Ranchi-आखिरकार लम्बी पूछताछ के बाद पूर्व सीएम हेमंत को उस सीलन भरे कमरे से मुक्ति मिल गयी, जिस कमरे में गिरफ्तारी के बाद एक राज्य के पूर्व सीएम को रखा जा रहा था, और इधर उनके समर्थक इस बात का दावा ठोक रहे थें कि दरअसल यह एक कमरा नहीं होकर, एक बेसमेंट है, जहां ना तो हवा आती है, और ना ही सूरज की रोशनी. हां, इस सीलन भरे कमरे में बैठकर हेमंत को भारत की न्यायपालिका से एक उम्मीद की किरण जरुर नजर आती है. सियासी रंजिश में भाजपा अपना एक्सटेंशन “ईडी” को आगे कर झूठ का जितना बड़ा पुलिंदा खड़ा कर ले, लेकिन जब 27 फरवरी को इस मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई होगी, तो उसके बाद दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जायेगा, और भाजपा की यह योजना रखी की रखी रह जायेगी. क्योंकि जिस जमीन के टुकड़े को आधार बनाकर हेमंत कालकोठरी में कैद कर रखा गया है, उस जमीन के टुकड़े से उनका दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं है. झामुमो समर्थकों का एक हिस्सा तो इस बात को भी उठा रहा था कि इसी राजधानी रांची में आदिवासियों जमीन की आलिशान बंगले खड़े किये गये हैं, कॉलिनियां बसायी गयी है, लेकिन उन पर कभी किसी ईडी या केन्द्रीय एजेंसी की ओर से छापेमारी नहीं की जाती, और इन्ही कॉलिनियों में कई भाजपा के सांसद विधायक भी निवास करते हैं. लेकिन एक आदिवासी मुख्यमंत्री को भुंईहरी जमीन के महज आठ एकड़ टुकड़े के लिए कुर्सी छीन ली गयी, जबकि भुंईहरी जमीन की खरीद-बिक्री हो नहीं हो सकती, फिर हेमंत सोरेन ने इस जमीन को खरीदने की कोशिश कैसे की होगी, और जहां तक उस पर कब्जा करने की बात है तो क्या महज एक चंद वीडियो के आधार पर इस बात को साबित किया जा सकता है कि उक्त जमीन पर पूर्व सीएम का कब्जा था और उनके द्वारा वहां बैंकेट हॉल बनाने की तैयारी की जा रही थी. और इतने लचर सबूत और साक्ष्यों के आधार पर स्वतंत्र भारत के इतिहास में किसी मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी हो गयी, और इस इतिहास को रचने के लिए भी एक आदिवासी को बलि का बकरा बनाया गया.
27 फरवरी को हाईकोर्ट के फैसले पर समर्थकों की नजर
निश्चित रुप से आज जैसे ही यह खबर पहुंची होगी कि रिमांड की अधिकतम अवधि 14 दिन में 13 दिन तक गहन पूछताछ के बाद कोर्ट ने पूर्व सीएम हेमंत को ज्यूशिडियल कस्टडी में जेल भेज दिया है, समर्थकों ने राहत की सांस ली होगी. और उनकी नजर अब 27 फरवरी को झारखंड हाईकोर्ट के फैसले पर टिकी होगी. यहां ध्यान रहे कि गिरफ्तारी के बाद पूर्व सीएम हेमंत की ओर से हाईकोर्ट में अर्जी लगाकर ईडी की कार्रवाई को चुनौती देते हुए यह दावा किया गया था कि ईडी अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर इस मामले में कार्रवाई कर रही है, क्योंकि यह तो जमीन का मामला है, और जमीन का मामला दीवानी होता है, इस प्रकार ईडी की इंट्री का कोई औचित्य नहीं है, हालांकि इसके समानान्तर ईडी का तर्क है कि इस मामले का संबंध मनीलांड्रिंग से है. इस मामले में अवैध पैसे का लेन-देन हुआ है, और यही कारण है कि ईडी ने अपनी इंट्री की है.
