Ranchi-झारखंड हाईकोर्ट के द्वारा पूर्व पार्षद रोशनी खलखो की ओर से दायर रिट याचिका पर सुनवाई के दौरान तीन सप्ताह के अंदर अंदर नगर निकाय के चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद पिछड़ों के आरक्षण पर सियासी सरगर्मी तेज हो चुकी है. और पिछड़ों की इस हकमारी के लिए सीधे सीधे हेमंत सरकार को कटघरे में खड़ा करने की सियासत की शुरुआत हो चुकी है, हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का एलान कर आजसू इस मामले में बढ़त प्राप्त करती दिख रही है.
इस फैसले से राज्य सरकार को पिछड़ों की हकमारी का मिला बहाना
दरअसल गोमिया विधायक लम्बोदर ने इस मामले में आजसू की ओर से सुप्रीम कोर्ट जाने का एलान किया है. उन्होंने कहा है कि पहले भी आजसू पिछड़ों के हक अधिकार की लड़ाई लड़ती रही है और आगे भी वह पिछड़ों का मुखर आवाज बन उनकी हकमारी का विरोध करेगी. आजसू ने ही पिछली बार सुप्रीम को बगैर पिछड़ों का आरक्षण करवाने के फैसले का विरोध किया था, इस बार भी हम इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे. क्योंकि इस तीन सप्ताह में किसी भी हालत में ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया को पूरा करवाना असंभव है, और इस फैसले से राज्य सरकार को पिछड़ो की हकमारी का एक बहाना हाथ लग गया है, लेकिन हम इसे संभव नहीं होने देंगे और देश की सर्वोच्च अदालत से इस फैसले पर रोक लगाते हुए सरकार को निर्धारत समय सीमा के अंदर ट्रिपल टेस्ट करवाने का निर्देश देने की गुहार लगायेंगे.
यहां ध्यान रहे कि 14 मई 2020 से राज्य के 34 नगर निकायों में लंबित चुनावी की प्रक्रिया पर अपनी नाराजगी प्रकट करते झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को तीन सप्ताह के अंदर अंदर चुनाव की अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया है. और इसके साथ ही पंचायत चुनाव के समान ही निकाय चुनाव में पिछड़ों का आरक्षण पर ग्रहण लगता दिख रहा है.
बगैर थ्री लेयर टेस्ट के पिछड़ों का आरक्षण प्रदान नहीं किया जा सकता
दरअसल जब तक थ्री लेयर टेस्ट की प्रक्रिया को पूरा नहीं कर लिया जाता, तब तक पिछड़ी जातियों को आरक्षण प्रदान नहीं किया जा सकता, थ्री लेयर टेस्ट वह प्रकिया है, जिसके राज्य में पिछड़ों की संभावित जनसंख्या की जानकारी मिलती है, झारखंड सरकार ने 30 जून 2023 को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के माध्यम से थ्री लेयर टेस्ट करवाने का निर्णय लया था. लेकिन दुखद स्थिति यह है कि आज के दिन राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के पास उसका अध्यक्ष ही नहीं है. इसके अध्यक्ष रहे सेवानिवृत जस्टिस लोकनाथ प्रसाद की मौत पिछले साल जनवरी माह में हो गयी थी, तब से यह पद खाली है. पिछले वर्ष ही तीन नवम्बर अध्यक्ष पद खाली रहने पर झारखंड हाईकोर्ट ने अपनी कड़ी नाराजगी जतायी थी. बावजूद इसके इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई.
सरकार की नियत पर सवालिया निशान
इस हालत में स्वाभाविक रुप से राज्य सरकार की नियत पर सवाल खड़े होते हैं, एक तरफ सरकार जातीय जनगणना करवाने का दंभ भरती है, और बेहद हड़बड़ी में बगैर जातीय जनगणना के ही पिछड़ी जातियों के आरक्षण विस्तार का फैसला भी ले लेती है, तो दूसरी ओर वही सरकार पंचायत चुनाव से लेकर निकाय चुनाव तक पिछड़ों की हकमारी का रास्ता भी साफ करती दिखती है.
राज्य में पिछड़ी जातियों की संभावित संख्या करीबन 54 फीसदी
यहां बता दें कि एक अनुमान के अनुसार राज्य में पिछड़ी जातियों की जनसंख्या करीबन 54 फीसदी की है, साफ है कि यदि कोर्ट के फैसले के दवाब में सरकार की ओर से अधिसूचना जारी करने की पहल की जाती है, तो निश्चित रुप से 2024 के लोकसभा चुनाव में यह विपक्षी दलों के हाथ में इस सरकार के खिलाफ बड़ा मुद्दा होगा, और इसके साथ ही विभिन्न ओबीसी संगठनों की ओर से भी मोर्चेबंदी की जा सकती है.
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