Ranchi- झारखंड की सभी 14 लोकसभा की सीटों पर अपने सियासी पहलवानों का एलान कर भाजपा और आजसू पूरे दम खम के साथ मैदान में ताल ठोंकती दिख रही है, उसका दावा है कि इस बार एनडीए झारखंड की सभी 14 सीटों पर परचम फहराने जा रही है, और इसके पीछे की वजह कोल्हान से गीता और संताल से सीता की कमल की सवारी बतायी जा रही है. वहीं इंडिया गठबंधन के अब तक महज तीन सीटों का एलान हुआ है. यह तीन सीटें है खूंटी, लोहरदगा और हजारीबाग. इसमें भी लोहरदगा से आंतरिक कलह की खबर सामने आ रही है. सियासी गलियारों में लोहरदगा से झामुमो विधायक चमरा लिंडा का जंगे मैदान में कूदने की खबर तैर रही है. लेकिन यदि इन तीनों सीटों को छोड़ भी दें तो बाकि के 11 सीटों पर महागठबंधन का चेहरा कौन होगा? यह सवाल हर गुजरते दिन के साथ और भी उलझता दिख रहा है. खासकर धनबाद और रांची की कहानी कुछ ज्यादा ही उलझाव लिये हैं. धनबाद की सीट को कांग्रेस की सीट बतायी जा रही है, लेकिन महागठबंधन के अंदर उहापोह का आलम यह है कि झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य यहां से सरयू राय की बैटिंग करते दिख रहे हैं, उनका दावा है कि यदि कांग्रेस सरयू राय को अपना उम्मीदवार बनाती है, तो झामुमो को इसमें कोई आपत्ति नहीं होगी, वह पूरी ताकत के साथ सरयू राय के साथ खड़ी होगी, सुप्रियो भट्टाचार्य के बयान से साफ है कि झामुमो सरयू राय को धनबाद में महागठबंधन का चेहरा स्वीकार करने को तैयार है. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर सिरे से सरयू राय की दावेदारी को खारिज कर रहे हैं, उनका कहना है कि यदि सरयू राय वास्तव में भाजपा को हराना चाहते हैं तो उन्हे कांग्रेस उम्मीदवार का साथ देना चाहिए. यदि इन दोनों नेताओं के बयान को आपस में जोड़कर समझने की कोशिश करें तो साफ है कि कांग्रेस झामुमो के प्रस्ताव के साथ चलने को तैयार नहीं है. इसे इस रुप में भी देखा जा सकता है कि कांग्रेस ने इशारों ही इशारों में झामुमो को उसकी सीमा रेखा का ज्ञान करवा दिया है, यानि यदि सीट कांग्रेस की है, तो फैसला भी कांग्रेस का होगा और वह इस मामले में किसी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेंगी. दूसरी स्थिति रांची संसदीय सीट की है.
सुबोधकांत खेमा अभी भी रामटहल चौधरी को स्वीकार करने को तैयार नहीं
जिस राम टहल चौधरी को इतनी मशक्कत के बाद पंजे की सवारी करवायी गयी थी, आज उनकी उम्मीदवारी पर भी सशंय के बादल मंडराने लगे हैं, अंदरखाने खबर यह है कि कांग्रेस का एक खेमा अभी भी रामटहल चौधरी को उम्मीदवार स्वीकार करने को तैयार नहीं है, उसकी रणनीति अभी भी सुबोधकांत सहाय को मैदान में उतारने की है, लेकिन मुश्किल यह है कि सुबोधकांत खुद सियासी मैदान में नहीं उतर कर, इस बार अपनी बेटी को जंगे मैदान में उतराने के इच्छुक हैं. लेकिन कांग्रेस का एक बड़ा खेमा सुबोधकांत का यह प्रस्ताव स्वीकार करने को तैयार नहीं है. कमल की सवारी छोड़ कर पंजे की ताकत के बूते छठी बार संसद पहुंचने का राम टहल चौधरी के सपन पर अभी से ही ग्रहण लगता दिखने लगा है.
कांग्रेस में “चेहरों का टोटा”, कैसे होगी गठबंधन की नैया पार
कुछ यही हालत दूसरी सीटों पर है. हर सीट पर सशंय के बादल तैरते दिख रहे हैं और कांग्रेस की इस हालत से झामुमो की धकधकी बढ़ती दिख रही है, इस बात पर माथापच्ची जारी है कि कांग्रेस ने अपने सियासी हनक में सात सीटों पर अपनी दावेदारी तो जरुर ठोक दिया, लेकिन उसके पास हर सीट पर चेहरों का टोटा है और यह हालत यह है कि भाजपा के द्वारा अपने जलसम्पर्क अभियान की शुरुआत हो चुकी है. इस हालत में सियासी जंग की शुरुआत के पहले ही महागठबंधन हांफता नजर आने लगा है, और महागठबंधन की इस हालत के लिए यदि कोई जिम्मेवार दिखता है तो वह कांग्रेस की जिद है. जिसके द्वारा बिना अपनी सियासी ताकत का आकलन किये, हर सीट पर अपनी दावेदारी ठोकी जा रही है.
सुबोधकांत की सियासी महत्वाकांशा में महागठबंधन के हाथों से फिसल नहीं जाय रांची की सीट
यहां याद रहे कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में रांची में वर्तमान सांसद संजय सेठ और सुबोधकांत के बीच सियासी भिंड़त हुई थी, और तब सुबोधकांत को करीबन तीन लाख मतों के साथ शिकस्त खानी पड़ी थी. यानि कुल मिलाकर संजय सेठ की वह जीत एकतरफा थी. सुबोधकांत कहीं से भी मुकाबले में नजर नहीं आ रह थें. इसके पहले भी 2014 में सुबोघकांत की भिंड़त रामटहल चौधरी के साथ हुई थी, तब भी सुबोधकांत को करीबन दो लाख मतों से शिकस्त का सामना करना पड़ा था. बावजूद, इसके इस बार सुबोधकांत अपनी बेटी को जंगे मैदान में उतार फतह का सपना देख रहे हैं. सवाल यह भी है कि यदि रामटहल चौधरी को उम्मीदवार नहीं बनाना था, तो फिर उनकी इंट्री ही क्यों करवायी गयी, और यदि इस फजीहत के बाद रामटहल चौधरी एक बार भी पाला बदलते हैं तो कांग्रेस की हालत क्या होगी?
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