Ranchi-आखिरकार झामुमो ने गिरिडीह से मथुरा महतो को प्रत्याशी बनाने का एलान कर दिया और इसके साथ ही कुर्मी बहुल इस सीट पर तीन कुर्मी स्टालवर्ट के बीच सियासी भिंड़त की स्थिति बन गयी. एक तरफ वर्तमान सांसद चन्द्रप्रकाश चौधरी है, तो दूसरी ओर भाषा आन्दोलन की सवारी कर सियासत में इंट्री मारने वाले टाईगर जयराम और इन सबके के बीच कुर्मी पॉलिटिक्स का एक बड़ा चेहरा मथुरा महतो. मथुरा महतो की इंट्री के पहले तक यह लड़ाई चन्द्रप्रकाश चौधरी और जयराम के बीच ही होती नजर आ रही थी और लड़ाई में जयराम बढ़त की ओर बढ़ते नजर आ रहे थें. युवाओं का एक बड़ा तबका जयराम के साथ जीत की हुंकार भर रहा था, जबकि दूसरी ओर चन्द्रप्रकाश चौधरी के प्रति नाराजगी की खबर भी आ रही थी. लेकिन जैसे ही इस सियासी अखाड़े में मथुरा महतो की इंट्री हुई, यह लड़ाई त्रिकोणीय शक्ल अख्तियार करता दिखने लगा और अब यह बाजी किसके हाथ लगेगी, यह एक बड़ा सवाल है.
भाजपा का कार्बन कॉपी झामुमो
यहां याद रहे कि मथुरा महतो टुंडी से झामुमो विधायक है, झामुमो के अंदर और बाहर मथुरा महतो की गिनती कुर्मी जाति के एक कद्दावर नेता को रुप में होती है. जबकि दूसरी ओर टाईगर जयराम की छवि किसी जाति विशेष के बीच नहीं होकर आम युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय है. खुद जयराम की कोशिश भी अपने आप को कुर्मी स्टालवर्ट के टैग से दूर रखने की है. मथुरा महतो और जयराम की सियासत का चाल-ढाल भी बिल्कुल जुदा है. जहां मथुरा महतो आज भी अपने पुराने समीकरणों और नारों को जीत का मूल मंत्र मानते हैं. वहीं जयराम उसी मुद्दे और उसकी सियासत को एक बड़े कैनवास पर उतारते दिखते हैं. वह सिर्फ जल जंगल और जमीन की लूट की बात नहीं करते, बल्कि इस लूट में झामुमो की क्या भूमिका रही, इस पर भी सवाल उठाते हैं, जहां मथुरा महतो झारखंडी अस्मिता की बात करते हैं, वही जयराम इस सवाल को खड़ा करते हैं, कि जिस राह पर झामुमो की सियासत बढ़ती नजर आ रही है, जिस तरीके से वहां पिंटू, पंकज और सुनील का जलबा है, क्या झामुमो भाजपा का कार्बन कॉपी बनने की राह पर नहीं चल पड़ी है? जिस 1932 का खतियान पर झामुमो भाजपा को घेरने की कोशिश करता रहा है. टाइगर जयराम का दावा है कि खुद सीएम हेमंत भी इसके पक्षधर कहां थे, वह तो विधान सभा के अंदर खुलेआम इस कानून को अव्यवाहिक बता रहे थें, यह तो जमीन का संघर्ष था, जिसके कारण झामुमो को अपनी सोच में बदलाव लाना पडा और आखिरकार 1932 की मांग स्वीकार करनी पड़ी और आज भी यह कानून जमीन पर कहां है. यानि जिस हरो-हथियार के साथ मथुरा महतो मैदान में कूदे हैं, जयराम उन सारे सियासी हथियार को भोथरा करने की तैयारी में है. इस हालत में सवाल खड़ा होता कि इस सियासी जंग का अंतिम परिणाम क्या होगा? निश्चित रुप से अभी तो टिकट का वितरण हुआ है, अखाड़े में औपचारिक इंट्री ही हुई है, देखना होगा कि आने वाले दिनों में इस सियासी दंगल में कौन-कौन से रंग देखने को मिलते हैं. लेकिन इतना साफ है कि मथुरा महतो जमीन से जुडे नेता है. ताम झाम से दूर जमीन की सियासत करते हैं, अब तक जयराम जिन सियासतदानों से मुकाबले कर रहे थें. उनकी सियासी जमीन मथुरा महतो की तुलना में काफी सीमित थी. देखना होगा कि आने वाले दिनों में जब दोनों की बीच जुबानी जंग की शुरुआत होती है, तो उसका जमीन पर क्या असर पड़ता है और किसी रुप में ध्रुवीकरण की शुरुआत होती है.
एंटी इनकंबेंसी का पार पाना चन्द्रप्रकाश चौधरी की बड़ी चुनौती
जहां तक बात चन्द्र प्रकाश चौधरी की है, निश्चित रुप से उनके प्रति एक एंटी इनकंबेंसी है, लेकिन यहां यह भी याद रखना चाहिए कि वर्ष 2019 में जब गिरिडीह में चन्द्र प्रकाश चौधरी की पहली इंट्री हुई थी, उस वक्त भी उनकी राह के सामने झारखंडी टाईगर जगरनाथ मैदान में थें. बावजूद इसके चन्द्र प्रकाश चौधरी ने टाईगर जगरनाथ को करीबन तीन लाखों से मात दी थी, जबकि उस वक्त भी मथुरा महतो कंधे से कंधा मिलाकर टाईगर जगरनाथ के साथ खड़े थें. इस बार टाईगर जगरनाथ की मृत्यु के बाद झामुमो ने अपने इस पुराने स्टालवार्ट पर दांव लगाने का फैसला किया है, अब देखना होगा कि झारखंडी टाईगर जगरनाथ को उन्ही के मांद में मात देने वाले चन्द्र प्रकाश चौधरी इस बार इस नये टाइगर का रास्ता कैसे साफ करते हैं और किस रणनीति का साथ संसद पहुंचने की मथुरा महतो की इस नयी हसरत पर विराम लगाते हैं.
क्या है सामाजिक समीकरण
जहां तक बात सामाजिक समीकरण की है तो गिरिडीह संसदीय सीट पर 16 फीसदी मुसलमान, 14 फीसदी अनुसूचित जाति और 10 फीसदी अनुसूचित जाति की आबादी है. इसके साथ ही करीबन 19 फीसदी कुड़मी मतदाता है, इस हालत में यदि कुड़मी मतदाता एक जुट होकर मथुरा महतो के साथ खड़ा होते हैं, तब तो मथुरा महतो की राह आसान हो सकती है, हालांकि टाईगर जयराम 16 फीसदी अल्पसंख्यक और 10 फीसदी आदिवासियों में कितनी सेंधमारी कर पाते हैं, बहुत कुछ इस पर भी निर्भर करता है.
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