Ranchi-चुनाव की अधिसूचना जारी होने के पहले ही भाजपा ने रांची से वर्तमान सांसद सेठ को एक बार फिर से मैदान में उतारने का एलान कर दिया था. जबकि दूसरी ओर इंडिया गठबंधन के अंदर तब भी “चेहरा कौन” पर बहस थी और आज भी उसी चेहरा कौन” पर बहस जारी है. हालांकि सियासी गलियारों में एक बार फिर से पुराने कांग्रेसी दिग्गज और रांची से तीन बार के सांसद रहे सुबोधकांत सहाय को मैदान में उतारे जाने की चर्चा है. और कांग्रेस वाकई इसी चेहरे के साथ मैदान में उतरती है, या एन वक्त पर कोई नया प्रयोग करती है. देखना होगा, हालांकि जानकारों का दावा है कि रांची संसदीय सीट पर कांग्रेस किसी बड़े प्रयोग की स्थिति में नहीं है. ले-देकर उसके पास एक ही चेहरा है, वह चेहरा है सुबोधकांत सहाय. कांग्रेस की विकल्पहीनता का लाभ सुबोधकांत को मिल सकता है. लेकिन इस बीच छात्र नेता से “सियासत की दुनिया” में सुराख पैदा करने की चाहत के साथ सामने आये टाइगर जयराम ने अपनी नयी नवेली पार्टी “झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा” के बनैर तले देवेन्द्रनाथ महतो को मैदान में उतारने का एलान कर दिया है और इसके साथ ही आम लोगों के बीच यह सवाल पूछा जाने लगा है कि रांची संसदीय सीट पर जयराम की इस इंट्री का असर क्या होगा?
कुर्मी मतदाताओं के बीच चल सकता है जयराम का जादू
यहां ध्यान रहे कि जयराम खुद गिरिडीह से अपनी किस्मत आजमाने जा रहे हैं. जबकि कोडरमा से मनोज यादव, हजारीबाग से संजय मेहता और रांची से देवेन्द्र नाम महतो को मैदान में उतारा है. साथ ही धनबाद और जमशेदपुर से भी तैयारी जारी है, करीबन करीबन यह सारी सीटें महतो बहुल है. यानी हार-जीत को तय करने में महतो मतदाताओं की बड़ी भूमिक होती है. इस हालत में यह सवाल खड़ा होता है कि क्या जयराम अपनी पहली ही पारी में झारखंड की सियासत में कोई बड़ा लकीर खींचने जा रहे हैं या फिर उनकी कोशिश लोकसभा चुनाव के जरिये विधान सभा की जमीन तैयार करने की है और यदि रणनीति विधान सभा चुनाव के लिए जमीन तैयार करने की है, तो सवाल है इन चेहरों को उतार कर कुर्मी मतादाताओं में जो सेंधमारी की जायेगी. उसका लाभ किसको मिलने जा रहा है?
क्या आजसू भाजपा गठबंधन इस सेंधामारी रोकने में कामयाब होगा
ध्यान रहे की आजसू का भाजपा के गठबंधन है. इस हालत में आम रुप से यह दावा किया जाता है कि इस बार कुर्मी मतदाताओं का झूकाव भाजपा की ओर होगा. लेकिन इसकी दूसरी सच्चाई यह भी है कि जिस तरीके से अर्जुन मुंडा के द्वारा कुड़मी जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग को खारिज किया गया, उसके बाद कुड़मी मतदाताओं के बीच भारी नाराजगी की खबर है. इस हालत में यदि उनके सामने जयराम का चेहरा सामने आता है, तो कुर्मी मतदाताओं का एक हिस्सा जयराम के साथ खड़ा हो सकता है. लेकिन रांची संसदीय सीट पर इसका क्या असर होगा, इसके समझने के लिए रांची लोकसभा से सामाजिक समीकरण को समझना होगा.
क्या है रांची लोकसभा का सामाजिक समीकरण
ध्यान रहे कि रांची लोकसभा में रांची, सिल्ली, खिजरी, हटिया और कांके कुल छह विधान सभा आता है. इसमें सिल्ली, इछागढ़ और रांची विधान सभा में कुर्मी जाति की बहुलता मानी जाती है. एक आंकड़े के अनुसार रांची लोकसभा में अनुसूचित जाति की आबादी करीबन 5 फीसदी, अनुसूचित जाति की आबादी-28 फीसदी, मुस्लिम आबादी-15 फीसदी और कुर्मी 15 फीसदी है. इसी सामाजिक समीकरण के बूते रामटहल चौधरी पांच बार कामयाबी का झंडा गाड़ने में कामयाब रहें. लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में रामटल चौधरी को बेटिकट करने के बावजूद कुर्मि जाति की मतदाता भाजपा के साथ ख़ड़े नजर आयें, निर्दलीय रुप से चुनावी अखाड़े में उतर कर भी रामटहल चौधरी कोई बड़ी लकीर नहीं खींच पाये. इस हालत में सवाल यह भी खड़ा होता है कि क्या इस बार भी कुर्मी मतदाता पीएम मोदी के साथ खड़े नजर आयेंगे और जयराम के तमाम सिपहसालार खाली हाथ मैदान से बाहर होंगे या जयराम इस खेल की बिसात को ही बदलने जा रहे हैं. जानकारों का दावा है कि जयराम सियासत के उभरते खिलाड़ी है, रामटहल चौधरी के विपरीत एक ओजस्वी वक्ता है और इसका असर चुनाव परिणाम पर देखने को मिल सकता है. यदि कुर्मी मतदाताओं का एक हिस्सा भी टूट कर उनके साथ खड़ा होता है तो इसका नुकसान भाजपा को उठाना पड़ सकता है. हालांकि इसका लाभ कांग्रेस को कितना होगा? इसका आकलन करना बेहद मुश्किल है और इसका कारण है, वर्ष 2019 का चुनाव परिणाम, तब भी संजय सेठ के मुकाबले में सुबोधकांत ही मैदान में थें, और जीत हार का मार्जिन करीबन तीन लाख का था. इस हालत में सुबोधकांत इस बार कोई बड़ा करिश्मा करने जा रहे हैं. इसकी उम्मीद नहीं पाली जा सकती. हालांकि यही लोकतंत्र है और यही लोकतंत्र की खूबसूरती. जनता कब किसे आसमान पर बिठा दे और कब जमीन पर बिठा दे, कुछ कहा नहीं जा सकता.