Patna- नीतीश सरकार के आरक्षण विस्तार के फैसले से जहां पिछड़ी जातियों सहित एसी-एसटी समूहों में जश्न का माहौल है, वहीं सामान्य जाति के युवाओं के लिए अब सरकारी नौकरी एक सपना बनता दिखने लगा है. उनके बीच यह धारणा बलवती होती दिख रही है कि यदि अपना भविष्य संवाना है, तो उन्हे बिहार से बाहर निकल कर निजी कंपनियों की राह पकड़नी होगी. या फिर केन्द्र सरकार की नौकरियों की ओर रुख करना होगा, लेकिन मुश्किल यह है केन्द्र सरकार की ओर से पहले से ही नौकरियों का टोटा लगा हुआ है, केन्द्रीय संस्थानों में नियुक्तियां निकल नहीं रही है, हालत तो यह है कि वहां पहले से ही छंटनी की तलवार लटक रही है.
केन्द्र सरकार के द्वारा सबसे अधिक नौकरियां रेलवे की ओर से दिया जाता है, लाखों युवक हर साल रेलवे के विज्ञापन का इंतजार करते हैं, उसकी तैयारी के लिए दिन रात एक करते हैं, अपना खून पसीना बहाते हैं, लेकिन पिछले कई वर्षों से नियुक्तियों निकल नहीं रही. दूसरी तरफ रेलवे मानव संसाधन की कमी से हलकान है, दावा किया जाता है कि कर्मियों से ओवर टाइम काम लेकर इस मानव संसाधन की क्षति पूर्ति की जा रही है. और इस ओवर टाइम के कारण उनके अंदर बेचैनी पैदा हो रही है. अब सरकारी नौकरी के इस संकट काल में सामान्य जाति के युवाओं का भविष्य क्या होगा, यह एक गंभीर सवाल है. और उससे भी बड़ी मुश्किल यह है जिस जातीय जनगणना के सहारे पिछड़ों के लिए आरक्षण विस्तार का रास्ता साफ किया गया है, अब यह मांग बिहार से बाहर निकल दूसरे हिन्दी भाषा भाषी राज्यों में भी तेजी से जोर पकड़ रहा है. राज्य दर राज्य इसकी मांग तेज होती नजर आ रही है.
इंदिरा साहनी फैसले से उलट भाजपा ने सामान्य जातियों को लिए 10 फीसदी आरक्षण का किया था रास्ता साफ
यहां यह भी याद रहे कि इंदिरा साहनी मामले में देश की सर्वोच्च अदालत ने आरक्षण की उपरी सीमा को 50 फीसदी तक ही रखने का दिशा निर्देश दिया था, लेकिन जैसे ही केन्द्र सरकार ने इस फैसले से आगे बढ़कर सामान्य जाति के युवाओं को आर्थिक सामाजिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला लिया, यह बंदिश टूट गयी, भाजपा अपने जिस फैसले को सामान्य जाति के मतदाताओं के पक्ष में अब तक का सबसे अहम फैसला बता रही थी, और इसके आधार पर उनका वोट बटोरनी की रणनीति पर काम कर रही थी, आखिरकार केन्द्र सरकार का वही फैसला सामान्य जाति के खिलाफ चला गया, क्योंकि अब पिछड़ों के लिए आरक्षण विस्तार को न्यायोचित बताते हुए यह दावा किया जा रहा है कि केन्द्र सरकार पहले ही इंदिरा सहनी मामले में सर्वोच्च अदालत के फैसले तोड़ चुकी है, जब यह बंदिश टूट ही गयी है तो पिछड़ों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देना अन्यायपूर्ण कैसे होगा. साफ है कि केन्द्र सरकार के उस फैसले का नुकसान आखिरकार सामान्य जाति के युवाओं को उठाना पड़ा.
