Ranchi- विधान सभा के शीतकालीन सत्र के दौरान कांग्रेस विधायक प्रदीप यादव के सवालों के बाद जातीय जनगणना का मुद्दा एक बार फिर से सुर्खियों में आ चुका है. प्रदीप यादव ने इस मुद्दे पर सरकार से सवाल दागते हुए पूछ कि पिछले सत्र के दौरान ही सरकार के द्वारा जातीय जनगणना करवाने की घोषणा की गयी थी, लेकिन सत्र के एटीआर में इसका कोई उल्लेख नहीं है. सरकार इस दिशा में आगे बढ़ने के बजाय पिछले छह माह से इस बात का ही जवाब ही तलाश रही है कि इसका नोडल विभाग कौन होगा, किस विभाग के जरिये जातीय जनगणना का कार्य करवाया जायेगा.
पिछड़ी जातियों की आबादी 55 फीसदी, लेकिन आरक्षण महज 14 फीसदी
प्रदीप यादव ने दावा किया कि राज्य में पिछड़ी जातियों की जनसंख्या करीबन 55 फीसदी के आसपास है, जबकि आज के दिन उसे महज 14 फीसदी का आरक्षण है, हालांकि राज्य सरकार ने पिछड़ी जातियों का आरक्षण बढ़ाने का बिल सदन से पास किया है, लेकिन अभी भी यह बिल लटका पड़ा है, दुखद स्थिति यह है कि राज्य के नौ जिलों में जिला कोटी की सेवाओं में उनका आरक्षण शून्य है, इस हालत में सरकार को जातीय जनगणना पर अपनी गंभीरता का परिचय देना चाहिए.
आखिर समय सीमा बताने से बच क्यों रही सरकार
जिसके बाद मंत्री आलमगीर आलम ने भरोसा दिलवाते हुए कहा कि सरकार इस मामले में बेहद गंभीर है, कोई संशय या दुविधा नहीं है, बावजूद इसके मंत्री आलमगीर जातीय जनगणना के लिए कोई निर्धारित समय सीमा का उल्लेख नहीं किया. और इसके बाद यह सवाल गहराने लगा कि क्या वाकई हेमंत सरकार जातीय जनगणना के मुद्दे पर सिर्फ सियासी तीर छोड़ रही है, क्या वह वाकई इस दिशा में आगे नहीं बढ़ना नहीं चाहती. और यही कारण है कि यह फाइल विभाग दर विभाग घूम रही है.
नीतीश कुमार ने दिखलाया रास्ता
सरकार अब भी कह रही है कि इसके लिए विधान सभा से एक प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को भेजा जायेगा. केन्द्र की स्वीकृति के बाद राज्य सरकार झारखंड में जातीय जनगणना की दिशा में आगे बढ़ेगी और राज्य के सभी सामाजिक समूहों को उनकी हिस्सेदारी और भागीदारी को सुनिश्चित करेगी.
लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या केन्द्र सरकार जाति आधारित जनगणना का इजाजत देगी, बिहार इसका उदाहरण है, सीएम नीतीश में जातीय जनगणना के प्रति वचनबद्धता थी, इसलिए एक तरफ उसने विधान सभा से इस आशय का प्रस्ताव पारित किया, तो दूसरी ओर प्रतिनिधिमंडल का गठन कर केन्द्र सरकार से जल्द से जल्द निर्णय लेने की गुहार भी लगायी. नीतीश की इच्छा शक्ति के आगे आखिरकार केन्द्र को झूकना पड़ा और इस बात की स्वीकृति देनी पड़ी कि यदि राज्य सरकार इसे अपने संसाधनों से जाति आधारित गणना की दिशा में बढ़ना चाहती है, तो केन्द्र सरकार को इसमें कोई आपत्ति नहीं है.
बाद में यह मुद्दा कोर्ट में भी गया और वहां भी केन्द्र सरकार को मन मार कर अपना एफिडेविट बदलना पड़ा, और इसके बाद एक हद तक उसकी भद्द भी पिटी, क्योंकि महज 24 घंटों में उसे अपना अपना एफिडेविट बदलना पड़ा. लेकिन क्या हेमंत सरकार में नीतीश कुमार का वह जज्बा है. और यदि वह इस मामले में वाकई गंभीर है, तो वह इस फैसले को टालने की कोशिश करती नजर क्यों आ रही है. उसमें नीतीश कुमार के समान दृढ़ इच्छा शक्ति नजर क्यों नहीं आ रही.
सही मौके की तलाश में हेमंत सरकार
इसके विपरीत कुछ जानकारों का मानना है कि हेमंत सरकार इसके लिए सही मौके की तलाश में है. भाजपा के खिलाफ उसने एक एक कर सारे तीर चल दिये हैं. अब वह सांस थाम कर उसका अंजाम देखने की कोशिश कर रही है. जैसे ही वह इस मोर्चे पर कमजोर होती नजर आयेगी, इस तीर को चलाने से परहेज नहीं करेगी. लेकिन सवाल यह है कि वह सही समय क्या है?
वह सही समय कब आयेगा?
क्या वह सही समय दस्तक देने लगा है. क्या वह सही समय लोकसभा चुनाव के पहले का सियासी परिदृश्य होगा, क्या लोकसभा चुनाव के ठीक पहले इसकी शुरुआत कर हेमंत सरकार भाजपा के खिलाफ एक और सियासी मोर्चा खोलगी, या इस अंतिम तीर का उपयोग विधान सभा चुनावों के पहले किया जायेगा? और लोकसभा चुनाव के ठीक बाद इसकी शुरुआत की जायेगी? जानकारों का दावा है कि फिलहाल हेमंत फील गुड की स्थिति में है, लेकिन यदि लोकसभा चुनाव में उसे धक्का लगता है, तो विधान सभा चुनाव के पहले वह इस तीर को चला सकती है.
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