Ranchi-गिरीडीह, डुमरी (जिला गिरिडीह) गोमिया, बेरमो (जिला-बोकारो) टुंडी और बाधमारा (जिला-धनबाद) विधान सभा को अपने आप में समेटे गिरिडीह लोकसभा सीट का इतिहास खंगालें तो अब तक इस सीट से कांग्रेस पांच बार (1952,1967,1971,1980 और1984) अपने पंजे का दम दिखा चुकी है तो इससे साथ ही भारतीय जनता पार्टी भी पांच बार(,1996,1998, 1999,2009,2014) कमल खिलाने में कामयाब रही है. इसके विपरीत झाममो दो बार(1991,2004) अपने तीर कमान से विरोधियों को पस्त कर चुकी है. लेकिन इस सीट पर बड़ा बदलाव तब आया जब वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा आजसू गठबंधन के तहत यह सीट आजसू के हाथ आ गयी और मोदी के उस लहर में आजसू कोटे से चन्द्रप्रकाश अपना झंडा फहराने में कामयाब रहें.
चन्द्रप्रकाश चौधरी को बदलने जाने की चर्चा
लेकिन 2024 को लेकर आजसू भाजपा अलग बिसात बिछाती नजर आने लगी है, और चर्चा इस बात की है कि इस बार यहां से भाजपा अपना उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है, जबकि आजसू को इसके बदले किसी और सीट सौंपा जा सकता है. और उसकी वजह चंद्रप्रकाश चौधरी को लेकर लोगों में नाराजगी की खबरें हैं, चर्चा यह भी है कि चंद्रप्रकाश चौधरी को इस बार आजसू हजारीबाग से मैदान में उतार सकती है, क्योंकि हजारीबाग लोकसभा सीट पर कमल की सवारी कर संसद पहुंचे पूर्व वित मंत्री यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिंह को इस बार टिकट कटने के कयास है.
पांच बार के सांसद रविन्द्र पांडे एक बार फिर से लगा रहे हैं जोर
अब इस हालत में सवाल यह खड़ा होता है कि भाजपा गिरिडीह में किस चेहरे पर अपना दांव लगायेगी, तो यहां याद रहे कि वर्ष 1996, 1998,1999, 2009 और 2014 में इस सीट पर कमल का फूल खिलाने वाले रवीन्द्र कुमार पांडे अपनी दावेदारी तेज किये हुए हैं. सवर्ण मतदाताओं में उनकी अच्छी पकड़ भी मानी जाती है, लेकिन बिहार में जातीय जनगणना का जो तूफान खड़ा हुआ है, दलित पिछड़ों की हिस्सेदारी भागीदारी का जो आंधी सामने आयी है, इसके साथ ही जिस प्रकार जयराम जिस प्रकार से इस इलाके में बाहरी भीतरी विवाद को गर्म किये हैं. उस हालत में क्या भाजपा रविन्द्र कुमार पांडेय पर दांव लगाने का जोखिम उठायेगी, यह बड़ा सवाल है. और खास कर तब जब अब मोदी की आंधी मंद पड़ती दिखलायी पड़ने लगी है, क्या उस हालत में भी पीएम मोदी अपने नाम के बूते रविन्द्र कुमार पांडेय को जीत दिलवाने में सफल होंगे? यह बड़ा सवाल है.
रॉबिन हुड की छवि रखने वाले बाधमारा विधायक ढुल्लू महतो भी लगा रहें है जोर
और यही कारण है कि बाधमारा विधायक ढुल्लू महतो की चर्चा भी जोरों पर है, उनके पक्ष में सबसे बड़ी बात यह है कि एक तो वह स्थानीय विधायक है, दूसरी बात की पिछड़ी जाति से हैं, खांटी झारखंडी चेहरा हैं, और इसके साथ ही स्थानीय लोगों में उनकी छवि रॉबिन हुड की है, जो हर सुख-दुख में अपने लोगों के साथ खड़ा नजर आता है, लेकिन इसके साथ ही एक और नाम भी चर्चा में है, वह नाम पर बोकारो से भाजपा विधायक बिरंची नारायण का.
