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रांची में बन्ना गुप्ता और संजय सेठ के बीच मुकाबले के आसार, खिलेगा कमल या पंजे का होगा जोर

रांची में बन्ना गुप्ता और संजय सेठ के बीच मुकाबले के आसार, खिलेगा कमल या पंजे का होगा जोर

Ranchi-कल कांग्रेस कार्यालय दिल्ली में घंटों चली मैराथल बैठक के बावजूद भी झारखंड की सीटों पर अंतिम मुहर नहीं लग सकी. बताया जाता है कि प्रदेश स्तर से फीडबैक लेने के बाद सब कुछ मल्लिकार्जून खड़गे पर छोड़ दिया गया, अब मल्लिकार्जून खड़गे सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ इस गुत्थी को सुलझायेंगे. लेकिन जो खबरें निकल कर आ रही है, उसके अनुसार रांची के सियासी अखाड़े में जमशेदपुर विधायक बन्ना गुप्ता की इंट्री होने तय है और इस बार भाजपा के संजय सेठ के मुकाबले कांग्रेस की ओर से बन्ना गुप्ता ताल ठोकते नजर आयेंगे. हालांकि जब तक अंतिम फैसला नहीं हो जाता, कुछ भी दावे के साथ नहीं कहा जा सकता, बावजूद इसके लोगों की दिलचस्पी इसमें बनने लगी है कि इस मुकाबले का सियासी परिणाम क्या होगा?

क्या संजय सेठ की दूसरी पारे पर विराम लगा पायेंगे बन्ना

क्या बन्ना गुप्ता संजय सेठ की दूसरी पारी को रोकने में कामयाब होंगे, या संजय सेठ एक बार फिर से दिल्ली जाने में कामयाब होंगे. यह सवाल इसलिए भी खड़ा हो रहा है, क्योंकि इसके पहले दो बार सांसद रहे सुबोधकांत या पांच बार कमल खिला चुके रामटहल चौधरी का पंजे की सवारी पर रांची के अखाड़े से उतरने की चर्चा थी. दावा किया जाता है कि टिकट के आश्वासन के बाद ही रामटहल चौधरी ने कमल की सवारी करने का फैसला किया था, और रामटहल चौधरी को भाजपा में शामिल करवाने में सुबोधकांत की बड़ी भूमिका थी, रामटहल चौधरी की इंट्री के बाद यह मान लिया गया था कि अब संजय सेठ के मुलाबले रामटहल चौधरी ही कांग्रेस का उम्मीदवार होंगे, लेकिन रामटहल चौधरी को कांग्रेस में इंट्री करवाने के बाद भी सुबोधकांत सहाय की सियासी चाहतों पर विराम नहीं लगा और वह एक बार से सियासी अखाड़े में उतरने का दम-खम दिखलाने लगे. हालांकि उनका यह दम-खम अपने लिए नहीं होकर अपनी बिटीया के लिए था, लेकिन इस सियासी चाहत को कांग्रेस ने ठुकरा दिया, लेकिन सुबोधकांत की इस हसरत में उनकी बिटिया की राह भले ही नहीं खुली लेकिन रामटहल चौधरी का पत्ता जरुर साफ हो गया और कमल की सवारी करने के बावजूद उनके हिस्से सिर्फ मायुसी हाथ आयी. पार्टी ने बन्ना गुप्ता को प्रत्याशी बनाने का मन बना लिया.

वैश्य समाज के मतदाताओं में सेंधमारी की रणनीति

अब सवाल खड़ा होता है कि पार्टी ने बन्ना गुप्ता के चेहरे को सामने रखकर आखिर किस सामाजिक समीकरण को साधने की कोशिश की है, तो यहां बता दें कि बन्ना गुप्ता इसके पहले तक धनबाद से भी जोर लगा रहे थें, लेकिन इनके घोर सियासी प्रतिद्वन्धी रहे सरयू की रूचि भी धनबाद सीट पर थी, और वह अपनी ताल ठोंकते नजर आ रहे थें, हालांकि सरयू राय को भी निराशा भी हाथ लगी, लेकिन इस बीच पार्टी का एक खेमा बन्ना गुप्ता पर अखाड़े में उतारने का मन बनाने लगा. दरअसल कांग्रेस की रणनीति बन्ना गुप्ता को सामने रख कर भाजपा के कोर वोटर माने जाते रहे वैश्य समाज के मतदाताओं में सेंधमारी करने की है.

