Ranchi-सियासत संभावनाओं का खेल है. लेकिन सच सिर्फ यह नहीं है कि सियासत संभावनाओं का खेल है, सच यह है कि सामने पसरी तमाम संभावनाओं में सबसे मजबूत संभावना पर दांव लगाना ही सियासत का असली खेल, सियासी कुशलता का प्रतीक और मौसम वैज्ञानिक होने की पहचान है. आपके इसी फैसले पर ही आपकी हार जीत और आपके सियासी भविष्य की रुप रेखा तय होती है. थोड़ी सी चूक हुई नहीं कि एक बारगी आप अर्स से फर्स पर नजर आने को अभिशप्त नजर आयेंगे. झामुमो परिवार की बड़ी बहू और दुर्गा सोरेन की धर्म पत्नी सीता सोरेन आज कल कुछ इसी सियासी मोड़ पर खड़ी नजर आ रही है. झारखंड की सियासत का सबसे बड़ा चेहरा और संताल का प्रतीक पुरुष दिशोम गुरु परिवार से अपनी जुदाई के बावजूद वह अपने आप को मोदी परिवार का हिस्सा बनाने से परहेज कर रही हैं, तो उसके पीछे यही सियासी द्वन्द्व है. सीता सोरेन आज भी इस सियासी सच को अस्वीकार करने को तैयार नहीं है कि संताल की इस धरती पर पीएम मोदी से कहीं अधिक बिकाउ चेहरा किसी का है, तो वह चेहरा दिशोम गुरु का है. दिशोम गुरु यानि जल जंगल और जमीन के खिलाफ लूट के संघर्ष का प्रतीक, दिशोम गुरु यानि आदिवासी-मूलवासियों की आवाज, दिशोम गुरु यानि झारखंड की जमीन पर देशज चेतना की आवाज.
दुमका की पहचान शिबू सोरेन की रुप में
खबर यह है कि पालाबदल के बाद सीता सोरेन को दुमका के उस किले से कमल की सवारी पर मैदान में उतारने की तैयारी है, जिस किले की पहचान दिशोम गुरु शिबू सोरेन के साथ जुड़ी हुई है. दिशोम गुरु यहां से कुल सात बार लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे हैं. हालांकि बीच में 1998 और 1999 बाबूलाल मरांडी और 2019 में सुनिल सोरेन ने दिशोम गुरु की राह रोकने में जरुर कामयाबी हासिल की, लेकिन बावजूद आज भी दुमका की पहचान शिबू सोरेन के रुप में होती है. इस हालत में सवाल ख़ड़ा होता कि सीता सोरेन दिशोम गुरु के खिलाफ, कितनी बड़ी चेहरा साबित होगी. हालांकि अभी यह तय नहीं है कि इस सीट से इस बार झामुमो का चेहरा कौन होगा? लेकिन इतना साफ है कि चेहरा चाहे जो भी होगा, उसके साथ दिशोम गुरु की तस्वीर जुड़ी होगी. जबकि अब तक दिशोम गुरु की तस्वीर को आगे कर आगे बढ़ती रही सीता सोरेन के पास पहली बार इस जंगे मैदान में ना तो दिशोम गुरु की विरासत होगी और ना ही उनकी तस्वीर. और यदि सीता सोरेन इसके बावजूद दुमका में कमल खिलाने में कामयाब रहती हैं, तो यह भाजपा और सीता सोरेन की उपलब्धि मानी जायेगी.
हेमंत का लिटमस टेस्ट?
लेकिन सीता की अग्नि परीक्षा के साथ इस बार पूर्व सीएम हेमंत का लिटमस टेस्ट भी होने वाला है. जिस आदिवासी--मूलवासी सियासत के साथ हेमंत झारखंड की सियासी तस्वीर बदलने का मास्टर प्लान तैयार कर रहे हैं, उसका पहला लिटमस टेस्ट दुमका के अखाड़े में ही होना है. यह तय होने वाला है कि आदिवासी-मूलवासियों का नायक कौन, आदिवासी-मूलवासी समाज की सियासी महत्वाकाक्षों की झलक सीता की हुंकार में है या फिर हेमंत की दहाड़ में. यहां सवाल यह नहीं है कि सीता के सामने कौन होगा, वह जो भी होगा दिशोम गुरु का चेहरा होगा. झामुमो के जल जंगल और जमीन के संघर्ष का अतीत होगा. महाजनी प्रथा के खिलाफ दिशोम गुरु का संघर्ष होगा. इस हालत में जरुरी नहीं है कि इस विरासत का प्रतिनिधित्व हेमंत या कल्पना के चेहरे से मिले, झामुमो का अदना सा चेहरा भी इस विरासत का प्रतीक बन कर सीता के सामने खड़ा हो सकता है. लेकिन वह चेहरा कितना कामयाब होगा इसकी जिम्मेवारी हेमंत की सियासी रणनीति पर निर्भर करती है, और यही हेमंत का लिटमेस टेस्ट है
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