Ranchi-आठ-आठ समन जारी कर ईडी कार्यालय आने का आदेश जारी करने के बाद भी जब कोई खास असर पड़ता नहीं दिखा तो आखिरकार ईडी अधिकारियों को खुद ही सीएम आवास पर आकर अपने तल्ख सवालों की लम्बी फेहरिस्त सामने रखनी पड़ी. करीबन नौ घंटों की पूछताछ के बाद यह माना गया कि अब यह प्रकरण अपने समापन की ओर है, झारखंड के आसमान से सियासी धुंध के बादल छंटने की शुरुआत हो चुकी है, राज्य की सरकार हो या केन्द्र की सरकार अब अपने मुद्दे और सवालों को लेकर जनता-जनार्दन के बीच जायेगी और उस जनादेश की भावना के अनुसार ही आगे की गतिविधियों को अंजाम दिया जायेगा, लेकिन इन सारी आशाओँ पर तब तुषारापात होता नजर आया, जब एक तरफ पूरा झारखंड रामलला के भजन-कीर्तनों में मशगूल था, ईडी ने अपना नौंवा समन जारी कर एक बार फिर से सीएम हेमंत को ईडी कार्यालय आने का हुक्म बजा दिया.
20 जनवरी की पूछताछ के बाद झामुमो ने खोल रखा है मोर्चा
और इसके बाद यह सवाल एक बार फिर उमड़ने घुमड़ने लगा कि क्या अब तक आठ समन को नजरअंदाज करते रहे सीएम हेमंत इस बार ईडी कार्यालय जाकर ईडी के शेष सवालों का जवाब पेश करेंगे या एक बार फिर से ईडी को अपने सवालों की फेहरिस्त के साथ खुद ही सीएम आवास का दौरा करना पड़ेगा. और खास कर तब जब 20 जनवरी को हुई पूछताछ के बाद सत्ता पक्ष की ओर से सीधे सीधे केन्द्र सराकर के खिलाफ मोर्चा खो दिया गया है, उनका दावा है कि सीआरपीएफ का जो काफिला, उस दिन सीएम हाउस की ओर बढ़ रहा था, दरअसल उसके पीछे सीधे सीधे केन्द्र सरकार का निर्देश था, उनकी कोशिश तो सीएम हेमंत को गिरफ्तार कर दिल्ली ले जाने की थी. लेकिन राज्य पुलिस की सतर्कता और सड़क पर समर्थकों का उमड़ता हुजूम के कारण केन्द्र सरकार को अपना पैर पीछे खिंचने को मजबूर होना पड़ा. और यह आरोप प्रत्यारोप महज जुबानी जमा खर्च नहीं था, राज्य प्रशासन की ओर से इस मामले में गोंदा थाने में बाजप्ता प्राथमिकी दर्ज करवायी जा चुकी है. साफ है कि पूरा सियासी मोर्चा खोल दिया गया है, इस पार या उस पार की लड़ाई की शुरुआत हो चुकी है, और इसके साथ ही 2024 के महासंग्राम का सिंहनाद भी हो चुका है, दोनों ही पक्षों की ओर से जो कुछ भी होगा, उसका फैसला उसी सियासी मंच को सामने रख कर लिया जायेगा.
कमल के दलदल में डूबकी लगाने से इंकार
एक तरफ ईडी प्रकरण की धार को बनाये रख कर केन्द्र सरकार यह साबित करने की कोशिश करेगी कि ईडी अपना स्वाभाविक कार्रवाई कर रही है, यदि हेमंत सोरेन निर्दोष हैं तो उन्हे ईडी के सवालों को जवाब पेश कर अपनी निर्दोषता को साबित करना चाहिए, तो दूसरी ओर झामुमो की ओर से अजीत पवार, छगन भुजबल, हिमंत विश्वशर्मा से लेकर उन तमाम चेहरों को गिनाया जायेगा, जिन्हे कल तक पीएम मोदी देश का नम्बर वन भ्रष्ट साबित करने पर तूले हुए थे, जिन्हे भ्रष्ट बता बता कर वोट मांगे जा रहे थें, जिन्हे काल कोठरी में भेजे जाने के दावे किया जाते थें, आटा पिसिंग, आटा पिसिंग के नारे लगाये जा रहे थें, लेकिन जैसे ही इन तमाम चेहरों ने पाला बदला, आज सब कमल पर सवार होकर बेफिक्री के साथ सत्ता की मलाई खा रहे हैं. यह दाव भी सामने होगा कि यदि हमने भी कमल के दलदल में डूबकी लगाने का फैसला कर लिया होता, तो आज हम भी राजा हरिश्चन्द्र होते, लेकिन हमारी गलती मात्र इतनी है कि हमने कमल के दलदल में डूबकी लगाने के बजाय आदिवासी मूलवासियों के हितों के साथ समझौता करने से इंकार कर दिया, चाहे 1932 का सवाल हो या फिर सरना धर्म कोड का मामला, या फिर पिछड़ों का आरक्षण विस्तार का जोखिम भरा फैसला, एक एक फैसला झारखंड के आम अवाम की खुशहाली और उसके बेहतर जिंदगी के सपने को सामने रखकर लेता रहा.
2024 के महासंग्राम के तक जारी रहेगी यह रस्साकशी
साफ है कि अब यह सियासी पैतरें 2024 के महासंग्राम और उसके बाद विधान सभा चुनाव तक जारी रहने वाला है, और उसके बीच ईडी का यह समन या दूसरे खेल महज एक पड़ाव है, जो बीच बीच में उछलता रहेगा, सीएम हेमंत की पिच बेहद साफ है, जिस ईडी को आगे कर वह भाजपा झारखंड की सियासत में भूचाल लाने का सपना पालती है, अब वही ईडी को हेमंत ने बड़ी ही खुबसूरती के साथ अपनी सियासत ताकत बना लिया है, जैसे जैसे ईडी की गतिविधियां तेज होगी, और बहुत संभव है कि इस सियासी खेल में सीएम हेमंत की गिरफ्तारी की पटकथा भी लिख दी जाय, लेकिन इन पटकथाओं से झामुमो की ताकत में कोई कमी होती नहीं दिख रही, उल्टे इसके बाद जो धुर्वीकरण की सियासत होगी, उसमें शायद सीएम हेमंत और भी चमकदार चेहरे के साथ सामने आये, और इसके साथ ही उनकी सियासत ताकत में भी इजाफा.
अभी जारी रह सकता है समनों का यह सिलसिला
अब इस हालत में यह सोचना की सीएम हेमंत इस नौंवे समन का जवाब पेश करने ईडी कार्यालय का रुख करेंगे, थोड़ा दुष्कर लगता है, बहुत संभव है कि इस बार भी ईडी को नौंवी समन के बाद अनगिनत समन जारी करता रहना पड़े, और आखिरकार एक बार फिर से उसे सीएम हाउस का रुख करना पड़े. और यदि ऐसा होता है तो इस बार निश्चित रुप से रांची की सड़कों पर झामुमो समर्थकों का इससे भी बड़ा हुजूम होगा, क्योंकि अब यह लड़ाई किसी पूछताछ की नहीं होकर, साफ साफ 2024 की लडाई बन चुकी है. बाकि किरदार महज अपने अपने हिस्से का अभिनय करते दिख रहे हैं.
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