बोकारो विधायक भाजपा विधायक बिरंची नारायण भी एक मजबूत चेहरा
यह भी वैश्य जाति से आते हैं, और खांटी झारखंडी की श्रेणी में आते हैं. अब भाजपा किस पर अपना दांव लगाती है, फिलहाल इसका जवाब तो किसी के पास नहीं है, लेकिन जिस तरीके इस पूरे इलाके में टाइगर जयराम भीतरी बाहरी का सवाल खड़ा कर आदिवासी मूलवासी मतों का धुर्वीकरण को तेज किये हुए हैं, और बड़ी बात यह है कि अंदरखाने कई भाजपा विधायक भी जयराम के इस बाहरी भीतरी के संघर्ष के साथ खड़े नजर आते हैं, हालांकि सार्वजनिक रुप से वह पार्टी लाइन के साथ खड़े नजर आते हैं. इस हालत यदि इस बार रविन्द्र कुमार पांडेय को इंतजार करना पड़े तो कोई आश्यर्च नहीं होगा.
इंडिया गठबंधन से मथुरा महतो की चर्चा तेज
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इंडिया गठबंधन का यहां से चेहरा कौन होगा. तो इसमें सबसे ज्यादा चर्चा में जो नाम है, वह है टूंडी से झाममो विधायक और मजबूत आदिवासी-मूलवासी चेहरा मथुरा महतो का, हालांकि एक खबर यह भी है कि रविन्द्र कुमार पांडेय की नजर झामुमो खेमे पर भी है, और दावा किया जा रहा है कि रविन्द्र कुमार पांडेय भाजपा के साथ ही झामुमो से भी सम्पर्क साधे हुए है, लेकिन यह महज चर्चा है, क्योंकि बाहरी भीतरी की इस आंधी में रविन्द्र कुमार पांडेय पर दांव लगाने का फैसला झामुमो के लिए भी मुश्किल हो सकता है. और खास कर तब गिरिडीह लोकसभा सीट पर आदिवासी-मूलवासी मतदातों की बहुलता हो, सबसे बड़ी आबादी दलित, पिछड़ों, आदिवासी मतदाताओं की हो.
क्या है सामाजिक समीकरण
ध्यान रहे कि एक अनुमान के अनुसार गिरिडीह संसदीय सीट में अल्पसंख्यक 17 फीसदी, आदिवासी-15 फीसदी, दलित-11 फीसदी और इसके साथ ही बड़ी संख्या में महतो और दूसरी पिछड़ी जातियो की आबादी है. इस हालत में बहुत संभव है कि इस बार झामुमो अपने सबसे कद्दावर नेता मथुरा प्रसाद को ही मैदान में उतार कर भाजपा के सामने चुनौती पेश करें.
इन तमाम नामों की बीच गिरिडीह में बज रहा है टाइगर जयराम का डंका
लेकिन इन तमाम नामों में अलग एक और नाम है, जिसकी चर्चा आज के दिन गिरिडीह संसदीय सीट में आदिवासी-मूलवासी मतदाताओं के बीच सबसे अधिक है, वह नाम है भाषा आन्दोलन से सामने आये टाइगर जयराम का. यह वह नाम है, जिसकी एक आवाज से हजारों हजार की भीड़ खुद दौड़ी चली आती है, कोई तामझाम नहीं, भीड़ जुटाने का कोई खर्च नहीं, बस, घोड़ा और कोई लाव लस्कर नहीं, टाइगर जयराम की आवाज आयी नहीं की भीड़ तो खुद व खुद दौड़ी चली आती है. देखना होगा कि झारखंडी अस्मिता की जिस पहचान को लेकर टाइगर जयराम सियासी अखाड़े में इंट्री मारने की तैयारी में हैं, उसका अंजाम क्या होता है, लेकिन इतना तो साफ है इन सभी स्थापित सियासी दलों से आज भी उनकी लोकप्रियता लोगों के सिर पर चढ़ कर बोल रहा है.
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