Ranchi-नववर्ष के ठीक पहले राजधानी रांची के दौरै पर आये भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता जफर इस्लाम ने दावा किया है कि 2023 की यह हेमंत सरकार 2024 में रहने वाली नहीं है. लूट की हेमंत सरकार की विदाई की बेला उनके दरवाजे पर दस्तक दे रही है, वह दिन दूर नहीं जब वह जांच एजेंसियों के गिरफ्त में होंगे. लगे हाथ जफर इस्लाम ने राज्य के अधिकारियों को भी चेतावनी देते हुए हेमंत सरकार की काली करतूतों से दूर रहने की हिदायत भी दी. उन्होंने कहा कि जांच एजेंसिया कहर सिर्फ हेमंत सरकार पर ही फूटने वाला नहीं है, बल्कि जैसे जैसे जांच की गति आगे बढ़ेगी, अधिकारी भी चंगुल में आयेंगे और फिर उनका हिसाब-किताब भी किया जायेगा.
हेमंत के साथ ही अधिकारियों को भी बूरे दिन की धमकी दे गयें जफर इकबाल
हालांकि भाजपा के इस दावे में कुछ भी नया नहीं है, और ना ही अधिकारियों की दी जा रही यह धमकी नई है, इस तरह की चेतावनियां और धमकी पहले ही दी जाती रही है, शायद यही कारण है कि हेमंत सोरेन भी अपनी रैलियों में इसे मुद्दा बनाते दिखते हैं, उनका दावा है कि जिस दिन उनकी सरकार का शपथ ग्रहण हो रहा था, भाजपा उसी दिन से सरकार को गिराने की साजिश में जुट गयी थी, क्योंकि भाजपा को किसी भी आदिवासी-मूलवासी के द्वारा जल, जंगल और जमीन की बात करना नागवार गुजरता है. उसके पेट में एक प्रकार का एंठन होने लगता है, उसे लगता है कि यह सरकार तो हमारे एजेंडे से बाहर निकल कर जल जंगल और जमीन की बात कर रही है, आदिवासी-मूलवासियों के जमीनी मुददे और उनकी जिंदगी में बदलाव की बात रह रही है. उनके हक हकूक और राजनीतिक सामाजिक भागीदारी के सवाल को उछाल रही है.
क्या वाकई 2024 में हेमंत की विदाई होने वाली है?
सीएम हेमंत के दावे अपनी जगह, लेकिन मूल सवाल यह है कि क्या वाकई 2024 में हेमंत सोरेन की विदाई होने वाली है, क्योंकि यह प्रलाप और विलाप भाजपा खेमे के द्वारा पिछले चार वर्षों से चलाया जा रहा है, और तो और एक खेमे के द्वारा तो यह खबर भी चलाई जाती रही है कि जल्द ही हेमंत सोरेन भाजपा के साथ मिल कर सरकार बनाने वाले हैं, इसके पक्ष में दलील दी जाती है कि हेमंत सरकार के खिलाफ जांच एजेंसियों को पुख्ता सबूत हाथ लग चुके हैं. और अब हेमंत के सामने भाजपा के साथ मिलकर सरकार चलाने के सिवा कोई दूसरा विकल्प शेष नहीं है. यह दूसरा प्रलाप भी पिछले तीन वर्षों से चुटकुले की शक्ल में लोगों के बीच परोसा जा रहा है. और इन्ही सियासी चुटकूलों के सहारे भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को यह भरोसा दिलाने की कोशिश की जा रही है कि धैर्य रखें, जल्द ही अच्छे दिन आने वाले हैं. लेकिन साल दर साल बीतते गयें, हेमंत सरकार धीरे धीरे अब अपने कार्यकाल की समाप्ति की ओर बढ़ती नजर आ रही है, लेकिन यह दावे आज भी उसी जोश खरोश के साथ परोसे जा रहे हैं.
हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से भाजपा के हाथ क्या आयेगा?
