Ranchi- बाघमारा विधायक ढुल्लू महतो को भाजपा का उम्मीदवार घोषित करते ही कोयलानगरी धनबाद में सियासी सरगर्मी तेज हो चुकी है. घात प्रतिघात के दांव सजाये जाने लगे हैं, जिन सियासी सुरमाओं को निराशा हाथ लगी है, अब उनका दर्द सामने आने लगा है. सियासी गलियारों में यह चर्चा आम है कि जिस प्रकार टिकट की आस लगाये बड़े-बड़े चेहरों को दरकिनार कर ढुल्लू महतो पर दांव लगया गया है, अब ये निराश चेहरे भाजपा की राह में कांटा फंसाने की तैयारी में हैं, कमल का चुनाव चिह्न हाथ में आने के बावजूद मजदूर के इस बेटे की राह आसान नहीं रहने वाली है. आज भले ही ढुल्लू महतो टिकट मिलने का जश्न मना रहे हों, लेकिन उनकी राह आसान नहीं रहने वाली है. यहां बता दें कि धनबाद सीट से सरयू राय से लेकर राज सिन्हा और धनबाद नगर निगम के पूर्व मेयर चन्द्रशेखर अग्रवाल का नाम सुर्खियों में था, जहां राज सिन्हा कायस्थ कोटे के तहत अपनी दावेदारी ठोकते नजर आ रहे थें, वहीं सरयू राय की मंशा भी मैदान में उतरने की थी, उधर चन्द्रशेखर अग्रवाल वैश्यों की आबादी के आधार पर अपनी दावेदारी ठोक रहे थें, जबकि राजपूत जाति के नेताओं का दावा था कि धनबाद लोकसभा में राजपूत जाति की बड़ी आबादी है. इस नाते इस सीट पर राजपूत समाज का दावा बनता है. लेकिन भाजपा आलाकमान ने सारे दावों को दरकिनार कर पिछड़ी जाति से आने वाले ढुल्लू महतो पर दांव लगाने का फैसला किया और यही से धनबाद भाजपा में अंदरखाने नाराजगी और आक्रोश की खबर सामने आने लगी.
‘राष्ट्रहित में आयेगा नतीजा’ के सियासी मायने
इसी आक्रोश की एक झलक आज सरयू राय के एक सोशल मीडिया पोस्ट में देखने को मिल रही है, अपनी पीड़ा का इजहार करते हुए सरयू राय लिखते हैं कि “लौहनगरी जमशेदपुर की तरह कोयलानगरी धनबाद का राजनीतिक आतंक भी पड़ोसी राज्य के राजभवन से नियंत्रित होगा और धनबाद लोकसभा सीट फ़ाइनल कराने के लिए लाट साहब दो-तीन दिन दिल्ली दरबार में जमे रहेंगे तो धनबाद का सर्वजन भी जमशेदपुर की तरह आकुल होगा, राष्ट्रहित में वैसा ही नतीजा देगा” साफ है कि जिस अंदाज में सरयू राय राष्ट्रहित की बात कर रहे हैं, उसके बाद ढुल्लू महतो की राह मुश्किल हो सकती है.
कैसे कटा था सरयू राय का पत्ता
यहां यह भी बता दें कि सरयू राय की पहली मंशा कमल चुनाव चिह्न पर मैदान में उतरने की थी, इसके लिए दिल्ली की दौड़ भी लगा रहे थें, लेकिन जिस तरीके से सरयू राय ने पूर्व सीएम रघुवर दास को सियासी पटकनी दी थी. सीएम रहते हुए भी रघुवर दास को विधान सभा चुनाव हार का जख्म दिया था. अमित शाह उस दर्द को भूलने को तैयार नहीं थें, जिसके बाद सरयू ने जदयू के तीर चुनाव चिह्न पर धनबाद के दंगल में उतरने का मन बनाया. नीतीश कुमार से उनकी बात भी हो गयी, लेकिन भाजपा धनबाद जैसे अपने गढ़ में तीर की इंट्री देने को तैयार नहीं थी और आखिरकार सरयू राय धनबाद के अखाड़े से बाहर हो गयें. दावा यह भी किया जाता है कि जैसे ही पूर्व सीएम रघुवर दास को इस बात की जानकारी मिली कि सरयू राय धनबाद में इंट्री की कोशिश में हैं, आलाकमान से सम्पर्क साधा जा रहा है, रघुवर दास दिल्ली पहुंचे और बैटिंग तेज कर दी. धनबाद का सामाजिक समीकरण को सामने रख किसी वैश्य जाति को उम्मीदवार बनाने का तर्क रखा. उनकी कोशिश धनबाद के पूर्व मेयर चन्द्रशेखर अग्रवाल को अखाड़े में उतारने की थी. रघुवर दास की आपत्ति के कारण सरयू राय का पत्ता तो साफ हो गया, लेकिन ऱघुवर दास की मंशा भी पूरी नहीं हुई और पार्टी ने धनबाद में बाहरी-भीतरी की सुलगती आग के बीच कोयलांचल का टाईगर के रुप में पहचान बना चुके ढुल्लू महतो पर दांव लगाने का फैसला किया. इस प्रकार रघुवर दास ने यह साबित कर दिया कि झारखंड की सियासत में अभी भी रधुवर राज कायम है. अब खबर यह है कि यह आक्रोश सिर्फ सरयू राय के सीने में ही दफन नहीं है, बल्कि वह सारे चेहरे जो टिकट की दौड़ में शामिल थें, ढुल्लू महतो की राह में कांटा बिछाने की तैयारी कर चुके हैं, खास कर राजपूत जाति के बीच नाराजगी की खबर सबसे ज्यादा है, इस हालत में धनबाद की सियासत कौन सी राह चलता है, देखना दिलचस्प होगा.