इस बीच राजद जदयू इस फैसले को ऐतिहासिक बता कर पिछड़े दलित और आदिवासी मतदाताओं को गोलबंदी तेज कर चुकी है, वहीं भाजपा अब इस स्थिति में भी नहीं है कि वह इस फैसले का विरोध करे, क्योंकि जैसे ही वह इंदिरा सहनी मामले का तर्क उठायेगी, उसके सामने सामान्य जातियों को दिया जाने वाला 10 फीसदी आरक्षण का भूत सामने होगा, और इससे भी बड़ा खतरा यह है कि उसे इसके साथ ही पिछड़े दलित मतदाताओं से हाथ धोना होगा, और भाजपा यह जानती है कि यदि उसे सत्ता की सवारी करनी है तो उसे हर कीमत पर दलित पिछड़े मतदाताओं का साथ देना होगा.
यहां ध्यान रहे कि नीतीश सरकार ने जातीय जनगणना के बाद आरक्षण विस्तार को उसको अंजाम तक पहुंचा दिया है, राज्यपाल की स्वीकृति के बाद अब बिहार सरकार ने उसे गजट में प्रकाशित कर दिया, इस प्रकार आज से ही बिहार में पिछड़ी जातियों को नौकरियों सहित शिक्षण संस्थानों में 43 फीसदी का आरक्षण की शुरुआत हो गयी, जिसका सीधा असर आने वाली नियुक्तियों में देखने को मिलेगा. ध्यान रहे कि नीतीश सरकार ने जातीय जनगणना के आंकड़ों के मद्देनजर पिछड़ी जातियों को 43 फीसदी, अनुसूचित जाति को 20 और अनुसूचित जनजाति को आरक्षण देने का बिल विधान सभा से पास कर राज्यपाल के पास भेजा था, राज्यपाल की स्वीकृति के बाद अब इसे गजट का हिस्सा बना दिया गया है. इस प्रकार आरक्षण की सीमा को 75 फीसदी करने वाला बिहार देश के गिने चुने राज्यों में शामिल हो चुका है. हालांकि इसके पहले छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार ने भी आरक्षण की सीमा को 76 फीसदी करने का फैसला लिया था, भूपेश बघेल ने अनुसूचित जनजाति (ST) को 32 प्रतिशत, अनुसूचित जाति (SC) को 13 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 27 प्रतिशत और सवर्ण गरीबों को चार प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय लिया था, लेकिन बाद में कोर्ट के द्वारा इस पर रोक लगा दी गयी.
भूपेश बघेल के विपरीत नीतीश सरकार ने जातीय जनगणना के बाद आरक्षण विस्तार का लिया निर्णय
लेकिन भूपेश बधेल की विपरीत नीतीश सरकार ने आरक्षण की सीमा को बढ़ाने के पहले पूरा होम वर्क किया और जातीय जनगणना इसी का हिस्सा था, जिसके बाद सरकार के पास हर जातियों का वैज्ञानिक आंकड़ा है, माना जा रहा है कि इसके बाद नीतीश सरकार के फैसले को कोर्ट में चुनौती देना मुश्किल साबित होगा. दावा किया जाता है कि यदि भूपेश बघेल की सरकार भी नीतीश कुमार की तरह ही जातिगत सर्वेक्षण के बाद यह निर्णय लेती तो यह मामला कोर्ट में नहीं फंसता, हालांकि अब माना जा रहा है कि कई दूसरे राज्य भी नीतीश सरकार के नक्शेकदम पर चलते हुए जातीय जनगणना के बाद आरक्षण विस्तार को निर्णय ले सकते हैं, यही कारण है कि राहुल गांधी अपनी हर रैली में जातीय जनगणना के सवाल को उठाते हुए दिख रहे हैं, उनका दावा है कि जहां जहां कांग्रेस की सरकार बनती है, उन राज्यों में तत्काल जातीय जनगणना करवा कर सभी सामाजिक समूहों के साथ न्याय किया जायेगा.
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