पटना(PATNA): पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता दिनू कुमार के द्वारा बिहार सरकार का बहुचर्चित विधेयक पिछड़ा, दलित और आदिवासियों के आरक्षण विस्तार को पटना हाईकोर्ट में चुनौती पेश की गई है, अपनी याचिका में यह दावा किया गया है कि नीतीश सरकार का यह फैसला संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है. और इससे आरक्षण की अधिकतम सीमा पचास फीसदी रखने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की अवहेलना हुई है. यहां ध्यान रहे नीतीश सरकार ने जातीय जनगणना के आंकडों के आधार पर पिछड़ी जातियों के आरक्षण को 27 फीसदी से बढ़ाकर 43 फीसदी, दलितों के आरक्षण को 18 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी और आदिवासियों के आरक्षण को 2 फीसदी करने का फैसला लिया है, इस विधेयक विधान सभा के अन्दर सभी दलों की सहमति थी, और साथ ही राज्यपाल की मुहर लगने के बाद यह गजट का हिस्सा बन चुका है.
सीएम नीतीश को पहले से ही था इसका एहसास
हालांकि सीएम नीतीश और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को इस बात का एहसास था कि किसी ना किसी के द्वारा इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, और यही कारण है कि राजद जदयू के द्वारा इस विधेयक को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की जा रही है. उनका दावा था कि जब भाजपा बिहार में यह दावा करती है कि आरक्षण विस्तार के पक्ष में खड़ी है, तो वह इस कानून को नौवीं अनुसूची में शामिल क्यों नहीं करवाती. यहां ध्यान रहे कि किसी भी कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कर लिए जाने के बाद वह न्यायिक समीक्षा की परिधि से बाहर हो जाता है, इस प्रकार उसे एक सुरक्षा कवच प्रदान हो जाता है. लेकिन अब तक केन्द्र सरकार के द्वारा राजद जदयू की इस मांग पर कोई प्रतिक्रिया प्रकट नहीं की जा रही है, इस बीच सीएम नीतीश के इस मास्टर स्ट्रोक पटना हाईकोर्ट में चुनौती पेश कर दी गई है, हालांकि एक सत्य यह भी है कि सीएम नीतीश ने बहुत ही खूबसूरती के साथ पहले ही इसका सुरक्षा कवच तैयार कर लिया है, दरअसल आरक्षण विस्तार के पीछे सीएम नीतीश के पास के एक तार्किक और वैज्ञानिक आंकड़ा है, जिसके सहारे वह कोर्ट में इस फैसले के पक्ष में दलील पेश कर सकती है. अब तक जिन जिन राज्यों के द्वारा यह कोशिश की गयी थी, उनके पास कोई वैज्ञानिक आंकड़ा नहीं था, लेकिन इस बार यह स्थिति बदली हुई है. बावजूद इसके देखना होगा कि इस मामले में कोर्ट का फैसला क्या आता है.
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