हेमंत का तर्क और ईडी के साक्ष्य
अब देखना होगा कि हेमंत का तर्क और ईडी के साक्ष्य के बीच में कौन हाईकोर्ट में भारी पड़ता है. हेमंत की ओर से प्रख्यात वकील कपिल सिब्ब्ल अपनी दलील रखने जा रहे हैं, हालांकि अभी यह तय नहीं है कि इस मामले में ईडी की ओर से उसका पक्ष कौन रखेगा. लेकिन जिस प्रकार अपनी गिरफ्तारी के पहले पूर्व सीएम हेमंत ने वायर के लिए साक्षात्कार दिया, और इस साक्षात्कार को वायर की ओर से खुद कपिल सिब्बल ने लिया, उसके बाद यह मानने का पर्याप्त कारण है कि हेमंत को गिरफ्तारी के लिए तैयार होने की सलाह कपिल सिब्बल की ओर से ही दी गयी होगी. यानी जब तमाम मीडिया चैनल इस बात का दावा कर रहे थें कि झारखंड के सीएम पिछले 70 घटों से गायब है, दरअसल उस वक्त हेमंत कपिल सिब्बल के साथ मिलकर ईडी के सवालों का काट ढ़ूढ़ रहे थें, और फिर वहां से आते ही ईडी के सामने पेश भी हुई और अपना इस्तीफा भी सौंप दिया. वह चाहते तो सजा होने तक अपने इस्तीफे से इंकार कर पूरे राज्य प्रशासन जेल से भी चला सकते थें, क्योंकि कथित जमीन घोटाले में ईडी की ओर से अपनी गिरप्तारी के बाद भी मनीष सिसोदिया करीबन तीन महीनों तक मंत्री बने रहें. इस हालत में हेमंत के लिए सीएम बने रहने का रास्ता साफ था, बावजूद इसके उन्होंने अपना इस्तीफा दिया.
हाईकोर्ट के फैसले के बाद खुला है सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प
तो इसके पीछे भी कानूनी जानकारों की एक रणनीति होगी, इस इस्तीफे के साथ ही कोई सियासी मैसेज देने की कोशिश भी होगी, अब देखना होगा कि 27 फरवरी को झारखंड हाईकोर्ट इस मामले में क्या फैसला सुनाती है, और यदि यह फैसला हेमंत के विपरीत आता है, तो क्या हेमंत एक बार फिर से सर्वोच्च अदालत का रुख करते हैं. खैर यह तो हुई कानूनी मोर्चेबंदी. लेकिन यहां ध्यान रखने की जरुरत है कि आरोप लगाने और साबित करने में ईडी का ट्रैक रिकार्ड क्या है? आपको यह जानकर अचरच हो सकता है कि इस मामले में ईडी का रिकार्ड बेहद खराब है. आरोप लगाने के बाद वह सजा दिलाने के मामले में बेहद कमजोर है, 99.05 फीसदी मामले में उसके साक्ष्य और सबूत कोर्ट में दम तोड़ जाते हैं.
17 साल में 5422 मामले दर्ज और सजा महज 25 को
दरअसल 2005 में अपने अस्तित्व में आने के इन 17 सालों में ईडी के द्वारा अब तक कुल 5,422 मामले दर्ज किये गये हैं. जबकि आश्यर्जनक रुप से सजा महज 25 लोगों को मिली है, इस प्रकार ईडी का सक्सेस रेट महज 0.46 फीसदी है. इस हालत में ईडी हेमंत के खिलाफ अपना मजबूत साक्ष्य प्रस्तूत करेगी, इसको लेकर भी कई सवाल है. क्योंकि आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि आरोप लगाने और उस आरोप को कोर्ट में साबित करने में ईडी का रिकोर्ड बेहद खराब है, और यह खराब क्यों है, इसके लेकर विपक्षी पार्टियों के अपने तर्क है, यदि हम उन तर्कों में नहीं भी जाये तो भी इतने कमजोर आधार किसी को आरोपी की श्रेणी में खड़ा कर देना कई गंभीर सवाल खड़ा करता है.
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