रांची(RANCHI)1932 का खतियान के बाद अब वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन भी झारखंड में लोकसभा चुनाव का एक बड़ा सियासी मुद्दा बनता दिख रहा है. आज शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन जिस प्रकार झामुमो सहित इंडिया गठबंधन के तमाम दलों ने विधान सभा की सीढ़ियों पर धरना-प्रर्दशन किया, ‘हम है आदिवासी, हम हैं जंगल के मालिक’ के साथ नारेबाजी की, उससे तो यही संकते मिल रहे हैं. गिरिडीह विधायक सुदिव्य सोनू, मथुरा महतो सहित इंडिया गठबंधन के तमाम विधायकों का दावा था कि केन्द्र की भाजपा सरकार आदिवासी-मूलवासियों को खदेड़ कर उनकी जंगलों को अडाणी अंबानी जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियों को सौंपने की तैयारी कर रही है. यह संशोधन भी उसी साजिश का हिस्सा है.
1932 के सवाल पर पहले से ही फ्रंट फूट पर खेल रही है हेमंत सरकार
यहां बता दें कि हेमंत सरकार पहले ही 1932 का खतियान के सवाल पर फ्रंट फूट कर खेल रही है, उसका दावा है कि भाजपा राजभवन को आगे कर इस मामले में पेंच फंसाना चाहती है, ताकि यहां की चतुर्थ और तृतीय श्रेणी की नौकरियों के दरवाजे भी बाहरी लोगों के लिए खोल दिये जाये, अब उसी राह पर एक कदम और आगे चलते हुए वन संरक्षण कानून में संशोधन के खिलाफ मोर्चा खोलने का निर्णय लिया है, ताकि आदिवासी समाज में यह संकेत जाय कि जिस जंगल पर वह आज रचे-बसे हैं, भाजपा की नजर अब उस जंगल पर भी लगी चुकी है, और किसी भी वक्त इस जंगल से आदिवासी मूलवासियों को खदेड़ कर जंगल से बाहर किया जा सकता है, जिस जंगल का संरक्षण इनके पूर्वज के हाथ में था, अब वह उसी जंगल में बाहरी बन जायेंगे.
बन सकता है 2024 में बड़ा सियासी मुद्दा
साफ है कि आदिवासी मूलवासी बहूल झारखंड में यह एक बड़ा सियासी मुद्दा बन सकता हैं, क्योंकि यहां की एक बड़ी आबादी आज भी जंगलों के आस-पास बसती है, आज भी जंगल ही उनकी आजीविका का मुख्य श्रोत है. हालांकि भाजपा विधायकों के द्वारा इस विरोध के प्रतिरोध में धीरज साहू का मामला उठाने की जरुर कोशिश की गई, और यह आरोप लगाया कि आज सारे लूटेरे एक साथ खड़े हैं, लेकिन यहां सवाल जंगल का है, और यदि आदिवासी समाज में यह बात फैल गयी कि भाजपा उन्हे जंगल से निकाल बाहर करना चाहती है, और इसी साजिश के तहत कानून में संशोधन की तैयारी कर रही है, तो उस हालत में भाजपा के सामने संकट खड़ा हो सकता है.
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