Ranchi-हालांकि पतझड़ का महीना सितम्बर से दिसम्बर तक को ही माना जाता है, लेकिन लगता है कि कांग्रेस का यह पतझड़ का सालों भर चलने वाली अनवरत प्रक्रिया का नाम है. क्या दिसम्बर और क्या जनवरी यहां टूटने का सिलसिला जारी रहता है, सत्ता हाथ से निकली नहीं कि धुरंधर से धुरंधर और अपने को खांटी मानने वाले कांग्रेसी भी विचारधारा का लबादा उतार केसरिया राह पर चलते में देरी नहीं करते? अभी कल ही चंपाई मंत्रिमंडल विस्तार से जो सियासी ड्रामा हुआ, उसके बाद झारखंड कांग्रेस में पतझड़ की आहट तेज हो गयी, एक अनार सौ बीमार की तरह सारे विधायक “मंत्री की कुर्सी” के लिए लड़ते दिखे, और मजेदार बात यह है कि इसमें हर कांग्रेसी विधायक अपने को खांटी और सामने वाले नकली बता रहा था. जैसे की कुर्सी की यह मारामारी ही खांटी कांग्रेसी होने की असली पहचान हो, हालांकि झारखंड में अभी यह पतझड कुछ ठहरा ठहरा सा दिख रहा है, लेकिन ना जाने कब अचानक से शाखा बिखरने लगें, यह उन खांटी कांग्रेसियों को भी पता नहीं है. उससे भी मजेदार बात यह है कि जिस कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर और प्रभारी गुलाम अमहद मीर पर इस पतझड़ को रोकने की जिम्मेवारी है, कई विधायक खुले रुप से उसी प्रदेश अध्यक्ष को इस संभावित पतझड़ की मुख्य वजह बता रहे हैं. अब जब मांझी ही नाव डूबाने पर आमादा तो उसके सवारों का क्या हाल होगा?
इंदरा गांधी के तीसरे पुत्र ने थामा कमल का फूल!
अभी झारखंड में इस पतझड़ पर विराम भी नहीं लगा था कि मध्यप्रदेश कांग्रेस से पतझड़ की खबर सामने आ गयी और यह पतझड़ किसी और का नहीं इंदिरा गांधी के तीसरे पुत्र माने जाने वाले मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ की है. यह वही कमलनाथ हैं, जिनको गांधी परिवार की कृपा दृष्टि ने जमीन से आसमान तक पहुंचाया, मध्यप्रदेश का सीएम बनाया, लेकिन कमलनाथ उस सीएम की कुर्सी को भी सही सलामत नहीं रख सकें, ऑपेरशन लोट्स के बाद इनकी कुर्सी चली गयी. जिस ज्योतिरादित्य सिंधिया को आगे कर इस ऑपेरशन लोट्स को सफल किया गया, वह खुद भी राहुल गांधी के बेहद करीबी माने जाते थें, और इस विवाद की मुख्य वजह सीएम की कुर्सी थी. हालांकि, कांग्रेस छोड़ कर सिंधिया को क्या मिला, आज भी एक बड़ा सवाल है, लेकिन उससे भी सवाल तो यह है कि जिस कमलनाथ की कुर्सी के खातिर राहुल गांधी ने अपने प्रिय दोस्त की बलि ले ली, अब वही कमलनाथ उसी ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ जाते दिख रहे हैं. और उससे भी बड़ा सवाल यह है कि जिस भाजपा ने इनकी कुर्सी में पलीता लगाया, उस भाजपा में कमलनाथ को मिलने क्या जा रहा है. और शायद इसी सवाल का जवाब देते हुए मध्यप्रदेश के पूर्व दिग्विजिय सिंह ने कहा है कि जो डर रहे हैं, बिक रहे हैं, जा रहे हैं. क्योंकि यदि ख्वाहीश कुर्सी की होती तो कमलनाथ से लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा में क्या मिलने जा रहा है? निश्चित रुप से इसके पीछे की वजह कुछ और हो सकती है.
अपनी चुनावी रैलियों में कमलनाथ को भ्रष्टाचार का प्रतीक बता चुके हैं पीएम मोदी
यहां यह भी याद रहे कि विधान सभा चुनाव के दौरान पीएम मोदी कमलनाथ के उपर भ्रष्टाचार का संगीन आरोप लगाते रहे हैं, इस हालत में सवाल यह भी खड़ा होता है कि क्या वह सारे आरोप फर्जी थें? और यदि वह सारे आरोप तथ्यों पर आधारित थें, तो क्या भाजपा अब कमलनाथ के उन फाइलों को खोलेगी, ताकि यह संदेश जाय कि भले ही कोई भ्रष्टाचारी भाजपा की सवारी कर ले, लेकिन उसके करप्शन की फाइल बंद नहीं होती, क्योंकि यदि अब कमलनाथ की फाइलों को खोला भी जाता है, तो कांग्रेस या विपक्ष इसे बदले की कार्रवाई बताने की स्थिति में नहीं होगा. यहां यह भी बता दें कि अभी तक कमलनाथ के द्वारा खुद भाजपा ज्वाइन करने की पुष्टि नहीं की गयी है, लेकिन भाजपा ज्वाइन करने के खबरों का उनके द्वारा खंडन भी नहीं किया जा रहा है, इस बीच खबर यह भी है कि वह दिल्ली के लिए निकल चुके हैं, और किसी भी वक्त भाजपा अध्यक्ष से उनकी मुलाकात हो सकती है.
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