Ranchi-गांडेय विधान सभा से झामुमो विधायक सरफराज अहमद का इस्तीफा पूर्व सीएम हेमंत की गिरफ्तारी के बाद जैसे ही सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा तेज हुई कि कल्पना सोरेन के हाथ राज्य की बागडोर जाने वाली है, और झारखंड को पहली बार कोई महिला सीएम मिल सकता है. भाजपा सांसद निशिकांत दूबे ने मोर्चा खोला दिया, राज्यपाल से मुलाकात कर बाम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले का उदाहरण देते हुए यह दलील भी पेश कर दी कि यदि विधान सभा की उम्र एक साल या उससे कम है तो उस हालत में उपचुनाव नहीं करवाया जा सकता. हालांकि उस वक्त कल्पना सोरेने को सीएम बनाने की तमाम खबरों का झामुमो और खुद तात्कालीन सीएम हेमंत के द्वारा खंडन किया गया, लेकिन जिस प्रकार से सरफराज अहमद ने अपना इस्तीफा पेश किया था. उसके बाद इस बात की चर्चा जरुर होती रही कि जरुर इस फैसले के पीछे कल्पना सोरेन को राज्य की बागडोर संभाने की तैयारी थी. हालांकि निशिकांत का तर्क और भाजपा की मंशा देखते हुए तब झामुमो ने राज्य की बागडोर दिशोम गुरु शिबू सोरेन के बेहद खास और वफादार चंपाई सोरेन के सिर पर ताज रखने का फैसला किया.
फिलहाल किसी भी सदन के सदस्य नहीं है नायब सैनी
लेकिन जिस तरीके से लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हरियाणा में सीएम खट्टर की विदाई हुई और उनके स्थान पर नायब सैनी की ताजपोशी की गयी. नायब सैनी फिलहाल किसी भी सदन के सदस्य नहीं है, और इसके साथ ही महज सात महीनों के अंदर अंदर ही विधान सभा का चुनाव किया जाना है, यानि विधान सभा की उम्र महज सात माह है, दूसरी ओर जिस नायब सैनी की ताजपोशी की गई है. उनके लिए छह माह के अंदर अंदर किसी भी सदन से जीत कर विधान सभा पहुंचना अनिवार्य है, और यदि नायाब सैनी विधान सभा पहुंचने में असफल रहते हैं. तो उस हालत में समय से पहले विधान सभा को भंग करना या फिर विधान सभा से ठीक पहले एक बार फिर से सीएम चेहरे में बदलाव की जरुरत होगी. हालांकि यदि भाजपा चाहे तो इस छह माह में कभी भी नायब सैनी से एक बार इस्तीफा करवा फिर से शपथ ग्रहण करवा सकती है, इस प्रक्रिया में संवैधानिक मूल्यों का पालन कितना और पतन कितना होगा यह एक अलग सवाल है, लेकिन निश्चित रुप से इस दाव को आजमा कर भाजपा कानूनी अड़चन को पार कर सकती है.
करनाल विधान सभा से चुनाव लडऩे की तैयारी
लेकिन अब जो जानकारी आ रही है, उसके अनुसार नायाब सैनी को पूर्व सीएम खट्टर के इस्तीफे के बाद खाली हुई करनाल विधान सभा से चुनाव लड़ान की तैयारी शुरु हो गयी है. पूर्व सीएम खट्टर को इस बार करनाल लोकसभा सीट से चुनावी समर में है. इसके पहले सीएम पद से इस्तीफे के साथ ही करनाल विधान सीट से भी अपना इस्तीफा सौंप दिया था और तब से ही इस बात की चर्चा तेज थी कि यह इस्तीफा नायब सैनी को विधान सभा पहुंचने के लिए रास्ता साफ करने के मकसद से किया गया है. इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि यदि हरियाणा में जब विधान सभा की उम्र महज सात है. और उपचुनाव किया जा सकता है. बाम्बे हाईकोर्ट का फैसला यदि हरियाणा में प्रांसगिक नहीं है, तो फिर उसी बाम्बे हाईकोर्ट के फैसले के आधार पर झारखंड में कल्पना की राह कैसे रोकी जा सकती है, जबकि यहां तो विधान सभा की उम्र अभी एक वर्ष से उपर की है, और इसके पहले विधान सभा की उम्र छह माह तक रहने पर उपचुनाव करवाने की पंरपरा रही है. देखना होगा कि इस बार निशिकांत कौन सी दलील के साथ सामने आते हैं.
सरकार का चेहरा या झामुमो की पहचान फैसला कल्पना के हाथ
हालांकि जिस तरीके से लोकसभा चुनाव के पहले कल्पना की औपचारिक सियासी इंट्री हुई है. झंडा मैदान से आंसूओं की धार के बीच झामुमो की चेहरा बनी. उसके बाद झामुमो के अंदर कल्पना की सियासी हैसियत पर अब कोई प्रश्न चिह्न नहीं नजर नहीं आता. भले ही सरकार का चेहरा चंपाई सोरेन हो, लेकिन आम जनता के बीच जादू तो कल्पना का ही चलता दिख रहा है. और यह मानने में भी कोई गुरेज नजर नहीं आता कि लोकसभा चुनाव और उसके बाद के विधान सभा चुनाव में झामुमो और महागठबंधन का कहां खड़ा नजर आयेगा. यह बहुत कुछ कल्पना सोरेन की सियासी सक्रियता पर निर्भर करेगा. कल्पना के नाम पर सोरेन परिवार में जिस अंतर्कलह के दावे किया जा रहे थें. इस अवतरण के बाद उन सारे दावों में अब कोई तथ्य नजर नहीं आता. इस हालत में सीएम की कुर्सी पर विराजमान होकर कल्पना सरकार की चेहरा बनना पसंद करेगी या बतौर झामुमो का चेहरा झारखंड के सियासी मैदान में मोदी रथ रोकने का फैसला करेगी. इसका फैसला खुद कल्पना और हेमंत ही करेंगे. फिलहाल चंपाई सरकार की गाड़ी अपनी दिशा में बढ़ती नजर आ रही है, और चंपाई अपने फैसले और तेवर से आदिवासी-मूलवासी समाज के साथ ही दलित-पिछड़ों की गोलबंदी की ओर बढ़ते नजर आ रहे हैं, सरकार और संगठन के बीच सब कुछ सहज सामान्य गति के साथ बढ़ता नजर आ रहा है.
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