शादी की अठारहवीं सालगिरह और सीलन भरे कमरे में कैद दिशोम गुरु का “संघर्ष”, बिखर गयी “कल्पना” की उड़ान या फिर सामने खड़ा है उलगुलान

यदि वाकई में सब कुछ इसी तरह जमीन तक उतरता चला गया तो क्या कल्पना सोरेन आज जिस उलगुलान का आह्वान कर रही है, 2024 का लोकसभा का चुनाव और उसके बाद का विधान सभा का चुनाव में उसका नजारा सामने होगा. युवाओं के बीच हेमंत की बढ़ती लोकप्रियता और दीवानगी तो इसी ओर इशारा कर रही है, लेकिन यहां यह भी देखना होगा कि इस आग को कैसे बचाये रखा जाता है, कल्पना सोरेन किस सीमा तक इस आग का विस्तार देती है, क्योंकि अभी तो यह आग सोशल मीडिया से  निकल कर खेत खलिहानों तक पहुंच रही है, कल यदि खुद कल्पना उन खेत खलिहानों और पगडंडियों तक पहुंच गयी तो उसकी कल्पना की जा सकती है.

शादी की अठारहवीं सालगिरह और सीलन भरे कमरे में कैद दिशोम गुरु का “संघर्ष”, बिखर गयी “कल्पना” की उड़ान या फिर सामने खड़ा है उलगुलान