Ranchi-झारखंड विधान सभा के 23वें वर्षगाठ पर जब विधान सभा अध्यक्ष रवीन्द्र नाथ महतो ने अपने संघर्ष की कहानी को बयां करते हुए यह दावा किया कि एक दौर वह भी था, जब हम घरों में जाकर भिक्षाटन करते थें, तब वहां मौजूद लोगों के लिए इस बात पर विश्वास करना उतना सहज नहीं था, जिस सहजता के साथ रवीन्द्र नाथ महतो इसे बयां कर गयें. क्या वाकई में यह एक हकीकत बयानी है, या इसके पीछे कुछ और कहानी है, सारे लोगों इस पहेली में उलझते नजर आने लगे.
खामोशी की इस चादर को अगले ही पल रवीन्द्र नाथ महतो ने तोड़ा इस बीच रवीन्द्र नाथ महतो ने एक क्षण की चुप्पी साधी, और जब एक बार फिर से बोलना शुरु किया तो सारी निगाहें उनकी ओर मुड़ चुकी थी. लोग उनकी आगे की बात को सुनने को आतुर थें, विधान सभा के अंदर खामोशी की चादर पसर चुकी थी, हर शख्स आगे की कहानी सुनने को बेचैन था. उसके बाद रवीन्द्र नाथ महतो ने इस भिक्षाटन का पूरा श्रेय दिशोम गुरु शिबू सोरेन को देते कहा कि दरअसल यह हमारे सामाजिक-सियासी जीवन का एक प्रशिक्षण था, गुरुजी ने अपने सारे कार्यकर्ताओं को घर घर भिक्षाटन कर एक मुट्ठी चावल और एक रुपया मांगने का आदेश दिया था, तब हम यह समझ नहीं पा रहे थें कि गुरुजी हमसे यह सब क्यों करवा रहे हैं, लेकिन गुरुजी का आदेश था, और हम सब भिक्षाटन के लिए निकल पड़े थें. सप्ताह में करीबन दो दिन हमारा इसी काम में लगता.
गुरुजी की बड़ी प्लानिंग का हिस्सा था भिक्षाटन का फैसला
वह तो लम्बे अर्से के बाद यह मालूम हुआ कि इसके पीछे भी गुरुजी की एक प्लानिंग थी, दरअसल वह हम सबों से भिक्षाटन करवा कर हमारे अंदर के गुरुर को दफन करना चाहते थें. उन्हे इस बात का विश्वास था कि आज नहीं तो कल ये लोग सियासत की दुनिया में कदम रखेंगे, और यदि आज इनके अंदर के अंहकार को नहीं खत्म नहीं किया तो कल इनका यही अंहकार झारखंड के विकास में बाधक बनेगा. हममें राजनेता होने का अंहकार पलता रहेगा. हम उस जनता को भूल जायेंगे, उस संघर्ष को पीछे छोड़ देंगे जिसके बूते हम यहां तक पहुंचे हैं. इसके साथ ही इस प्रशिक्षण के पीछे की एक वजह यह भी थी कि इस बहाने हम एक मुट्ठी चावल और एक रुपये के संघर्ष को समझ सकेंगे, जिस जमात को हम लोग निकलें हैं, उस सामाजिक जमात के लिए एक रुपया और एक मुट्ठी चावल का दान भी महादान था, इस दान के लिए भी उन्हे अपना पेट काटना पड़ता था. गुरुजी के उसी सियासी प्रशिक्षण के कारण आज भी हम अपने आप को जनता का नौकर समझते हैं, सुबह उठते जागते वह भिक्षाटन हमें याद दिलाता रहता है कि तुम जो कुछ भी हो, उसी एक मुट्ठी चावल और एक रुपया की बदौलत हो.
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