कुर्मी जाति की नाराजगी पड़ सकती है भारी

यहां याद रहे कि रांची संसदीय सीट पर शहरी क्षेत्रों में वैश्य जाति की एक बड़ी आबादी है, लेकिन इस रणनीति का खतरा यह है कि कांग्रेस को कुर्मी वोटरों की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है, खासकर तब, जब रामटहल चौधरी को टिकट का आश्वासन देकर पार्टी में शामिल करवाया गया था, यदि कुर्मी जाति के बीच यह संदेश चला गया कि कांग्रेस ने रामटहल चौधरी के साथ वादाखिलाफी किया है, तो उसे इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है, हालांकि यह इस बात पर  भी निर्भर करता है कि बन्ना गुप्ता को टिकट देने से पहले कांग्रेस राम टहल चौधऱी की आहत भावनाओं को किस तरीके से हैंडल करती है, यदि सब कुछ सौहार्दपूर्ण वातावरण में होता है, तब तो बात बन सकती है लेकिन यदि सब कुछ एक तरफा होता नजर आया, तो बात बिगड़ भी सकती है.

तीन लाख मतों से संजय सेठ ने दर्ज की थी जीत

वैसे भी रांची संसदीय सीट पर जो पकड़ रामटहल चौधरी या सुबोधकांत की है, उस तुलना में बन्ना गुप्ता एक बाहरी चेहरा होगें, जिनके पहली चुनौती रांची में अपने चेहरे को स्थापित करने की होगी, यह संकट राम टहल चौधरी या सुबोधकांत के साथ नहीं था, लेकिन एक सत्य यह भी है कि चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाता है, चेहरा कोई भी हो, कई बार पार्टी के कार्यकर्ता जीत में अपना खून-पसीना बहाते नजर आते हैं, लेकिन सवाल यह भी है कि रांची में कांग्रेस के समर्पित कार्यकर्ताओं की कितनी बड़ी फौज है, राम टहल चौधरी के साथ तो कुर्मी जाति के युवा प्रचार-प्रसार में खड़ा हो सकते हैं, कुछ हद तक यही स्थिति सुबोधकांत के साथ भी थी, तमाम विपरित परिस्थितियों के बावजूद भी सुबोधकांत सहाय का रांची में एक पकड़ तो जरुर है, इस हालत में यह चुनौती मुश्किल नजर आती है, खासकर तब जब पिछले लोकसभा चुनाव में सुबोधकांत और संजय सेठ के बीच जीत हार का अंतर करीबन तीन लाख मतों का था, क्या बन्ना गुप्ता की इंट्री के बाद यह खाय़ी पटने वाली है, इसका जवाब फिलहाल मुश्किल नजर आता है, देखना होगा कि बन्ना गुप्ता इस खाई को कितना पाट पाते हैं.  

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Published at:16 Apr 2024 02:06 PM (IST)
Tags:Banna Gupta Sanjay SethRanchi Loksabha contest ranchi newsranchiranchi lok sabhaloksabha election 2024ranchi loksabha seatranchi lok sabha seat bjploksabha candidateloksabha electionranchi lok sabha bjp candidateranchi lok sabha seatranchi lok sabha newsranchi lok sabha chunavranchi loksabhasanjay seth ranchi lok sabhasanjay seth ranchiranchi loksabha constituencyBanna Gupta will be Congress candidate in Ranchi Lok SabhaContest between BJP's Sanjay Seth and Congress's Banna Gupta in Ranchi Ram Tahal Chaudhary's displeasure may weigh heavily on CongressRam Tahal ChaudharySuboth Kant cleared from RanchiSuboth Kant Suboth Kant Sahay
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