Ranchi-विधान सभा में भाजपा के मुख्य सचेतक रहे जेपी भाई पटेल के पालाबदल के बाद अब हजारीबाग के दंगल में उतरने की चर्चा तेज है. सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा आम है कि ईडी की छापेमारी के बाद अब कांग्रेस रणनीतिकारों के द्वारा बदले हालात में जेपी भाई पेटल को मैदान में उतारने की तैयारी है. इस दावे को बल झारखंड में कांग्रेस की बदली सियासत से भी मिल रहा है. जिन कांग्रेसी रणनीतिकारों को कभी सुस्त और दिशा विहीन बताया जा रहा था. उनकी सुस्ती पर तंज कसा जा रहा था और यह दावा किया जा रहा था कि झारखंड कांग्रेस के पास ना तो कोई चेहरा है और ना ही कोई सियासी रणनीति. कांग्रेस की नाव कितनी आगे बढ़ेगी और कितनी डूबेगी, सब कुछ झामुमो की बिछायी सियासी विसात से तय होगा. लेकिन इन दावों के बीच प्रदेश प्रभारी मीर ने भाजपा के मुख्य सचेतक जेपी भाई पटेल को पंजे की सवारी कर साबित कर दिया कि कांग्रेस के रणनीतिकार ना तो सुस्त है और ना ही दिशा विहीन, हालांकि संगठन के अंदर कई समस्यायें जरुर है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि उसका उपचार नहीं किया जा सके. इसे झारखंड में मीर का साइड इफेक्ट माना जा सकता है.
हजारीबाग के दंगल से अम्बा की विदाई
लेकिन यदि सियासी गलियारों में तैर रही इस दावे में दम है कि हजारीबाग के दंगल से अम्बा की विदाई पर मुहर लग चुकी है, और बदले सियासी हालात में जेपी भाई पटेल के कंधे पर मनीष जायसवाल को रोकने की जिम्मेवारी सौंप दी गयी है. तो सवाल खड़ा होता है कि जेपी भाई पटेल मनीष जायसवाल की राह में कितनी बड़ी चुनौती होंगे? क्या जेपी भाई पटेल के पास वह सामाजिक आधार है, जिसके बूते वह भाजपा एक चुनौती पेश कर सकें और बड़ा सवाल यह भी है कि क्या जेपी भाई की उम्मीदवारी सामने आने के बाद कल तक संसद जाने का सपना संजो रही अम्बा प्रसाद और उनके पिता योगेन्द्र साव अब उसी उत्साह और लगन के साथ कांग्रेस की जीत के लिए मोर्चाबंदी तैयार करेंगे. क्योंकि यह कोई छुपा रहस्य नहीं है कि लम्बे समय से योगेन्द्र साव की चाहत हजारीबाग के अखाड़े में उतरने की रही है. और लम्बे समय के बाद इस बार यह सियासी चाहत अम्बा के रुप में पूरी होती नजर आ रही थी. लेकिन एन वक्त पर ईडी की इंट्री हुई और कथित रुप से अम्बा का खेल बिगड़ा गया. क्या योगेन्द्र साव इस बदले हालात की हकीकत को स्वीकार करेंगे? फिलहाल इसके लिए हमें इंतजार करना होगा. लेकिन यहां सवाल जेपी भाई पटेल की सियासी कुब्बत और सामाजिक जनाधार का है.
क्या है हजाराबीग का सियासी गणित
तो यहां बता दें कि जिस विधान सभा मांडू से जेपी भाई पटेल ने अपनी सियासत की शुरुआत की है. 2009 में झामुमो तो वर्ष 2014 में कमल की सवारी कर विधान सभा पहुंचे है. वह मांडू विधान सभा की सीट भी इसी हजारीबाग संसदीय सीट के अंतर्गत आता है और इसी संसदीय सीट का एक दूसरा विधान सभा बड़कागांव से अम्बा प्रसाद विधायक है. एक तरफ जहां बड़कागांव में योगेन्द्र साव का मजबूत जनधार माना जाता है, वहीं मांडू विधान सभा में भी कभी जेपी भाई पटेल के पिता टेकलाल महतो की तूती बोलती थी. जेपी भाई पटेल टेकलाल महतो की उसी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. जबकि इस संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाला एक और सीट बरही पर कांग्रेस का कब्जा है. उमाशंकर अकेला 2009 में भाजपा के टिकट पर तो इस बार कांग्रेस के टिकट पर विधान सभा पहुंचे हैं. इस प्रकार फिलहाल बरही, मांडू और बड़कागांव विधान सभा पर कांग्रेस का कब्जा है, तो रामगढ़ से आजसू की सुनीता चौधरी और हजारीबाग सदर से खुद मनीष जायसवाल विधायक है. यानि विधान सभा के हिसाब से कांग्रेस का पलड़ा भारी दिखता है.
