Ranchi-चंपाई मंत्रिमंडल विस्तार के बाद दिल्ली में डेरा डाले नाराज विधायकों की ओर से इस बात के संकेत दिये गये हैं कि कांग्रेस आलकमान के द्वारा संगठन और पार्टी को लेकर उनकी शिकायतों को दूर करने का आश्वासन दिया गया है, जल्द ही झारखंड में मंत्रिमंडल से लेकर संगठन में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है. नाराज विधायकों की ओर सबसे मुखर आवाज बन कर सामने आये इरफान अंसारी ने भी कुछ ऐसा ही दावा किया है, हालांकि अभी भी यह साफ नहीं है कि किन-किन पुराने मंत्रियों को हटाया जायेगा और उनके स्थान पर किसकी इंट्री होगी, और यदि यह इंट्री होगी भी तो क्या उस नाम पर नाराज विधायकों के बीच सर्वसम्मति होगी? जहां तक प्रदेश संगठन में बदलाव की बात है, तो यह बदलाव मामूली ऑपरेशन होगा, या फिर कोई बड़ी सर्जरी? और यदि कांग्रेस अध्यक्ष किसी बड़ी सर्जरी का फैसला लेने जा रहे हैं तो क्या तो उसकी जद में खुद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर की कुर्सी भी आने वाली है. फिलहाल विधायक इरफान इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हैं, लेकिन यदि हम उनके पुराने बयानों को याद करें तो वह बार-बार कांग्रेस आलाकमान को इस बात की याद दिलाते रहे हैं कि वह झारखंड का सबसे मजबूत अल्पसंख्यक चेहरा है, बावजूद इसके पार्टी और संगठन में उन्हे तरजीह नहीं दी जा रही है.तो क्या इस बार राजेश ठाकुर की कुर्सी हिलने वाली है, वैसे सियासी जानकारों का मानना है कि राजेश ठाकुर का कार्यकाल वैसे भी पूरा हो गया है, वह तो एक्सटेंशन के सहारे इस कुर्सी को खींच रहे थें, और इसके साथ ही उनकी कुर्सी पर सबसे बड़ा खतरा चंपाई सरकार में दो दो ब्राह्मण मंत्री बनने के कारण खड़ा हो गया है.
कभी कांग्रेस का कोर वोटर माना जाने वाला ब्राह्मण आज भाजपा में शिफ्ट हो चुका है
यहां ध्यान रहे कि कभी ब्राह्मणों को कांग्रेस का कोर वोटर माना जाता था, लेकिन अब उसका बड़ा हिस्सा भाजपा की ओर शिफ्ट कर चुका है, जबकि अल्पसंख्यक आज भी पूरी ताकत के साथ कांग्रेस के साथ खड़ा है, और इसके साथ ही झारखंड में ब्राह्मणों की आबादी मुश्किल से दो फीसदी मानी जाती है, जबकि मुस्लिम समाज की आबादी करीबन 15 फीसदी है. इस हालत में दो दो ब्राह्मण मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के रुप में भी ब्राह्मण चेहरा रखना, कांग्रेस के लिए सियासी रुप से गलत फैसला साबित हो सकता है. हां, यदि बादल पत्रलेख और मिथिलेश ठाकुर में से किसी को मंत्रिमंडल से बाहर किया जा जाता है, उस हालत में राजेश ठाकुर की कुर्सी सुरक्षित बच सकती है, लेकिन इसके साथ ही कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव के पहले दलित मतदाताओं को साधना भी एक बड़ी चुनौती होगी, और आज दलित समाज से एक भी चेहरा चंपाई मंत्रिमंडल में मौजूद नहीं है. जबकि झारखंड में दलितों की आबादी करीबन मुस्लिम समाज के बाद सबसे अधिक 14 फीसदी की है. इसके साथ ही जिस प्रकार से एन वक्त पर झामुमो कोटे से बैधनाथ राम की फंस गयी, उसके बाद दलित समाज में अपनी भागीदारी और हिस्सेदारी का गुस्सा पसरता नजर आ रहा है.
दलितों को साधने के लिए कांग्रेस खेल सकती दलित कार्ड
इस हालत में यह भी संभव है कि कांग्रेस एन वक्त पर दलित कार्ड खेलते हुए प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी की किसी दलित को सौंप दे, ताकि सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, महागठबंधन के उसकी नाराजगी को कम किया जा सके. हालांकि उस हालत में कांग्रेस के पास दलित चेहरा कौन होगा, यह भी एक सवाल है, क्योंकि भले ही सामाजिक समीकरण राजेश ठाकुर के खिलाफ जाता हो, लेकिन संगठन से लेकर सरकरा के बीच वह तालमेल बिठाने की बेहतर कोशिश करते रहे हैं, खुद पूर्व सीएम हेमंत के साथ भी उनका रिश्ता अच्छा रहा है, लेकिन जिस तरह उनके खिलाफ संगठन के अंदर से नाराजगी की खबर सामने आती रही है, उस हालात में आलाकमान को बड़ा फैसला करना पड़ सकता है और शायद इरफान उसी बदलाव की ओर संकेत कर रहे हैं.
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