Ranchi- सियासत बड़ा ही गंभीर पेशा है. इस पेशे में कोई अवकाश नहीं होता, कदम-कदम पर दुश्वारियां इंतजार कर रही होती है. कब कौन रास्ता काट जाये, और कौन आपके ही खेमे में खड़ा होकर आपकी जमीन उलट दे, इसे भांप पाना इतना टेढ़ी खीर है, और इस उंचाईयों तक पहुंचने के तक उतार चढ़ाव की लम्बी पारी खेलने होती है, इस यात्रा में धोखे भी मिलेंगे और सियासी दर्द भी सतायेगा. यहां पग पग पर धोखा और तिकड़मों का जाल होगा.
सियासत की पहली सीख, अपने हर मोहरे का तोड़ तैयार रखें
शायद यही कारण है कि सीएम नीतीश के बारे में यह धारणा आम है कि वह किसी पर विश्वास नहीं करते, एक हद के बाद वह बहुत ही खुबसूरती के साथ अपने ही मोहरों का ऑपेरशन भी करते हैं, जैसी ही उसकी सीढ़ी खिंची जाती है, वह अचानक से सियासत की बुलंदियों से जमीन का सफर कर रहा होता है, शरद यादव, जॉर्ज फर्नांडिस से लेकर आरसीसी सिंह और अब ललन सिंह इसके खुबसूरत उदाहरण है. लेकिन यहां बात हेमंत की हो रही है, कई लोगों को आज भी लगता है कि वह उस हेमंत सोरेन के सामने खड़ा है, जिसे वह लम्बे अर्से तक गुरु जी की छत्रछाया में बढ़ता देख रहा था, या उस हेमंत को देख रहा है, जिसकी जड़ें बमुश्किल संताल में थी, और झामुमो 18 से 20 सीटें के साथ सत्ता का एक कोण भर बनाता दिखता था, लेकिन वह भूल जाते हैं कि जिस कोल्हान में गुरु जी का झंडा नहीं लहराया, आज वह कोल्हान हेमंत के लिए संथाल से भी मजबूत किले के रुप में सामने आया है, और हेमंत की हसरतें यहीं नहीं रुक रही, जिस शहरी मतदाताओं को साध कर अब तक भाजपा अपना दम खम दिखलाती रही है, हेमंत की अगली कोशिश इन शहरी मतदाताओं के बीच अपनी जमीनी पैठ बनाने की है. और इसी के मद्देनजर चेहरे तलाशे जा रहे हैं.
हेमंत का ताजातरीन ऑपेरशन
लेकिन यहां हम बात कर रहे हैं हेमंत का ताजातरीन ऑपेरशन की, जिस चाल में फंस कर भाजपा इस उलझन में पड़ गयी कि आखिर इस सियासी चाल का असली निशाना क्या है. उसका मकसद क्या है. और इसके बाद हेमंत का अगली चाल क्या है. और इसी बेबसी में बाबूलाल को कहना पड़ा कि ना कोई बीमारी ना कोई परेशानी, लेकिन सरफराज अहमद ने अचानक से अपना इस्तीफा क्यों दिया? और उससे भी बड़ी बेचैनी तो यह थी कि एक पार्टी का विधायक साथ छोड़ गया, सदस्यता से इस्तीफा दे दिया, पार्टी को अलविदा कह दिया और बावजूद इसके झामुमो की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी, और इसके बाद ईडी ईडी खेलने की आदी भाजपा ने एक एंगल तैयार किया, वह एंगल था कल्पना सोरेन का. उसके दावा किया कि ईडी के चंगुल में फंसे हेमंत के सामने अब इस्तीफा देने के सिवा कोई विकल्प नहीं है. और यही कारण है कि सरफराज अहमद से इस्तीफा लिया गया है, ताकि अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को गांडेय सीट से विधान सभा में इंट्री करवाया जा सकें, लेकिन इस हड़बड़ी में भाजपा ने इस सवाल को तलाशने की कोशिश नहीं किया कि आखिरकार सरफराज अहमद ने पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा क्यों दिया?
भाजपा के साथ ही कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी को भी गच्चा
उधर कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी भी इस चाल को समझने में चूक गयें, उन्हे तो यही समझ में नहीं आया कि एक सत्ता पक्ष के विधायक ने इस्तीफा क्यों सौंपा, और भी उस हालत में जब उसके सामने भाजपा में जाने का विकल्प भी नहीं है. और शायद जब यह चाल समझ में आयी, तब उनकी सियासी हसरतों पर पानी फिर चुका था. दरअसल जिस सरफराज अहमद को राजधानी में सियासी भूचाल मचा, उसकी पटकथा तो किसी और मकसद से लिखी गयी थी, और वह मकसद था, गोड्डा लोकसभा संसदीय सीट पर भाजपा के सामने एक मजबूत प्रत्याशी को मैदान में उतारना. यह वही गोड्डा संसदीय सीट है, जिस पर काफी अर्से से इरफान अंसारी अपने पिता फुरकान अंसारी के लिए बैटिंग करते रहे हैं, और यह दावा भी ढोकते रहें है कि गोड्डा से बगैर किसी अल्पसंख्यक चेहरे को उतारे बिना निशिकांत को परास्त नहीं किया जा सकता, हालांकि कांग्रेस ने वर्ष 2014 में फुरकान को यह अवसर दिया था, लेकिन वह निशिकांत को परास्त करने में असफल साबित हुए, उसके बाद 2019 में प्रदीप यादव भी दांव आजमाया गया. लेकिन सफलता वहां भी हाथ नहीं लगी, और अब सीएम हेमंत ने कांग्रेस को उसका ही पुराना घोड़ा वापस कर उसे गोड्डा के अखाड़े में उतारने की मुफ्त की सलाह भी दे डाली, खबर यह है कि भले ही राजधानी रांची में ईडी ईडी का खेल चल रहा हो, लेकिन इंडिया गठबंधन के घटक दलों के द्वारा बड़ी होशियारी से अपने घोड़े चुने जा रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही मुकाबला शुरु होने के पहले पहले इन घोड़ों को एक हद तक छुपाने की कोशिश भी जारी है, सरफराज अहमद वही सियासी घोड़ा है, जिन्हे 2024 के दंगल में गोड्डा के जंग में उतारना है.
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