रांची(RANCHI): विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सत्ता पक्ष की ओर से वन संरक्षण संशोधन अधिनियम को लेकर बवाल काटा गया है. सत्ता पक्ष से जुड़े विधायकों का दावा है कि केन्द्र सरकार के द्वारा निर्मित यह अधिनियम आदिवासी समाज के परंपरागत अधिकारों का हनन करता है, आदिवासी समाज सदियों से इन वनों पर निर्भर रहा है, जंगल खत्म मतलब आदिवासी खत्म, लेकिन केन्द्र सरकार इस अधिनियम में संशोधन कर आदिवासी समाज के उनका हक छिनना चाहती है, और आदिवासी समाज किसी भी हालत में इस संशोधन को स्वीकार नहीं करेगा. जल जंगल और जमीन पर जो अधिकार आदिवासी समाज के पास है, उसमें छेड़छाड़ की अनुमति नहीं जा सकती, इस बारे में कोई भी निर्णय संबंधित ग्राम सभा ही ले सकती है.
झामुमो विधायक सुदिव्य कुमार सोनू का दावा
इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखते हुए झामुमो विधायक सुदिव्य कुमार सोनू ने कहा कि जब तक जल जंगल जमीन सुरक्षित रहेगा, आदिवासी समाज सुरक्षित रहेगा, एक बार उसके हाथ से जल जंगल और जमीन की सत्ता निकल गयी तो वह विलूप्त होने के कगार पर पहुंच जायेगा. लेकिन केन्द्र सरकार ने इस कानून में संशोधन कर ग्राम सभा से स्वीकृति की बाध्यता को समाप्त कर दिया है, इसके साथ ही भाजपा का आदिवासी विरोधी रवैया भी साफ हो गया. जब तक यह संशोधन वापस नहीं लिया जाता, आदिवासी समाज अपनी आवाज उठाता रहेगा. आज जो लोग आदिवासियों के नाम पर सत्ता में सदन में पहुंचे हैं, वे भी आदिवासी समाज के लिए गड्ढा खोदने का काम कर रहे हैं. हालांकि इसके पलटवार में नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी ने दावा किया कि इस संशोधन से आदिवासी समाज के हितों का संरक्षण होगा. झामुमो की सरकार में पहाड़ों को काट काट कर खत्म किया गया, जमीनों को बेचा गया, लेकिन अब अपनी सत्ता जाते देख कर सदन में धरना देने का नौटंकी कर रहे हैं. जबकि सच्चायी यह है कि हेमंत सरकार में आदिवासी बेहाल है, खुद सीएम हेमंत के विधान सभा क्षेत्र में बच्चों की मौत हो रही है.
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