Ranchi-रघुवर सरकार में काबिना मंत्री रहे और झारखंड की सियासत में चाणक्य के नाम से मशहूर सरयू राय ने लम्बे अर्से के बाद “एक को जेल और दूसरे को राजभवन” का सवाल उठाकर झारखंड के सियासी गलियारों की सरगर्मी तेज कर दी है. सरयू राय के इस ताने के पीछे की वजह की तलाश की जाने लगी है. इसकी टाइमिंग को लेकर सवाल दागा जाने लगा है. यह पूछा जाने लगा है कि यह सवाल तो पूर्व सीएम हेमंत की गिरफ्तारी के वक्त ही उठाना चाहिए था. यह सवाल तब भी खड़ा किया जाना चाहिए था, जब पूर्व सीएम रघुवर दास को राजभवन भेजने का फैसला किया गया था. आखिरकार इतने दिनों तक खामोशी की यह चादर क्यों ओढ़ी गयी? क्या सरयू राय यह सब किसी आहत मन से लिख रहे हैं? क्या झारखंड के वर्तमान सियासी पसमंजर में उन्हे निराशा हाथ लगी है? क्या किसने ने उनकी सियासी महत्वाकांशा के आगे अपना टांग फंसा दिया है? आखिर इस दर्द की वजह क्या है? क्योंकि पूर्व सीएम हेमंत को जेल गये और रघुवर दास को राजभवन विराजे तो एक अर्सा हो गया. फिर आज इस सवाल की प्रासंगिकता क्या है?
इन्द्र का फरेब और डोलते इन्द्रासन का सच
कई सियासी जानकारों का दावा है कि इस बार सरयू राय की चाहत धनबाद संसदीय सीट से सियासी अखाड़े में उतरने की थी. क्योंकि जमशेदपुर संसदीय सीट पर सरयू राय अपनी ज्यादा गुंजाईश नहीं देखते. बताया जाता है कि इसी सियासी मंशा के तहत सरयू राय पिछले कुछ दिनों से धनबाद का लगातार दौरा कर रहे थें. और तब उनका यह दौरा वर्तमान भाजपा सांसद पीएन सिंह को भी सियासी टीस दे रहा था. और इसी टीस का इजहार करते हुए पीएन सिंह ने बोला था कि कुछ लोगों की नजर इस इन्द्रासन पर लगी हुई है, उसकी चाहत इस इन्द्रासन को डुलाने की है, लेकिन धनबाद की जनता को इस “इन्द्र फरेब” से बच कर रहना चाहिए. जिसका जवाब उसी अंदाज में देते हुए सरयू राय ने बोला था कि इंद्र को हमेशा अपनी कुर्सी की ही फिक्र होती है. उसका स्वाभाव ही कुछ ऐसा है. किसी की तपस्या से उसकी अपनी गद्दी हिलती नजर आती है, और वह तपस्या भंग करने निकल पड़ता है. लेकिन हमारे अंदर किसी प्रकार की कोई चाहत नहीं है.
पीएन सिंह ने भांप लिया था सरयू राय की सियासी चाहत
लेकिन यह सब कुछ सार्वजनिक बयान का हिस्सा था और सियासत में वह होता नहीं, जिसकी झलक सार्वजनिक बयानों में दिखलाने की कोशिश की जाती है. दावा किया जाता है कि पीएन सिंह की आशंका दुरुस्त थी, सरयू राय की नजर धनबाद की कुर्सी पर बनी हुई थी, और उनके द्वारा इस चाहत का इजहार दिल्ली दरबार तक पहुंचाया भी गया था. लेकिन भाजपा आलाकमान सरयू राय को फिलहाल कमल की सवारी करवाने को तैयार नहीं था और दिल्ली दरबार की इस नारजागी की वजह वर्ष 2015 के विधान सभा चुनाव में पूर्व सीएम रघवुर दास के विरुद्ध सरयू राय का मोर्चा खोलना था. जिसके कारण रघुवर दास को सीएम रहते हुए अपने ही विधान सभा में पराजय का मुंह देखना पड़ा. शिकस्त तो रघुवर को मिली लेकिन दर्द दिल्ली दरबार को हुआ. दिल्ली दरबार इस बात से आहत था. जिस रघुवर को दिल्ली का दूत बनाकर भेजा गया था. सरयू राय ने अपनी सियासी दांव से उसका ही मटियामेट कर दिया. किसी भी पार्टी के लिए उसके सीएम का विधायकी का चुनाव हार जाना बेहद अपमानजनक होता, और यह तो भाजपा थी, यह घाव इतनी आसानी से भरने वाला नहीं था. कमल की सवारी से निराश होने के बाद यह इस खबर सामने आयी कि सरयू राय अपने दोस्त नीतीश कुमार के तीर चुनाव चिह्न पर धनबाद के सियासी अखाड़े में उतराना चाहते हैं, ताकि भाजपा को भी अपनी घाव सहलाने का मौका मिल जाय.
पूर्व सीएम ऱघुवर दास का सियासी दांव
लेकिन अब जो खबर आ रही है उसके अनुसार जैसे ही इसकी भनक पूर्व सीएम रघुवर दास को लगी, वह दिल्ली दौड़ पड़े. और ऐसा सियासी चाल चला कि जदयू का तीर दम तोड़ गया. भाजपा ने साफ कर दिया कि अपनी जीती हुई सीट को जदयू के हाथ सौंपने का कोई सवाल ही नहीं है. और सरयू राय का मिशन लांच होने के पहले फेल हो गया, लेकिन रघुवर दास ने सिर्फ सरयू राय का भी पत्ता नहीं काटा, बल्कि उनके इस पैंतरे से धनबाद के पूर्व मेयर चन्द्रशेखर अग्रवाल की उम्मीदों को भी पंख लग गयी. ध्य़ान रहे कि अभी तक भाजपा ने धनबाद सीट से अपने प्रत्याशी का एलान नहीं किया है. सिंह मेंशन के रागनी सिंह के साथ ही ढुल्लू महतो का नाम रेस में बताया जा रहा था, लेकिन रघुवर दास के इस दांव ने चन्द्रशेखर अग्रवाल की उम्मीदों को एक बार फिर से हरा कर दिया है. हालांकि देखना होगा कि अंतिम मुहर किसके नाम पर लगती है, क्योंकि यह भाजपा है. यहां सब कुछ अप्रत्याशित होता है. कभी भी किसी की लॉटरी खुल सकती है, आज जो किसी खास वोट बैंक के आधार पर अपनी दावेदारी को सबसे आगे मान कर चल रहे हैं. कल उनका यही दांव उलटा भी पड़ सकता है.
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