Ranchi-बिहार के बाद अब झारखंड में भी राजद में फूट के आसार बनते दिख रहे हैं और यहां भी टूट के कारण लोकसभा चुनाव में टिकटों की दावेदारी है. हालांकि अभी तक यह भी साफ नहीं है कि महागठबंधन के हिस्से राजद को कितनी सीट आने वाली है. वैसे इंडिया गठबंधन की ओर से राजद के हिस्से एक सीट देने की चर्चा जरुर है. लेकिन खबर है कि इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए राजद तैयार नहीं है. उसका दावा है कि गोड्डा, कोडरमा, चतरा और पलामू में राजद का मजबूत जनाधार है. उसके पास चुनावी समर में ताल ठोकने वाले चेहरे हैं. जबकि कांग्रेस के द्वारा भले ही सात सीटों पर दावेदारी ठोकी जा रही हो. लेकिन उसके पास आज के दिन चुनाव अखाड़े में उतरने के लिए भी सियासी पहलवानों का टोटा है. जिस पलामू सीट को अपने पाले में लेने को कांग्रेस अड़ा है. उस पलामू में कांग्रेस के पास एक भी स्थानीय चेहरा नहीं है. कभी हजारीबाग से, तो कभी बिहार से मीरा कुमार को लाकर चुनावी समर में झोंकने की तैयारी की जा रही है. इसके विपरीत राजद के पास वहां स्थानीय नेताओं की एक लम्बी कतार है. कुछ यही हाल चतरा और गोड्डा और कोडरमा को लेकर भी है. गोड्डा में तो कांग्रेस अब तक अपने सारे पहलवानों को चुनावी अखाड़े में उतार कर उसका हस्श्र देख चुकी है. बावजूद वह गोड्डा की सीट अपने पाले में रखना चाहती है. कांग्रेस को अपनी जमीनी ताकत की पहचान करते हुए सीटों की दावेदारी करनी चाहिए. अनावश्यक सीटों पर अपनी दावेदारी कर इंडिया गठबंधन के दूसरे घटकों के सामने सियासी दुविधा खड़ा करने की रणनीति से बचना चाहिए.सूत्रों का दावा है कि राजद इस बार किसी भी हालत में लोकसभा की दो सीटों से कम पर समझौता को तैयार नहीं है.
चतरा लोकसभा से ताल ठोकने की तैयारी में सत्यानंद भोक्ता
इस बीच खबर है कि अब तक जिस चतरा सीट को राजद के खाते में डालने की तैयारी है. उस सीट पर झारखंड में राजद के इकलौते विधायक और राजद कोटे से मंत्री सत्यानंद भोक्ता अपनी दावेदारी तेज कर चुके हैं. इस बार सत्यानंद भोक्ता की हसरत किसी भी कीमत पर चतरा के अखाड़े में अपनी किस्मत आजमाने की है. दावा तो यह है कि यदि यह सीट राजद के खाते में नहीं आती है, तो उस हालत में सत्यानंद भोक्ता घर वापसी का एलान भी कर सकते हैं. यहां याद रहे कि सत्यानंद भोक्ता 2000 और 2004 में भाजपा के टिकट पर ही चतरा विधान सभा से विधान सभा पहुंचे थें. लेकिन 2019 में उन्होंने राजद की सवारी कर ली और राजद कोटे से मंत्री भी बने. इस प्रकार भाजपा से पुराना रिश्ता रहा है. यही कारण है कि सियासी गलियारों में उनकी घर वापसी की खबर तेजी से फैल रही है.
क्यों पाला बदलने को आतूर है सत्यानंद भोक्ता?
दरअसल यह पाला बदलना सत्यानंद भोक्ता की सियासी मजबूरी भी है. क्योंकि जिस चतरा सीट से वह आज विधायक है. वह सीट अनुसूचित जाति के सुरक्षित है. जबकि हालिया दिनों में केन्द्र सरकार ने भोक्ता जाति को अनुसूचित जनजाति में की श्रेणी में डाल दिया है. इस हालत में सत्यानंद भोक्ता के लिए अब इस सीट से लड़ना संभव नहीं है. और यही उनकी सियासी दुविधा है और संकट है. इस हालत में उनके लिए सबसे सुरक्षित सियासी भविष्य लोकसभा की तैयारी में नजर आता है. और वह सीट चतरा लोकसभा सीट से बेहतर कोई दूसरा नहीं हो सकता. फिलहाल सत्यानंद भोक्ता की नजर महागठबंधन के बंटवारे में लगी हुई है. लेकिन खबर है कि महागठबंधन भी एक रणनीति के तहत फिलहाल अपने पत्ते को खोलने से बच रहा है. उसकी कोशिश है कि पहले भाजपा अपने सियासी पहलवानों की घोषणा करें. उसके बाद ही महागठबंधन अपना पत्ता खोले. और महागठबंधन की यह रणनीति सत्यांनद भोक्ता को परेशान किये हैं. क्योंकि उनके लिए चतरा सीट का सिर्फ राजद के खाते में आना ही महत्वपूर्ण नहीं है. अपनी उम्मीदवारी पर राजद सुप्रीमो की मुहर लगवाना भी एक बड़ी चुनौती है. क्योंकि तेजस्वी यादव भी लगातार झारखंड से फिडबैक ले रहे हैं. और यदि अंतिम समय में राजद किसी और चेहरे पर दाव लगाने का फैसला करता है, और इधर भाजपा अपने उम्मीदवार की घोषणा कर देती है, तो उस हालत में सत्यानंद भोक्ता का सियासी सपना एक ही झटके में चकनाचुर हो सकता है. इस बीच खबर यह भी है कि भाजपा चतरा सांसद सुनील सिंह को बेटिकट करने का मन बना चुकी है. और इसके साथ ही सत्यानंद भोक्ता के साथ वार्ता भी जारी है. जैसे ही मामला परवान चढ़ता है. सत्यानंद लालटेन छोड़ कमल की थामने की घोषणा कर सकते हैं, लेकिन यदि इस बीच उन्हे तेजस्वी यादव की ओर से कोई ठोस आश्वासन मिल जाता है, तो वह महागठंबधन का हिस्सा बने रहने की रणनीति पर ही चलना पसंद करेंगे. कुल मिलाकर चतरा का अखाड़ा बेहद महत्वपूर्ण हो चला है, जहां भाजपा महागठबंधन में अपने प्रत्याशी की खोज कर रही है, वहीं महागठबंधन की चुनौती अपने नेताओं को बांधे रखने की है. देखना है किसकी रणनीति काम आती है, और किसकी सियासी विसात बिखरता है.
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