Ranchi- हेमंत सोरेन की जिस गिरफ्तारी को भाजपा 2024 में अपनी चुनावी बैतरणी पार करने का हथियार मान रही थी, अब वही हथियार उसके गले की हड्डी बनती नजर आने लगी है. अपनी गिरफ्तारी को हेमंत जिस तरीके से झारखंडी अस्मिता पर हमला और आदिवासी-मूलवासियों के सपनों पर प्रहार के रुप में परोसने की राह पर निकल पड़े हैं, यदि इसी रफ्तार के काफिला बढ़ता रहा तो 2024 के जंगे-मैदान में भाजपा के सामने विकट स्थिति आने वाली है. 14 की 14 लोकसभा सीटों पर विजय पताका फहराने का सपना एक बारगी धूल-धूसरित होता नजर आ रहा है और इसकी झलक कल विधान सभा में भी देखने को मिला.
विधान सभा के फ्लोर पर हेमंत का अब तक का सबसे प्रभावी भाषण
हेमंत सोरेन का विधान सभा में दिया गया यह भाषण आज पूरे देश में सुर्खियों में है, विश्लेषकों का मानना है कि यह शायद हेमंत की जिंदगी का सबसे प्रभावी और तथ्यपरक भाषण था, जिसमें तथ्यों के साथ भाजपा के सारे आरोपों की चुन-चुन कर धज्जियां उड़ाई गयी थी. जिस तरीके से यह चुनौती पेश की गयी कि यदि किसी भुंइहरी जमीन पर कब्जा किया गया है, जमीन के नेचर के साथ छेड़छाड़ कर अपने नाम करवाया गया है, उसका पट्टा तैयार किया है, यदि किसी के पास कोई भी सबूत या साक्ष्य हो तो वह राजनीति तो क्या झारखंड को भी अलविदा कहने को तैयार है, यह चुनौती कोई सामान्य चुनौती नहीं थी, लेकिन भ्रष्टाचार का राग अलापती रही भाजपा सदन के पटल पर हेमंत की इस चुनौती के समकक्ष अपनी बात रखने को भी तैयार नहीं दिखी. नेता विरोध दल अमर बाउरी ने मोर्चा जरुर खोला, लेकिन उनके निशाने पर पूर्व सीएम हेमंत के बजाय कांग्रेसी सरकारों का कार्यकाल था, इस बात का आरोप था कि कांग्रेस शासन काल में देश के अनगिनत राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया गया, लेकिन सवाल तो यहां हेमंत सोरेन के कथित जमीन घोटाले का था
झामुमो का दावा जमीन तो आज भी उसके पुराने रैयत के पास है
इधर झामुमो का दावा है कि जिस जमीन को लेकर पूरा बवाल काटा गया, हेमंत सोरेन को जेल भेजा गया, वह तो आज भी अपने मूल रैयत के पास है, फिर यह जमीन हेमंत के पास कैसे आयी? भाजपा को इसका साक्ष्य और दस्तावेजी सबूत पेश करना चाहिए और आज झामुमो के इस सवाल का जवाब देने की स्थिति में भाजपा दिख नहीं रही और भाजपा की यही बेबसी हेमंत का सियासी भविष्य को उज्जवल बनाता नजर आ रहा है, अपनी गिरफ्तारी को भी वह एक चुनावी हथियार के रुप में इस्तेमाल करने की राह पर निकलते दिख रहे हैं. अपनी गिरफ्तारी को वह बेहद चालाकी के साथ आदिवासी-मूलवासी समाज की अस्मिता और उसके संघर्षों से जोड़कर परोस रहे हैं.
संताल और कोल्हान के दायरे से बाहर निकल चुके हैं हेमंत
इस हालत में हेमंत को अब सिर्फ संताल और कोल्हान का नेता समझने की भूल करना भारी गफलत साबित हो सकता है. अपने चेहरे का वह विस्तार कर रहे हैं, अब वह सिर्फ आदिवासी समाज का सपना नहीं रहें, बल्कि वह खुद को आदिवासी -मूलवासी समाज का योद्धा के रुप से परोसने की सियासत कर रहे हैं. झारखंडियत की बात कर रहे हैं, झारखंडी मिट्टी का मुद्दा उठा रहे हैं, और यही वह बेचैनी है, जो सुदेश महतो जैसे भाजपा के सहयोगी को भी अपनी भाषा बदलने को मजबूर कर रहा है, विधान सभा के पटल पर भाजपा के पक्ष में मतदान कर भी सुदेश महतो बेहद चालाकी के साथ हेमंत को अपना बड़ा भाई बताने से भी नहीं चुक रहे, लगे हाथ इस बात का दावा भी ठोक रहे हैं कि हेमंत के प्रति उनके दिल में सदा सम्मान और आदर का भाव रहा है.
जयराम से लेकर सुदेश की बदलती भाषा
सियासत में यह कब होता है कि आप किसी के सरकार के विरुद्ध में अपना मत दे रहें हो, और लगे हाथ उसकी प्रशंसा भी कर रहे हों, दरअसल सुदेश महतो झारखंड की जमीन से उठती उस आवाज को सुन समझ रहें, जहां एक स्वर में उनके साथ सहानुभूति तैयार होती दिख रही है, इस घड़ी में हेमंत का विरोध करने का मतलब है कि जनभावनाओं के खिलाफ जाना, वैसे भी जिस सुदेश महतो के सियासी सफलता में आदिवासी वोटरों का बड़ा प्रभाव रहा हैं, इस उबाल के बाद उन्हे वह अपना वोट खिसकता नजर आने लगा है, दूसरी बात जिस तरीके से हेमंत आदिवासी-मूलवासी चेतना को स्वर देने की कोशिश कर रहे हैं, सुदेश महतो के सामने अपने कुर्मी-महतो मतदाताओं को भी साध बांधे रखने की चुनौती है, और यही वह कारण है कि वह हेमंत के प्रति नरम रुख अख्तियार कर इस गिरफ्तारी का सारा पाप भाजपा के माथे सौंपने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. ठीक यही हालत झारखंड की राजनीति में घूमकेतु की तरह सामने आये जयराम महतो की भी है, हेमंत की गिरफ्तारी के बाद उमड़ी सहानुभूति के लहर को भांप कर जयराम ने भी इसे झारखंडी अस्मिता पर हमला बताने में देरी नहीं की. यानी साफ है कि अब हेमंत की गिरफ्तारी का पाप सिर्फ भाजपा को ढोना है, कोई भी उसके साथ कंधा से कंधा मिलाकर चलने को तैयार नहीं है, भले ही वह सरयू राय हो या अमित कुमार यादव जैसे निर्दलीय विधायक. अब देखना होगा कि भाजपा इस कथित पाप की गठरी को कब तक अपने माथे पर लेकर घूमती है या सारा दोष एजेंसियों के माथे थोप कर अपना दामन साफ करने की कोशिश करती है.