50 वर्षों से कांग्रेस हजारीबाग में सूखे का शिकार, क्या है सामाजिक समीकरण
लेकिन एक दूसरी सच्चाई यह भी है कि हजारीबाग में कांग्रेस पिछले 50 वर्षों से सूखे का शिकार है. अंतिम बार 1984 में दामोदर पांडे ने यहां कांग्रेस का झंडा बुलंद किया था, इस प्रकार जेपी भाई पटेल के सामने ना सिर्फ मनीष जायसवाल को सियासी शिकस्त देने की है, बल्कि पचास वर्षों का कांग्रेस का सूखा समाप्त करने की भी चुनौती है. लेकिन किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के पहले हमें हजारीबाग के सामाजिक समीकरण को सभी समझना होगा. एक अनुमान के अनुसार हजारीबाग संसदीय क्षेत्र में अनुसूचित जाति की आबादी करीबन 15 फीसदी, अनुसूचित जन जाति की आबादी 12 फीसदी, अल्पसंख्यक 18 फीसदी, जबकि कुर्मी महतो की आबादी करीबन 15 फीसदी, यादव 4 फीसदी हैं. और इसी सामाजिक समीकरण से जेपी भाई पटेल में कांग्रेस ने उम्मीद पाली है. क्योंकि इन पचास वर्षों में कांग्रेस ने जिन-जिन सियासी सूरमाओं को मैदान में उतारा, उन सारे सियासी सुरमाओं के पास कोई व्यापक सामाजिक आधार नहीं था. बहुत हद तक कांग्रेस इस बार वह कमी पूरी करती दिख रही है. निश्चित रुप से जेपी भाई पटेल के चेहरे के साथ 15 फीसदी कुर्मी महतो मतदाता, 18 फीसदी अल्पसंख्यक, चार फीसदी यादव और 12 फीसदी आदिवासी यानि 49 फीसदी आधार मतों के साथ अपनी लड़ाई की शुरुआत कर सकती है. इसके बाद की लड़ाई अनुसूचित जाति और दूसरे पिछड़ी जातियों की गोलबंदी कर तैयार की जा सकती है.
कुर्मी महतो के साथ ही पिछड़ा आदिवासी और अल्पसंख्यकों की युगलबंदी से जेपी भाई पटेल को मिल सकती है मदद
लेकिन यहां यह भी याद रहे कि सामने भाजपा खड़ी है, जिसके दांव और चुनावी प्रचार प्रसार का मुकाबला करना इतना आसान नहीं होता. आज उसके पास पीएम मोदी का चेहरा और मनीष जायसवाल के रुप में हिन्दुत्ववादी चेहरा है, जो पिछले कई वर्षों से हजारीबाग में अपने चेहरे को इसी रुप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इस सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है हजारीबाग में इस बार बाहरी भीतरी का संघर्ष जोर पकड़ रहा है, और यदि यह नारा जमीन तक उतरता है, तो मनीष जायसवाल का बाहरी चेहरा होना और जेपी भाई पटेल के पक्ष में जा सकता है, और कुर्मी महतो के साथ ही पिछड़ा आदिवासी और अल्पसंख्यकों की युगलबंदी भी जेपी भाई पटेल को मदद पहुंचा सकती है. अब देखना होगा कि हजारीबाग में बाहरी भीतरी का संघर्ष रंग लाता है, मोदी का चेहरा एक बार फिर से कमाल दिखाता है या अपने सामाजिक समीकरण के बल पर जेपी भाई पटेल कांग्रेस का 50 वर्ष का सूखा समाप्त करने में कामयाब होता है, फिलहाल यह लड़ाई दो नये और युवा सियायी चेहरों के बीच है, और सबों की निगाह इस पर बनी हुई है.
4+