Ranchi-गिरिडीह के झंडा मैदान से अपनी सियासी जीवन की शुरुआत करते हुए कल्पना सोरेन अपनी पहली सार्वजनिक भाषण से ही कार्यकर्ताओँ की दिल जीतते नजर आयी. बहती आसुंओं की धार के बीच जैसे ही कल्पना सोरेन ने यह सवाल खड़ा किया कि आखिर किस गुनाह की सजा हेमंत सोरेन भुगत रहे हैं? उनका जुर्म क्या है? क्या पिछड़ों के आरक्षण विस्तार करना जुर्म है? यदि यह जुर्म है, तो हेमंत सोरेन ने यह जुर्म जरुर किया है. क्या सरना धर्म कोड का बिल पास कर राजभवन भेजना जुर्म है? यदि यह जुर्म है तो हेमंत सोरेन ने गुनाह किया है. आदिवासी-मूलवासी छात्रों को ऊंच शिक्षा के लिए विदेश भेजने और करोना काल में अपने गरीब मजूदरों और असहाय झारखंडियों को देश के कोने कोने से हवाई जहाज में बिठा कर झारखंड लाने का गुनाह भी हेमंत ने किया है? हेमंत सोरेन का एक गुनाह यह भी है कि उसने जल जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ी, जिस जमीन पर भाजपा की नजर बनी हुई थी, कानून बना कर उस जमीन को आदिवासी मूलवासियों के नाम पर किया, और नहीं तो हेमंत सोरेन का गुनाह क्या है? क्या झारखंड की अस्मिता और स्वाभिमान की रक्षा करना ही गुनाह है? क्या भाजपा के नापाक इरादों के आगे चट्टान की तरह खड़ा होना गुनाह है? और यदि यह गुनाह है, तो हेमंत यह गुनाह हर दिन करेगा.
जेल का फाटक टूटेगा और हेमंत सोरेन छूटेगा की गूंज
एक तरफ कल्पना सोरेन अपने दर्द को बयां कर रही थी, दूसरी तरफ मंच के नीचे से “जेल का फाटक टूटेगा और हेमंत सोरेन छूटेगा” का सिंहनाद हो रहा है. कल्पना सोरेन के नाम के जयकारे लग रहे थें, और इस शोर के बीच कल्पना कल हेमंत के साथ जेल में हुई मुलाकात का एक-एक ब्योरा पेश कर रही थी. कल्पना सोरेन ने दावा किया कि पूर्व सीएम हेमंत ने उनके कंधे पर हाथ डालकर कर कहा था कि हिम्मत नहीं हारना, तुम्हारी आंखों में आंसुओं की धार नहीं होनी चाहिए? क्योंकि अभी तो सिर्फ मुझे कैद किया गया है, लेकिन अभी मैं जिन्दा हूं, और जब तक जिंदा हूं, झारखंड की अस्मिता पर दाग नहीं लगने दूंगा. झारखंडियों के स्वाभिमान पर आंच नहीं आने दूंगा. कल्पना की यह बात जैसे ही कार्यकर्ताओं तक पहुंची, पूरा माहौल गमगीन नजर आने लगा. और इस गमगीन माहौल में एक बार फिर से उर्जा का संचार करते हुए कल्पना ने ‘झारखंड झूकेगा नहीं’ की हुंकार लगायी और इस हुंकार के साथ ही कार्यकर्ताओं में एक करंट सी दौड़ती नजर आयी.
