो से कल्पना सोरेन की इंट्री होती है, तो उस हालत में जयराम खुद सियासी मैदान में उतर सकते हैं.
हार या जीत दोनों ही हालत में मिलने जा रहा है एक सियासी ध्रुवतारा!
और यदि ऐसा होता है तो यह ना सिर्फ जयराम का भविष्य तय करेगा, बल्कि कल्पना सोरेन की तकदीर भी लिखी जायेगी. यदि जयराम अपने पहले ही प्रयास में हेमंत की ‘कल्पना’ को मात देने में कामयाबा होते हैं तो इसे झारखंड की सियासत में एक ध्रुवतारे का उदय माना जायेगा, और यदि हार गयें तो भी उनका सियासी शख्सियत में निखार आयेगा. यहां मुकाबला दो हाईप्रोफाईल चेहरों के बीच होगा. दोनों ही काफी पढे लिखें है, एक तरफ जयराम अपने पीएचडी की तैयारी कर रहे हैं तो वहीं कल्पना अपने समय की टॉपर रही हैं. इंजीनियरिंग के छात्र रहे हैं. एक तरफ जहां जयराम नीतियों के निर्माण और शासन के संचालन में आदिवासी-मूलवासियों का हक हकूक की बात करते हैं, झारखंडी अस्मिता का सवाल उठाते हैं, जल जंगल और जमीन की लूट के खिलाफ आवाज देते नजर आते हैं, वहीं कल्पना सोरेन का दावा होगा कि जिस आवाज को आज जयराम उठा रहें है उसकी तो शुरुआत ही दिशोम गुरु ने की थी. भला उनसे ज्यादा आदिवासी मूलवासी समाज के लिए संघर्ष किसने किया, और आज भी हेमंत इसी धारा को आगे बढ़ा रहे हैं, और उसके लिए अपनी गिरफ्तारी को भी तैयार बैठे हैं, 1932 का खतियान हो, या सरना धर्म कोड या फिर पिछड़ो का आरक्षण विस्तारा या स्थानीय कंपनियों में स्थानीय लोगों के लिए 75 फीसदी का आरक्षण ये सारे फैसले तो हेमंत सरकार ने लिये, इस प्रकार देखा जाय को यह मुकालबला एक ही सिन्द्धात पर चलने वाली दो पार्टियों के बीच का होगा.
दो चेहरों की लड़ाई में कहीं खिल नहीं जाये कमल
लेकिन मूल सवाल यह है कि क्या इस मुकाबले में भाजपा का रास्ता साफ तो नहीं होगा. क्योंकि यहां याद रखने की जरुरत है कि 2019 के विधान सभा चुनाव में जहां सरफराज अहमद को 65,023 के साथ जीत की वरमाला मिली थी, वहीं भापजा के जयप्रकाश वर्मा ने भी 56,168 वोट लाकर अपनी मजबूती का संदेश दिया था, लेकिन दिलचस्प यह भी है कि यदि जेपी वर्मा को प्राप्त मतों में आजसू के अर्जून बैथा का प्राप्त 15 हजार मतों को जोड़ दें तो यह आंकड़ा सरफराज अमहद को मिले कुल मतों से कहीं पार चला जाता है. तो क्या इन दो चेहरों की लड़ाई में इस बार रामगढ़ के बाद एक बार फिर से भाजपा का कमल खिलने जा रहा है.
झारखंड के चुनावी इतिहास का सबसे रोचक मुकाबला
लेकन यहां यह भी याद रखा चाहिए कि अब तक हुए तमाम उपचुनाव का परिणाम यदि रामगढ़ को छोड़ दें तो सत्ता पक्ष के खाते में रही है, विधान सभा उपचुनाव में सता पक्ष का स्ट्राइक रेट काफी शानदार रहा है. रामगढ़ विधान सभा चुनाव इस बात का भी घोतक है कि झारखंड की सियासत में भाजपा तब ही कमल खिला पाती है, जब उसके साथ आजसू होती है. आजसू का किनारा करते हैं भाजपा औंधे मुंह गिरने को मजबूर हो जाती है, उसका कारण भी बड़ा साफ, जिस प्रकार आदिवासी मतदाताओं पर झामुमो की मजबूत पकड़ है, उसी प्रकार आजसू का कुर्मी मतदाताओं पर जादू बोलता है. और रामगढ़ में महागठबंधन को इसी चुनौती का सामना करना पड़ा था, हालांकि रामगढ़ की यह सफलता डुमरी तक आते आते दम तोड़ गयी, लेकिन यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए कि वहां भाजपा का मुकाबला टाईगर जगरनाथ महतो की पत्नी के साथ था, जो खुद भी एक कद्दावर कुर्मी चेहरा थें, लेकन सवाल यह है कि गांडेय में क्या होगा, तत्काल सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि यदि कल्पना सोरेन और टाईगर जयराम की भिड़त होती है तो यह मुकाबला झारखंड के चुनावी इतिहास का सबसे रोचक मुकाबला होगा.
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