लेकिन सवाल फिर वही है, यह हकीकत है या फंसाना, यह मान भी लिया जाये कि हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर लिया जायेगा, और यह कोई नामुमकिन टास्क भी नहीं है, हालांकि इस राह में कई कानूनी और नीतिगत प्रक्रिया हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस गिरफ्तारी से भाजपा के हिस्से क्या आयेगा? क्या सीएम का चेहरा बदलने भर से भाजपा कार्यकर्ताओं के अच्छे दिन आ जायेंगे? राजनीतिक जल्दबाजी में यह आकलन कर लेना कि हेमंत की गिरफ्तारी से भाजपा के लिए सत्ता से रास्ते खुल जायेंगे, एक हसीन फसाना तो नहीं है. क्योंकि राजनीति जमीनी सच्चाईयों से चलती है, हेमंत सोरेन का भी एक अपना बड़ा समर्थक वर्ग है, निश्चित रुप से पीएम मोदी देश में एक बड़ा चेहरा हैं, जब भी कोई पीएम की कुर्सी पर होता है, उसका अपना एक औरा होता है, यही औरा एक वक्त जवाहर लाल नेहरू से लेकर इंदरा गांधी की भी थी, लेकिन सच्चाई यह भी है कि क्षेत्रीय क्षत्रपों का भी अपना औरा होता है, उनकी भी अपनी फैन फोलोइंग होती है, और यह मानने में कोई गुरेज नहीं है, झारखंड की राजनीति मे हेमंत सोरेन का भी एक अपना औरा है,अपनी फैन फॉलोइंग है, अपना सामाजिक आधार है, और उस सामाजिक आधार के हीरो हेमंत सोरेन हैं.
हेमंत की गिरफ्तारी के बाद झारखंड में जश्न की स्थिति होगी?
सवाल यह है कि इस कथित गिरफ्तारी के बाद क्या वह सामाजिक समूह इसका जश्न मनायेगा? प्रधानमंत्री मोदी के इकबाल को सलाम करेगा, हेमंत की गिरफ्तारी को प्रधानमंत्री मोदी के कथित भ्रष्टाचार की लड़ाई का प्रतीक मानेगा, या फिर उस सामाजिक समूह में यह संदेश जायेगा कि उसके अधिकारों की बात करने की सजा सीएम हेमंत को मिली. क्या यह सामाजिक समूह हेमंत सोरेन में अपना अस्क देखता है, इस हालत में तो साफ है कि हेमंत की गिरफ्तारी झामुमो के लिए एक वरदान भी बन सकता है. और उस आग में भाजपा के लिए 2024 में 14 में 12 लोकसभा की सीटों पर अपना परचम फहराना एक चुनौती बन जायेगा.
गिरफ्तारी के बाद क्या होगी झामुमो की रणनीति
हालांकि यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि हेमंत की गिरफ्तारी को भाजपा किस रुप में प्रचारित करती है, और उसके उलट झामुमो की ओर से क्या रणनीति बनायी जाती है, वह अपने समर्थक समूहों के बीच इसे किस रुप में परोसता है. यदि झामुमो इस गिरफ्तारी के बाद एकजूट होकर मुकाबला करता है, अपने समर्थक समूहों के बीच इस बात को पहुंचाने में सफल रहता है कि हेमंत की गिरफ्तारी किसी भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम का हिस्सा नहीं, बल्कि आदिवासी -मूलवासियों की आवाज उठाने की कीमत है, तो यह भाजपा पर भारी पड़ सकता है, क्योंकि हिमन्त बिश्व शर्मा, नारायण राणे लेकर अजीत पवार, सुवेंदु अधिकारी जैसे नामों की एक बड़ी लम्बी सूची है, जिस पर इसी प्रकार ईडी की तलवार लटक रही थी, लेकिन जैसे ही इन नेताओं ने पाला बदला, उनके सारे कथित भ्रष्टाचार छू-मंतर हो गया, जिस अजीत पवार के खिलाफ चार दिन पहले तक मोदी आरोपों का पुलिंदा खोल रहे थें, महज 100 घटों के अंदर महाराष्ट्र में वही अजीत भाजपा के साथ सत्ता की जलेबी खाने लगे. और उसके बाद उन पर लगे भ्रष्टाचार के तमाम आरोप गंगा जल से साफ कर दिया गया, आज ना तो ईडी अजीत पवार से सवाल कर रही है और ना ही सीबीआई नोटिस भेज रही है.
क्या इतना नादान है हेमंत झारखंडी समाज
तो क्या हेंमत सोरेन के कोर वाटरों को इस हालत की जानकारी नहीं होगी, इस दुहरे रवैये का पता नहीं होगा. और यदि नहीं होगा, तो क्या झामुमो इस तल्ख हकीकत को अपने समर्थक वर्ग तक ले जाने में पीछे रहेगी? हेमंत की गिरफ्तारी ना तो इतना आसान है, और ना ही हिमालय की चोटी. इसके अपने नफे नुकसान है, हेमंत पर हाथ डालने के पहले भाजपा आलाकमान के द्वारा इसका आकलन जरुर किया जा रहा होगा, लेकिन फिलहाल तो यह सिर्फ अपने कार्यकर्ताओं का जोश हाई रखने की रणनीति ही नजर आ रही है
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