Ranchi- केन्द्र की मोदी सरकार वर्ष 2022 तक हर गरीब को पक्का मकान उपलब्ध करवाने का दावा पेश कर रही थी, हालांकि 2022 से आगे बढ़कर अब हम 2024 से महज चंद कदम की दूरी पर खड़े हैं. बावजूद इसके आज भी बेघरों की समस्या वहीं की वहीं खड़ी नजर आती है, आज भी समाज के एक बड़े हिस्से को एक अदद छत की तलाश है, धूप बारिश से बचने के लिए यह तबका आज भी जद्दोजहद करता नजर आ रहा है. दिन तो किसी तरह गुजर जाती है, लेकिन रात कहां गुजरेगी, इस आंतक के साये में वह हर दिन मरता है.
हज़ारीबाग़ के जमुआ गांव की कहानी
केन्द्र सरकार के इस वादे के विपरीत राज्य की हेमंत सरकार अब राज्य के करीबन 12 लाख आश्रयहीन परिवारों को तीन कमरे का पक्का आवास देने की घोषणा कर रही है, अब देखना होगा कि इस वादे और एलान का हश्र क्या होता है, क्योंकि इन गरीबों को एक छत चाहिए, सुनहरे सपने तो वह रात के अंधेरे में भी देख लेते हैं. लेकिन इन तमाम दावों-प्रतिदावों से अलग झारखंड में आवास का संकट कितना बड़ा और विकराल है, इसे हज़ारीबाग़ के जमुआ गांव में रहने वाले एक दलित युवक सहदेव राम की रुह कंपाने वाली कहानी से समझा जा सकता है. पेशे से राजमिस्त्री सहदेव पिछले छह वर्ष से सरकार द्वारा बनाये गये शौचालय को ही अपना आशियान बनाये हुए है, हर सुबह वह इस उम्मीद से जागता है कि शायद आज उसका सपना पूरा हो जाय, शायद कोई उसकी फरियाद सुन ले, और वह अपने बाल-बच्चों को मायके से वापस ला सके.
पुस्तैनी घर गिरने के साथ ही हाथ भी टूटा
दरअसल छह वर्ष पहले भारी बारिश के बीच उसका पुस्तैनी कच्चा मकान भर भराकर कर गिर पड़ा था, जिसके बाद सहदेव राम के सामने अपनी बीबी और बच्चों के लिए एक आशियाने की खोज शुरु हुई थी. वह लगातार अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों की दरवाजे पर गुहार लगाता रहा. लेकिन हर चौखट पर उसे सिर्फ दुत्कार ही दुत्कार मिला, कई ऐसे भी मिले तो सांत्वना दिलाशा देने की कोशिश करते तो जरुर नजर आयें, लेकिन यहां सवाल तो एक अदद छत का था, चंद माह के भागदौड़ के बाद उसने अपने बीबी बच्चों को ससुराल पहुंचाना बेहतर समझा. और खुद सरकार से मिले शौचालय को ही अपना आशियाना बना कर रहने लगा. लेकिन सहदेव राम की यह दारुण कथा यहीं खत्म नहीं होती. पुस्तैनी आवास गिरने के चंद दिन बाद ही एक दुर्घटना में उसका एक हाथ भी टूट गया, जिसके बाद उसके सामने आजीविका का भी संकट खड़ा हो गया.
मुखिया से लेकर प्रखंड विकास पदाधिकारी को गुहार
सहदेव राम का दावा है कि घर गिरने के बाद उसने मुखिया कामेश्वर मेहता से लेकर प्रखंड विकास पदाधिकारी तक अपनी गुहार लगायी. लेकिन हर दरवाजे से उसे सिर्फ झलावा मिला, हालांकि वर्तमान मुखिया भोला तूरी का दावा है कि आवास से जुड़े सभी जरुरी दस्तावेज संबंधित अधिकारियों को भेज दिया गया है, लेकिन फिलहाल इस मद में अभी कोई फंड ही नहीं है, इसलिए आवास प्रदान नहीं किया जा सका और वह शौचालय में रहने को विवश है. हालांकि इस बीच प्रखंड विकास पदाधिकारी मनीष कुमार ने भरोसा दिलाया है कि उसके आवेदन को हेमंत सरकार की बहुचर्चित योजना अबुका आवास योजना के तहत स्वीकार कर लिया गया है, जल्द ही उस पर कार्रवाई होगी.
हेमंत सरकार का दावा
यहां ध्यान दिला दें कि राज्य की हेमंत सरकार यह दावा करती रही है कि केन्द्र सरकार झारखंड के आठ लाख गरीबों को आवास देने को तैयार नहीं थी, जिसके कारण उसे अबुआ आवास योजना की शुरुआत करनी पड़ी, जिसकी पूरी लागत राज्य सरकार खुद के संसाधनों के बल पर करेगी. अब प्रधानमंत्री आवास योजना के निराश सहदेव राम को अब इसी अबुआ आवास योजना में दिये की एक लौ जलती हुई दिखलायी पड़ती है. लेकिन देखना होगा कि इसकी अंतिम परिणति क्या होती है, सहदेव राम का सपना पूरा होता है या उसे उसी शौचालय में अपनी शेष जिंदगी बितानी पड़ती है.
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