(TNP DESK)- पांच राज्यों का सियासी दंगल अब लगभग समाप्ति होने की ओर है. कल मटपेटियों में बंद सियासी दल और उम्मीदवारों की किस्मत सबके सामने होगी. लेकिन इसके साथ ही 2024 के महासंग्राम की शुरुआत भी हो जायेगी. हालांकि, पांच राज्यों में जारी इस सियासी दंगल के बीच भी सियासी दलों के द्वारा अपने-अपने मोहरों की तलाश जारी थी, अपने-अपने प्यादों की खोज की जा रही थी, सामाजिक समीकरणों को तलाशा जा रहा था, और उसके हिसाब से मैदान सजाने की रणनीति भी बनायी जा रही थी. लेकिन कल जैसे पांच राज्यों का चुनाव परिणाम सामने आयेगा, हार जीत के दावे से अलग निकल सारे सियासी दल अगले संग्राम की ओर निकल पड़ेंगे. लेकिन यहां सवाल गोड्डा लोकसभा क्षेत्र का है, गोड्डा संसदीय सीट पर लगातार तीन बार विजय पताका फहरा कर निशिकांत दुबे ने अपनी मजबूत सियासी ताकत का प्रर्दशन किया है. और इस बार भी उनकी उम्मीदवारी पक्की मानी जा रही है. इस हालत में बड़ा सवाल यह है कि निशिकांत के सामने इंडिया गठबंधन का चेहरा कौन होगा.
प्रदीप यादव की दावेदारी, लेकिन यौन शोषण मामले में उछल रहा है नाम
जैसे ही चेहरा कौन होगा, यह सवाल उछलता है, एक साथ कई नाम सामने आते हैं. इन नामों में गोड्डा से पूर्व भाजपा सांसद प्रदीप यादव का भी है, जो फिलहाल कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं. पोड़याहाट विधान सभा क्षेत्र जो कि गोड्डा संसदीय सीट का ही हिस्सा है, से प्रदीप यादव चार-चार बार के विधायक ( 2005, 2009,2014, 2019) रहे हैं, और इसके साथ ही वर्ष 2002 में कमल छाप की सवारी कर लोकसभा की यात्रा करने में भी सफल रहे हैं. लेकिन भाजपा का दामन छोड़ने के बाद प्रदीप यादव को आज भी कामयाबी का इंतजार है. हालांकि इस बीच उन्होंने झारखंड विकास मोर्चा के कंधी छाप पर वर्ष 2014 और 2019 में अपना किस्मत आजमाया था. बावजूद इसके सफलता नहीं मिली, लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि वर्ष 2019 में उस मोदी लहर में भी प्रदीप यादव करीबन चाल लाख वोट लाने में सफल रहे थें. इस बीच खबर यह भी है कि वह यौन शोषण के एक पुराने मामले में सुनवाई का सामना कर रहे हैं. दुमका कोर्ट में मामले की सुनवाई चल रही है और यदि उस मामले में उनके खिलाफ कोई फैसला आता है तो यह प्रदीप यादव के सियासी करियर से लिए बड़ा झटका माना जायेगा.
फुरकान अंसारी की दावेदारी पर बढ़ती उम्र साबित हो सकती है बाधा
लेकिन, इसके साथ ही एक दूसरे नाम पर भी चर्चा होती है वह हैं गोड्डा से पूर्व सांसद और कांग्रेस का कद्दावर अल्पसंख्यक चेहरा माने जाने वाले फुरकान अंसारी का. वर्ष 2004 में फुरकान पंजे की सवारी कर लोकसभा की यात्रा करने में सफल रहे थें, हालांकि वर्ष 2014 में कांग्रेस ने उन्हे एक और मौका दिया था, और तब फुरकान ने बेहद मजबूती के साथ निशिकांत का मुकाबला किया था, बावजूद इसके वह 60 हजार मतों से पीछे छुट्ट गये थें. लेकिन उनकी बढ़ती उम्र अब एक बड़ी बाधा मानी जा रही है. इस हालत में यह सवाल खड़ा होता है कि इंडिया गठबंधन की ओर से इस संसदीय सीट के लिए सबसे मजबूत और मुफीद चेहरा कौन होगा? किस चेहरे पर दांव लगाकर इंडिया गठबंधन वर्ष 2009 से लगातार अपनी कामयाबी का झंडा बुलंद करते रहे निशिकांत को पैदल कर सकती है.
