रांची(RANCHI): 2024 की जंग का एलान हो चुका है. सियासी दलों के बीच अपना-अपना सियासी बिसात बिछाने की कवायद तेज हो चुकी है. दावों और प्रतिदावों का खेल शुरु हो चुका है, कुछ यही स्थिति गिरिडीह संसदीय क्षेत्र की भी है, एक तरफ जयराम महतो अपनी जीत की हुंकार लगा रहे हैं तो दूसरी ओर मथुरा महतो जीत का दावा ठोक रहे हैं और इस सबसे बीच सीपी चौधरी अपनी जीत को लेकर मुतमईन नजर आ रहे हैं, लेकिन इन दावों के बीच गिरिडीह की जनता मुतमईन नजर नहीं आ रही. उसकी नजरें अपने टाईगर की खोज कर रही है. यह पहली बार हो रहा है कि जब इस चुनाव की रणभेरी बज चुकी हो, लेकिन जगरनाथ दादा की ठनकती आवाज सुनाई नहीं दे रही और यह कमी सिर्फ झामुमो कार्यकर्ताओं को ही बेचैन नहीं कर रही. बल्कि चन्द्रप्रकाश चौधरी से लेकर जयराम महतो की आंखें भी नम है. आज उनके विरोधी भी दादा की आवाज को मिस कर रहे हैं और इसका कारण है कि जगरनाथ महतो के चेहरे पर हर वक्त खिली रहने वाली मुस्कान. पक्ष हो या विपक्ष, दोस्त या दुश्मन टाईगर जगरनाथ की यह मुस्कान सबों को आश्वस्त करती थी कि सियासत अपनी जगह, लेकिन उनका यह बेटा, यह भाई और यह दोस्त हर संकट में साथ खड़ा जरुर नजर आयेगा. दोस्तों के दोस्तों और दुश्मनों के प्रति रहम दिल टाईगर जगरनाथ की यह अदा गिरिडीह के इस सियासी दंगल में सियासतदानों के आंखों में एक सुनापन पैदा कर रहा है.
पैतृक गांव अलारगो में दी जा रही श्रद्धांजलि
दरअसल जब-जब चुनाव की रणभेरी बजती थी, जगरनाथ दा खुद मोर्चा संभालें नजर आते थें. अपने बुलेट बाइक पर गले में गमछा डाल प्रचार पर निकल पड़ते थें. जगरनाथ दा की एक खासियत थी, वह मंच से जो भी वादा करते थें, उसे पूरा करने का दम-खम भी रखते थें. चुनावी अखाड़े में जगरनाथ दादा की यही कमी खल रही है. उनका यह अनोखा अंदाज, उनकी पुण्य तिथि लोगों को याद आ रही है. आज उनकी पहली पुण्य तिथि है. आज ही के दिन वर्ष 2023 में चेन्नई के एक अस्पताल में उनकी मौत हुई थी और वह अपने परिजनों के साथ ही झारखंड के आवाम रोता-बिलखता छोड़ कर दूसरी दुनिया के सफर पर निकल पड़े थें. जैसे ही उनकी निधन की खबर झारखंड पहुंची, पूरे सूबे में एक मातमी सन्नाटा पसर गया, सबकी आंखें नम हो गई. उनके साथ बिताए हुए पल को याद कर लोग भावुक हो रहे थें. जैसे ही उनके शव को विशेष विमान से रांची लाने की खबर सामने आयी. हजारों का काफिला पैतृक गांव अलागो के लिए निकल पड़ा था. जिस रास्ते से अंतिम यात्रा गुजर रही रही थी, लोगों का काफिला जुड़ता जा रहा था. आज एक बार फिर से वही नजारा है. अलारगो में आज उनकी पहली पुण्य तिथि मनाई जा रही है. हजारों का हुजूम जुटा है. आम से लेकर खास कर सभी श्रद्धांजलि देने के लिए अलारगो पहुंच चुके हैं. निश्चित रुप से यह पल भावुक करने वाला है. आज भले ही जगरनाथ दा हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी याद आज भी जिंदा है, पूरा झारखंड आज उनको याद कर रहा है.
रिपोर्ट- समीर
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