Ranchi: जैसे-जैसे चुनावी सरगर्मी तेज हो रही है, आम लोगों के साथ ही विश्वविद्यालय शिक्षकों पर भी इसकी खुमारी चढ़ती दिखलायी दे रही है और उसकी एक बानगी है, राजनीति शास्त्र के छात्रों से कोल्हान यूनिवर्सिटी का एक सवाल, हालांकि यह सवाल लघु उत्तरीय है, लेकिन इसकी मारक क्षमता बेहद घातक है और यही कारण है कि इस सवाल पर पक्ष-विपक्ष में बहस तेज होती नजर आ रही है.
यहां बता दें कि कोल्हान कोल्हान यूनिवर्सिटी में इन दिनों स्नातक सेकेंड सेमेस्टर की परीक्षा का संचालन किया जा रहा है, जहां राजनीति शास्त्र के छात्रों के सामने यह सवाल दागा गया है कि “गोदी मीडिया क्या है”. जैसे ही छात्रों के सामने यह सवाल आया, उनके अंदर एक उलझन पसरती दिखी. उलझन इस सवाल का जवाब को लेकर नहीं था, उलझन तो इस बात को लेकर थी कि इस सवाल के साथ उनके मन में जो तस्वीर बन रही है, यदि उसे शब्दों में बयां कर दिया गया तो इस सवाल की जांच करने वाले परीक्षक पर इसका क्या असर होगा? क्योंकि इस सवाल के साथ एक सियासत भी जुड़ी थी, जिसकी अलग-अलग व्याख्या की जा सकती है, और किसका जवाब कितना सही है, यह बहुत कुछ परीक्षक की मनोदशा और उसकी सियासी सोच पर भी निर्भर करता है. हालांकि विवाद बढ़ता देख परीक्षा नियंत्रक अजय चौधरी दावा कर रहे हैं कि यह महज अफवाह है, यह सवाल पूछा ही नहीं गया है, दूसरी ओर डीन एकेडमिक डॉ राजेंद्र भारती संबंधित विभाग से बात कर जवाब देने की बात कर रहे हैं, जब उनसे पूछा गया कि क्या यह पाठ्यक्रम का हिस्सा है, तो उनका जवाब था कि पाठ्यक्रम का हिस्सा तो अर्बन नक्सलिज्म भी नहीं है, लेकिन सवाल तो पूछे जाते हैं. बावजूद इसके उनके द्वारा मामले में जांच का आश्वासन दिया जा रहा है.
क्या हो सकता है इस सवाल का जवाब
यहां बता दें भले ही किसी परीक्षा में यह सवाल पहली बार पूछा गया हो, लेकिन सोशल मीडिया से लेकर आम लोगों के बीच यह टर्मोलॉजी काफी पॉपुलर है. जिसका प्रयोग उन मीडिया घरानों के लिए किया जाता है, जिनके द्वारा हर सवाल सत्ताधारी दल की सुविधा के हिसाब से पूछा जाता है. यानि उनके सवाल और कार्यक्रमों में सत्ताधारी दल का एजेंडा छूपा होता है. जैसे की कमर तोड़ महंगाई के बीच मंदिर-मस्जिद से जुड़ा सवाल पूछना. देश में बेरोजगारी पर सवाल नहीं खड़े कर अपने दर्शकों को पाकिस्तान में टमाटर का भाव बताना और इसके साथ ही यह स्थापित करना है कि अमूक चेहरा ही देश में विकास की गारंटी है, विपक्ष का चेहरा तो पप्पू है, यानि जो काम किसी खास सियासी दल का होना चाहिए था, उस काम को उस सियासी दल के द्वारा नहीं किया जाकर मीडिया के द्वारा किया जाना. कुल मिलाकर जब मीडिया अपने दायित्वों के निर्वहन में स्वतंत्र नहीं होकर एक साख सियासी दल की नीतियों को प्रचार प्रसार करता नजर आता है, तो उसे गोदी मीडिया कहा जाता है.यही कारण है कि यह एक विवादित विषय है. क्योंकि कई बार इन मीडिया धरानों के द्वारा यह स्थापित करने की कोशिश की जाती है कि उनकी कोशिश महज एक निर्वाचित सत्ता के साथ सहयोग करने की है. इसे राष्ट्रसेवा की रोशनी में भी देखा जा सकता है.
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