यहां ध्यान रहे कि सियासी गलियारे में चल रही तमाम अटकलबाजियों पर विराम लगाते हुए कल्पना सोरेन ने सक्रिय राजनीति में उतरने का विधिवत एलान कर दिया है, अपने सोशल मीडिया एकाउंट इसकी घोषणा करते हुए कल्पना ने लिखा था कि “आज (3 मार्च को) अपने जन्मदिन और कल यानि सोमवार को गिरिडीह में झामुमो के स्थापना दिवस कार्यक्रम में शामिल होने से पहले रविवार को झारखंड राज्य के निर्माता और झामुमो के अध्यक्ष बाबा दिशोम गुरुजी और मां से आशीर्वाद लिया। आज ही सुबह हेमंत जी से भी मुलाकात की. मेरे पिता भारतीय सेना में थे। वह सेना से रिटायर हो चुके हैं। पिताजी ने सेना में रहकर देश के दुश्मनों का डटकर सामना किया। बचपन से ही उन्होंने मुझ में बिना डरे सच के लिए संघर्ष करना और लड़ना भी सिखाया। झारखंडवासियों और झामुमो परिवार के असंख्य कर्मठ कार्यकर्ताओं की मांग पर कल से मैं सार्वजनिक जीवन की शुरुआत कर रही हूं। जब तक हेमंत जी हम सभी के बीच नहीं आ जाते, तब तक मैं उनकी आवाज बनकर आप सभी के बीच उनके विचारों को आपसे साझा करती रहूंगी, आपकी सेवा करती रहूंगी।“ इसके साथ ही #झारखंड झुकेगा नहीं का टैग लगाते हुए लिखा है कि “विश्वास है, जैसा स्नेह और आशीर्वाद आपने अपने बेटे और भाई हेमंत जी को दिया है, वैसा ही स्नेह और आशीर्वाद, मुझे यानी हेमंत जी की जीवन संगिनी को भी देंगे”
लम्बे समय से कल्पना की सियासी इंट्री की हो रही चर्चा
कल्पना सोरेन की सियासी इंट्री को लेकर सियासी गलियारे में काफी दिनों से कयासबाजियों का बाजार गर्म था, जब गांडेय विधान सभा सीट से कांग्रेस विधायक सरफराज अहमद ने इस्तीफा दिया था, तब भी इस सीट से कल्पना सोरेन के चुनाव लड़ने की खबर सामने आयी थी, फिर इसके बाद जब भुईंहरी जमीन मामले में हेमंत की गिरफ्तारी हुई, तब उस समय भी इस बात की चर्चा तेज थी कि राज्य की कमान कल्पना सोरेन के हाथ में आने जा रही है, लेकिन अन्ततोगत्वा सत्ता की बागडोर दिशोम गुरु के पुराने और वफादार सहयोगी चंपाई सोरेन के हाथ आयी. तब दावा किया गया था कि कल्पना को लेकर सोरेन परिवार में ही विरोध की स्थिति थी. बसंत सोरेन से लेकर सीता सोरेन तक कल्पना के हाथ में सीएम की कुर्सी देने को राजी नहीं है, दावा यह भी किया गया था कि खुद दिशोम गुरु कल्पना के बजाय राज्य की बागडोर बसंत सोरेन के हाथ सौंपने के पक्षधर है, लेकिन ये इन तमाम दावों महज अफवाह साबित हुए, क्योंकि चंपाई सोरेन की ताजपोशी ने साफ कर दिया कि सोरेन परिवार के अंदर सीएम कुर्सी को लेकर कोई संघर्ष की स्थिति नहीं थी, यह सारे दावे महज भाजपा का ख्याली पुलाव थें, क्योंकि ना तो बसंत सोरेन की ताजपोशी हुई और ना ही उन्हे उपमुख्यत्री की कुर्सी सौंपी गयी. जिस सीता सोरेन को लेकर बगावत के दावे किये जा रहे थें, वह सीता सोरेन भी इस सियासी संकट में पूरी ताकत के साथ अपने परिवार के साथ खडी नजर आयी, और बड़ी बात यह रही कि इस संकट की घड़ी में कल्पना सोरेन पूरे सौहादर्य के साथ पूरे परिवार को एकजूट करती नजर आयी. पूरे परिवार में कहीं से भी कोई कटुता नहीं देखी गयी, और आज सारे फैसले खुद चंपाई सोरेन लेते दिख रहे हैं.
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