क्या कहता है सामाजिक समीकरण
इस सवाल का जवाब तलाशने से पहले हमें गोड्डा का सामाजिक समीकरण को समझना होगा. क्योंकि बगैर सामाजिक समीकरणों को साधे कोई भी सियासी दल अपनी गोटियां नहीं बिछाता. तो यहां हम याद दिला दें कि गोड्डा में करीबन ढाई लाख यादव, तीन लाख अल्पसंख्यक, दो लाख ब्राह्मण, ढाई से तीन लाख वैश्य, डेढ़ लाख के करीब आदिवासी, एक लाख के करीब भूमिहार, राजपूत, कायस्थ और शेष पचपौनियां और दलित जातियां है. इस प्रकार गोड्डा का सामाजिक समीकरण इंडिया गठबंधन के लिए एकबारगी काफी मुफीद नजर आता है, और खास कर जब पूरे देश में कांग्रेस का एक बार तेजी से उभार नजर आ रहा हैं. और माना जा रहा है कि वह पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों में छत्तीसगढ़. तेलांगना, मिजोरम के साथ ही मध्यप्रदेश और राजस्थान में से किसी एक स्टेट में भी कांग्रेस अपना झंडा बुंलद कर सकती है, इस हालत में साफ है 2024 के महासंग्राम में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का जोश अपने उफान पर रहने वाला है, इसके विपरीत भाजपा कार्यकर्ताओं के सामने अपनी जमीन बचाने की कठीन चुनौती रहने वाली है.
महागामा विधायक दीपिका पांडेय का जलवा
दीपिका पांडेय की दावेदारी को रखने के पहले यहां साफ कर दें कि निशिकांत और दीपिका के बीच एक प्रकार का शीत युद्ध हमेशा जारी रहता है. और दावा किया जाता है कि इसी वाक्य युद्ध के दौरान निशिकांत ने दीपिका पांडेय को नगर वधू करार दिया था. हालांकि राजनीति की विद्रूपता यह है कि इसी नगर वधू वाले निशिकांत को महिला आरक्षण पर बहस के दौरान लोकसभा में प्रथम वक्ता बनाया गया. लेकिन हम यहां इस विवाद से किनारा कर दीपिका की दावेदारी को समझने की कोशिश करते हैं. तो दीपिका खुद तो ब्राह्मण जाति से आती है, लेकिन उनकी शादी कुर्मी घराने में हुई है. इस प्रकार दीपिका तमाम पिछड़ी जातियों को अपनी ओर आकर्षित करने का सामर्थ्य रखती है, या उनके चेहरे को सामने रख कर एक साथ पिछड़ी जातियों के साथ ही करीबन ढाई लाख ब्राह्मण मतदाताओं को साधा जा सकता है. और खास बात यह है कि निशिकांत के विपरीत गोड्डा में दीपिका की पहचान एक सौम्य और मृदूभाषी राजनेता की है. जो बगैर किसी सियासी विवाद का शिकार हुए लगातार लोगों के साथ अपना संवाद बनाये रखती है. यहां यह भी याद दिला दें कि दीपिका की सियासी जीवन की शुरुआत यूथ कांग्रेस से हुई थी, लेकिन इन तमाम बातों से अलग एक और बात जो दीपिका के पक्ष में जाती है वह उनका खांटी झारखंडी होना, जबकि इसके विपरीत निशिकांत पर बाहरी होने का आरोप लगता रहा है, हालांकि इंडिया गठबंधन अंतिम समय में किस चेहरे को चुनावी अखाड़े में उतारता है, यह देखना की बात होगी. लेकिन इतना साफ है कि दीपिका एक सशक्त उम्मीदवार हो सकती हैं.
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